कई बार हम सुनते है कि कोई बच्चा स्कूल में कोई विषय चुनता है या फिर किसी प्रोफेशन में जाने का फैसला करता है तो ये तर्क देता है कि उसने ऐसा अपने माता पिता के दबाव में किया, वो अपने प्रोफेशन में सफल भी हो जाते है लेकिन वो बेमन से बस काम किए जा रहे होते है अपनी आजीविका के लिए।
ज्यादातर माता पिता आपने बच्चों को पारंपरिक शिक्षा जैसे मेडिकल या आईएएस की एक्ज़ाम की तैयारी करने के लिए ज़ोर डालते है कुछ लोग इसमें सफल भी हो जाते है और कुछ लोगों का सिलेक्शन नहीं हो पाता तब वो हीनभावना के शिकार हो जाते है और खुद को ही दोष देने लगते है, असल में उन्हें खुद को दोषी नहीं मानना चाहिए। कोई भी करियर चुनने से पहले ये देख लेना चाहिए कि उनमें वो एप्टीट्यूड है या नहीं।
सबकी रूचि और किसी विषय को समझने की क्षमता अलग होती है कोई वकील बनना चाहता है कोई इंजिनियर बनना चाहता है तो कोई फॉयनेंस में अपना करियर बनाना चाहता है। बच्चों की रुचि अगर पारंपरिक शिक्षा में हो तो उसे वहीं करियर बनाने देना चाहिए।
कुछ बच्चे पेटिंग, आर्ट एंड क्राफ्ट, एनिमेशन, इंटिरियर डिज़ाईनिंग या कैटरिंग, फैशन डिजाइनिंग जैसे कलात्मक क्षेत्रों में जाना चाहते है लेकिन माता पिता को लगता है कलात्मक क्षेत्रों में अपना सिक्का जमाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है अगर सफलता ना मिले तो उनके बच्चे अवसाद में जा सकते है। यहां माता पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वो इन प्रोफेशन में आनी वाली चुनौतियों से बच्चों को अवगत कराए और मानसिक रूप से तैयार करे ना कि उनके मन में रिस्क लेने के लिए डर भरे। कभी कभी टैलेंट होने के बावजूद अगर सही मार्गदर्शन ना मिले तो बच्चों का करियर बर्बाद हो सकता है।
कई बच्चे देखने में बहुत सुंदर होते है तो उनके माता पिता उन्होने ग्लैमर की दुनिया में कदम रखने को कहते है चाहे उनकी रुचि हो या ना हो वो ये भूल जाते है कि सुंदरता के साथ टैलेंट होना भी ज़रूरी है, अगर सिर्फ सौंदर्य से ही काम चल जाता तो सौंदर्य प्रतियोगिता में बुद्धिमत्ता, उनकी उत्तर देने की क्षमता जैसे पहलू समाहित ही ना किए जाते।
कुछ माता पिता ये चाहते है कि उनके बच्चे उसी शहर में रहे जहां उनका पैतृक निवास हो चाहे वहां करियर की संभावना हो या ना हो।
कुछ अभिभावक बच्चों पर सरकारी नौकरी का दबाव डालते है ताकी उनकी ज़िंदगी में स्थाईत्व आ जाए, बात कुछ हद तक सही भी है लेकिन देश की जनसंख्या इतनी बढ़ चुकी है कि सरकारी नौकरी मिलना पहले की तरह आसान नहीं रहा है।
आज के वक्त में माता पिता की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने बच्चों को भेड़चाल चलने की सलाह देने के बजाए अपने विवेक और रुचि के अनुसार निर्णय लेना सिखाए।