यह मैं हूं
ख़ामोश भीड़ के सामने चीखते हुए
सभी विलापो को दरकिनार करते
प्रतिरोध की मशाल जलाते हुए
कि यह मैं ही हूं
मैं ऐसा करने के काबिल नहीं
कि फूंक दूं कोई मंत्र
और जल उठे चूल्हा
कि उठा लूं पृथ्वी को
और बस जाए संवेदना
आखिर मैं भी
तुम्हारे ही तरह अदना सा आदमी हूं
पर भीड़ बन जाना मुझे मंजूर नहीं
मैं देख सकता हूं
अपने हाथों को
जो गिरती बारिश में
बीजों को बो सकता है
और काली रात में
बत्ती जला सकता है
बगैर छानबीन के
इंजन को चला देना
मुझे मंजूर नहीं
और वसंत के आगमन में
आराम से लेटे रहना
मेरी संवेदनाओं को मार डालेगा
आवेश का आदेश
तुम्हारी आंखों को चौंधियाता होगा
और नमूने के श्रृंगार में
तुम हो सकते हो
अपने आप से नंगे
पर सूर्य और आंसुओं में
मैं तुम्हारे आंसू पी लेना चाहता हूं
ताकि बचा रहे सूरज
मेरे और तुम्हारे बीच.