कोई भी व्यक्ति
प्रतिभावान हो सकता है चाहे वो किसी भी परिवेश या समाज से संबंध रखता हो। ये बात
अलग है कि कहीं कहीं लोग अपने जान- पहचान वालों को ही मौका देना पसंद करते है
लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि आपको दूसरे इंसान को अपने से कमतर आंकने का अधिकार मिल
गया है। कुछ इंसानों की बहुत बुरी आदत होती है कि वो हमेशा ऐसे इंसानों की तलाश
में रहते है जिस पर वो अपना अधिकार जता सके, हां में हां मिलवा सके और अगर उनसे
विपरीत राय रखता हो तो उसे अपने प्रभाव का रौब झाड़कर अपने पक्ष में लेने का
प्रयास करते है यदि वो ऐसा करने से इंकार कर दे तो वो अपनी उपलब्धियां गिनाने लगते है
कि सामने वाला उसके सामने बौना दिखाई देने लगे।
जो सचमुच सफल इंसान होते है उन्हें जताने की आवश्यकता नहीं होती है लोग उनसे खुद ब खुद प्रेरणा लेते है। चाहे सामने वाले इंसान में हजार कमजोरियां हो वो उसे बेहतर बनने के लिए प्रेरित करते है। कहा भी तो गया है करत-करत अभ्यास जड़ मति होत सुजान, अर्थात एक दिन में कोई चीज़ नहीं सीखी जा सकती है। सिर्फ प्रतिभावान होना ही काफी नहीं, बार बार प्रयास करने ही से इंसान के हुनर में निखार आता है। ये बात ज़रुरी है कि काम आपकी रुची का होना चाहिए। बेमन से किया गया काम कभी ठीक तरह से नहीं होता है। सीखना एक अंनत प्रक्रिया है जो अंतिम श्वास तक चलती रहती है।
अब रामायण का ही
उदाहारण ले लिजिए जब समुद्र में रामसेतु का निर्माण हो रहा था तब वानर बड़े बड़े
पत्थर समुद्र में फेंकने लगे ताकि पुल का निर्माण हो सके। तभी एक नन्ही गिलहरी आती
है और रेत में लोट-लोट कर थोड़ी थोड़ी रेत समुद्र में फेंकने का प्रयास करती है
ताकि पुल निर्माण में अपना योगदान दे सके। तभी सभी वानर उसका मज़ाक उड़ाने लगते है
कि इतनी छोटी गिलहरी के योगदान का भला
क्या महत्व हो सकता है। तभी भगवान राम ने सभी वानरों को टोककर कहा कि किसी भी
इंसान को किसी के भी प्रयास को कमतर नहीं आंकना चाहिए।
रावण को भी अपनी शक्ति
का अंहकार हो गया था क्योंकि उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया गया तो अंहकार भी
जल्दी ही टूट गया। कोई व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है या सदुपयोग इस बात से
ही उसका भविष्य तय होता है।
शिल्पा रोंघे