कुछ दिनों से क्रीम्स में जुड़े फेयरनेस शब्द
को लेकर लोगों में एक नाराजगी देख रही हूं और कंपनी ने भी अपनी इस क्रीम से इस तरह के शब्द को हटाने का
फैसला किया है, लेकिन कई क्रीम में सीधे सीधे
फेयर शब्द नहीं जुड़ा है ग्लो या शाइन देने वाली बात कहकर भी अप्रत्यक्ष रुप से
गोरेपन को ही तव्वजोह दी जाती रही है।
रही बात गोरेपन की तो
सीधे सीधे बेसिक साइंस में ही इसका जवाब छिपा हुआ है कि जिनकी त्वचा में मेलेनिन
ज्यादा होता है और जो गर्म स्थानों के मूल निवासी रहे है वो सांवले होते है। जिनकी
त्वचा में मेलेनिन कम होता है और जो ठंडे स्थानों या यूं कह ले कि जहां सूरज कि
किरणों की मेहरबानी ज़रा कम होती है वो गोरे होते है।
जिनकी त्वचा में मेलेनिन
ज्यादा होता है उन्हें स्किन कैंसर का ख़तरा गोरे लोगों की तुलना में कम होता है।
इसका अर्थ है कि सांवली त्वचा अभिशाप नहीं वरदान होती है।
मेरा ये मानना है कि
पूरी तरह फेयरनेस प्रोडक्ट की भी गलती नहीं है वो तो सिर्फ लोगों की मानसिकता को
भुनाने का काम करती है लोग जो खरीदना चाहते है वो चीज़ बेची जाती है।
बात चाहे ग्लैमर की
दुनिया की हो या फिर कुछ ऐसी जॉब्स की जिसमें कस्टमर्स के साथ सीधे सीधे बातचीत
करनी होती है तो वहां गोरे रंग को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा कई विज्ञापनों में
भी लिखा जाता है।
लड़का चाहे कितना ही
गहरे रंग वाला हो, लोगों को लड़की गोरी चाहिए होती है तर्क ये दिया जाता है कि अगर
माता पिता दोनों ही काले होंगे तो बच्चे भी वैसे ही होंगे खासकर अगर लड़की हुई तो
उसकी शादी में परेशानी होगी।
लोग अपने बॉयोडेटा में
भी लिख देते है पढ़ी लिखी, गोरी, सुंदर, गृहकार्य में दक्ष, नौकरी पेशा सबके साथ
तालमेल निभाने वाली लड़की। क्या इतनी अपेक्षाएं कोई लड़का पूरी कर सकता है? जो लोग एक लड़की से लगा बैठते है।
मेरा तो ये मानना है
कि त्वचा साफ सुथरी और चमकदार होनी चाहिए चाहे आपका रंग कैसा भी हो चाहे वो लड़का
हो या लड़की आत्मविश्वास से बड़ा कोई भी गहना नहीं है।
मुझे कभी–कभी उन लोगों
से भी थोड़ी नाराजगी होती है जो सांवले रंग के बावजूद बेहद खूबसूरत होते है लेकिन
किसी के कुछ कह देने मात्र से वो अपने आप को कमतर समझने लगते है या हीनभावना से भर
जाते है और कुछ लोगों की आदत होती है कि
वो दूसरे लोगों को फेयरनेस टिप्स बताते रहते है कि ये लगाओ तो गोरे हो जाओगे या
फला उपाय करने से रंग निखर जाएगा, ऐसा करके आप गोरे बनने की अंधी दौड़ को बढ़ावा
देते है और व्यक्ति के स्वाभाविक सौंदर्य को नष्ट कर देते है, कुल मिलाकर गलती सिर्फ क्रीम्स के बाजार की नहीं है ये समाज में
छिपी मानसिकता का भी दर्पण है।
शिल्पा रोंघे