अक्सर हम देखते है कि अगर पुरूष के हाथ से कोई बड़ी गलती होती है तब ही लोग उस पर उंगली उठाते है, लेकिन महिलाओं को बिना वजह आलोचना का शिकार बनना पड़ता है और ये बात सच है कि सिर्फ आदमी ही नहीं औरते भी औरतों का मनोबल गिराने में बढ़ चढ़कर योगदान देती है। कई बार जिन्हें अपने जीवन में प्यार और प्रोत्साहन नहीं मिला होता है तो ऐसे में वो अपनी बात और शिकायतें खुलकर नहीं रख पाते है और दूसरी औरतों को अपनी आलोचना का शिकार बनाते है। आलोचना करने वालों को ये समझना चाहिए कि किसी और का मनोबल गिराने से उनकी ज़िंदगी के दुख दूर नहीं हो जाएंगे, उल्टे अगर आपसे कोई सहानूभूति रखता है या आपको प्रोत्साहित करना चाहता है तो आपका ऐसा रवैया देखकर वो आपसे दूर रहना ही पसंद करेगा।
महिलाएं कई वजह से आलोचना की शिकार बनती है जैसे कि
1. नौकरी पेशा महिलाओं को लोग अति महत्वाकांक्षी या बच्चों का ध्यान नहीं रखने वाली करार देते है,
हकीकत ये है कि बच्चों के पालन पोषण के लिए सिर्फ प्यार ही काफी नहीं होता उनके पालन पोषण से जुड़े खर्चे जुटाना भी तो पालकों की जिम्मेदारी बनती है।
2. महिलाओं के घरेलू कामों में हाथ बंटाने वाले पतियों को “जोरु का गुलाम” जैसी उपमा देने वाले लोग
ये भूल जाते है कि कोई स्त्री भी इंसान है उसकी भी अपनी शारिरिक क्षमता होती है, उन्हें भी शारारिक और मानसिक थकान होती है। ऐसे में उनकी मदद करने वाला व्यक्ति उपहास का पात्र नहीं है।
3. लोग महिलाओं को हमेशा सुंदर ही देखना चाहते है, मैंने अक्सर देखा है कि लड़का चाहे कैसा भी लोग शादी ब्याह में जाकर दुल्हन को सुंदरता और रंग रुप की कसौटी पर कसना चाहते है, वो चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी या गुणवान क्यों ना हो वो उन बातों को नज़रअंदाज़ कर देते है, और कभी कभी लड़के की पसंद पर भी उंगली उठाने लगते है, अरे भई जिन्होंने विवाह किया है उन्हें ज़िंदगी भर साथ रहना है तो उनके लिए क्या सही और गलत रहेगा ये तय करने का निर्णय भी तो उनका हो।
4. औरतों से हमेशा सहनशील बने रहने की उम्मीद लोग करते है चाहे गलती किसी की भी हो, रिश्तों को टिकाए रखने की जिम्मेदारी औरत की ही होती है ऐसा लोग मानते है, हमारे समाज में तलाकशुदा औरतें और अविवाहित औरतें चाहे आर्थिक रुप से कितनी ही आत्मनिर्भर क्यों ना हो लोग उनपर टीका टिप्पणी करने से बाज नहीं आते है।
5. एक लड़की का पहनावा कैसा हो ये भी तय करने का अधिकार उसके ससुराल वालों का है ये भी कुछ लोग मानते है।
6 . एक लड़की को अविवाहित रहने का अधिकार नहीं है, लड़के शादी करे ना करे इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है, अकेली लड़की का समाज में रहना सुरक्षित नहीं माना जाता है, अरे भई ऐसा जो कहते है उन्हें ये सोचना चाहिए कि समाज भी तो उनके जैसे सभ्य लोग से ही बना है तो ऐसे में लड़कियों के अकेले ना रह पाने के पीछे उनकी भी तो नाकामी है।
7. लड़कों की तो सीरत ही होती है बहक जाना तो ऐसे में महिलाओं को ही संभालकर रहना चाहिए, अब क्या लड़कियां स्कूल कॉलेज और ऑफिस भी ना जाए।
8.शादी ब्याह के मामलें में जैसे लड़को की पसंद होती है वैसी लड़की की भी तो होती है, हमारे देश में प्राचीनकाल से स्वंयवर की प्रथा रही है, लेकिन लोग लड़कियों को इन मामलों में बोलने और अपनी पसंद रखने की आजादी देना ही नहीं चाहते है, एक लड़की चाहती है क्या है कि उसका पति सहयोगात्मक और उसे समझने वाला हो अगर ये भी ना मिले तो वो क्यों किसी से विवाह करे, रिश्ते को बनाए रखने की जिम्मेदारी दोनों पक्षों की होती है ना कि सिर्फ लड़की की। लड़कियों से जीवनभर बेमेल विवाह निभाने की उम्मीद समाज क्यों करता है।
9.लड़कियों को आत्मनिर्भर होने की क्या ज़रुरत है आखिरकार चूल्हा चौका ही तो संभालना है ऐसे टिप्पणियां आए दिन महिलाओं को सुनने को मिलती है।
नकारात्मक टिप्पणी करने वाले लोग ये भूल जाते है कि उनके घर में भी बेटी बहन या बहूएं होगी तो
क्या वो उसे बर्दाश्त कर पाएंगे ?