कोरोना
काल के आंकड़े सचमुच चिंतित करने वाले है इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन मेरा ये
मानना है कि अगर आप कमजोर इच्छाशक्ति वाले है तो दिन में 10 मिनिट से ज्यादा
न्यूज़ ना देखे अपने मन को कहीं और फोकस करने की कोशिश करे। क्योंकि घबराने से
स्थिती हमेशा बिगड़ती है सुधरती नहीं है। मैंने ये देखा कि अस्पताल में यदि कोई
भर्ती होता है गंभीर हालत में तो उसे देखने जाने वाले स्वस्थ इंसान भी बेहोश हो
जाते है। तो ऐसे में बार –बार ऐसे वीडियो ना देखे जो कि कमजोर दिल वालों के लिए
ठीक नहीं है ना वाट्स-अप पर अपने दोस्तों को शेयर करके डर फैलाये।
वैसे
तो मेरा ये मानना है कि इंसान को हर तरह के इमोशन्स को व्यक्त करना चाहिए चाहे वो
पॉजीटिव हो या निगेटिव, क्योंकि मन में दबी बात नाराजगी बढ़ाती हैं, लेकिन इस बार
सकारात्मक रहना ज़रुरी है।
अभी
कोराना अगर आप तक नहीं पहुंचा है तो हम क्या कर सकते है उस पर फोकस करे।
1. जैसे मुंह के बजाए नाक से सांस लेने कि
कोशिश।
2. तुलसी हल्दी और काढ़े का सेवन।
3. प्राणायाम करे और हल्के फुल्के व्यायाम।
4. अपने खान पान के साथ लापरवाही ना बरते।
5. संगीत सुने साहित्य पढ़े।
6. मेडिटेशन करे।
7. ऐसी किताब पढ़े और वीडियो देखे जिससे
आपकी इच्छाशक्ति मजबूत हो।
8. घर के काम में हाथ बटाएं चाहे आप पुरुष
ही क्यों ना हो इससे आपका स्वास्थ अच्छा रहेगा।
9. मास्क ज़रुर लगाए और बाहर यदि कोई बिना
मास्क दिखे तो उसे भी चेताए।
10. कोई भी सामान खरीद कर लाए तो उसे धोएं
ज़रुर, हाथ भी साबुन से धोए यदि बाहर से घर में आते है तो।
11. यदि आप कोरोना पॉजिटिव हो गए है तो आस
पास के लोगों को ज़रुर बताएं, छिपाकर ना रखे।
12. यदि कोई रिश्तेदार या दोस्त कोराना पॉजिटिव
हो जाए तो कॉल करके उसका हौंसला बढ़ाए और हाल चाल ज़रुर पूछे।
सकारात्मक सोचने का अर्थ ये नहीं है कि आंखों पर पट्टी बांध ली जाए और
ये सोचे कि मुसीबत आएगी नहीं। यदि अस्पताल में कोई अव्यवस्था है और इलाज सही ढंग से
नहीं हो रहा तो इस बारे में लिखे।
कहां कितनी सुविधा है क्या हेल्पलाईन नंबर है अगर आप इस बारे में बता
रहे है तो आप सचमुच लोगों की मदद कर रहे हैं।
बाकी ये ना सोचे की कोराना ही मौत के लिए जिम्मेदार होता कई और वजहों
से भी जान सकती है।
कोरोना से सिर्फ लोगों की जान गई नहीं बची भी है। कम से कम हम 100
साल पुराने उस दौर में तो नहीं है जब किसी भी तरह का इलाज़ उपलब्ध नहीं था और मौत
के आगे सबको घुटने टेकने पड़ते थे।
ये दौर राजनीती पर बात करने का नहीं बल्की सबको अपने अपने मतभेद भुलाकर समस्या को हल करने का है।