अनसुना
मेरे कंधे पर
श्मशान के रास्ते
झुल रहे हैं
और सभी लाशें
कोल्हू के बैल सा
उन रास्तों में
घूमते चले जा रहे हैं
पूर्वजों की आहें
जिनसे टकराकर इतिहास
अर्थी बन गए हैं
और खाली पेट में वे
एक द्वीप में तब्दील हो गए हैं
फिरभी खामोशी के चीत्कार में
मेरे वे बोझ
इतिहास के पन्नों को
कब से छोड़ चुके हैं
तपिश के ऊंचे टीले पर चढ़ी
आज की पीढ़ी
अपनी जमीन को छोड़
इतिहास को जलाएंगे
और सकेंगे हाथ
उन बोझों से त्रस्त होकर
जिसे पूर्वजों के कंधों ने
यहां तक ढोकर ला दिया है
शक्ति और धर्म की बातें
यदि हम छोड़ दें
और छोड़ दें
उन कुटियों की छांह
तब भी
संवेदनाओं की इस इक्कसवीं पीढ़ी में
क्या हम झांक पाएंगे
अपने ही कालरों में
कि गंदों की परतें
आखिर रसोई तक
कैसे चली आयी
मेरे कन्धें
गवाह हैं
उन भूली स्मृतियों के
उन भूले श्रमों के
उन भूले समर्पण के
जहां से रास्ते
श्मशान के बीच से
जरूर निकलती है
पर मिटाने की लौ को
दूर से भी छुआ नहीं है.