वहीं खड़े है वृक्ष सभी तनकर.
वहीं खिल रहे है फूल सुंगध फैलाकर.
सदियों से वहीं खड़े पर्वत विशाल.
उसी समुद्र में जाकर मिल रही तरंगिणी.
उसी डाल पर बैठा है पक्षी घरौंदा बनाके,
उसी नभ में उड़ रहा है पंख फैलाकर.
कुछ नहीं बदलता नवीन वर्ष के साथ
हां बस संकल्प निश्चित ही हो जाते है दृढ़.
बीते वर्ष में मिली सीखें मानो
बन जाती है, नवीन वर्ष के जीवन का पाठ.
शिल्पा रोंघे