हां दर्द सहना भी एक कला है।
गम बर्दाश्त कर लेना भी एक कला है।
खुद नाखुशी के दौर में रहकर
दूसरों से ना जलना भी एक कला है।
छिपकर रोना भी एक कला है ।
अंधेरे में भी जुगनू बनकर जीना
एक कला है।
कहती है अगर खुदगर्ज़ दुनिया तो
कहने तो कहने दो।
कीचड़ सी लगने वाली आलोचनाओं
के बीच कमल सा खिलना भी एक कला है़।
हो सके तो वक्त रहते इस कला को सीख
लो ए दोस्तों या फिर इस दुनिया के बदलने
की उम्मीद ही छोड़ दो।