गुनगुनता हूं,
सुनता हूं,
गीत और संगीत को
रोजमर्रा की जिंदगी
की आदत बना चुका हूं।
कभी भक्ति में डूब जाता हूं,
कभी शक्ति बना लेता हूं।
कभी प्रेम रस तो कभी
वात्सल्य रस की नदी में डूबकी
लगाता हूं।
लोरी से शुरू हुआ ये लगाव अब परिपक्व हो
चुका है।
कभी गज़लों की महफ़िल का हिस्सा
बन जाता हूं।
कभी लोकगीत की परंपरा का आनंद लेता हूं।
हां जब भी गीत सुनता हूं मायूस
से तरोताज़ा हो जाता हूं।
बनाई जिसने भी परंपरा दुनिया
में गीत संगीत की उसे दिल
से शुक्रिया अदा करता हूं।
हां मैं एक श्रोता हूं।
गीत और संगीत से
खुद को अलग नहीं कर पाता हूं।
शिल्पा रोंघे