एक ही मौन के देखो कितने रूप.
कभी ध्यान है,
कभी निद्रा है मौन,
कभी उपासना है मौन,
कभी भोर
तो कभी रात का काला सन्नाटा है मौन,
ना पूरा "हां" ना पूरा "ना"
है मौन.
ना पूरा है ना अधूरा है
सचमुच एक रहस्य ही है मौन.
शिल्पा रोंघे
7 जनवरी 2020
एक ही मौन के देखो कितने रूप.
कभी ध्यान है,
कभी निद्रा है मौन,
कभी उपासना है मौन,
कभी भोर
तो कभी रात का काला सन्नाटा है मौन,
ना पूरा "हां" ना पूरा "ना"
है मौन.
ना पूरा है ना अधूरा है
सचमुच एक रहस्य ही है मौन.
शिल्पा रोंघे
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पत्रकार, लेखक, ब्लॉगर, कवि,
विभिन्न न्यूज चैनल में सबएडिटर के तौर पर काम करने का अनुभव और वेबमीडिया में फीचर लेखक के तौर काम किया है । फ्रीलांस लेखक के तौर पर कार्यरत । विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है । मास्टर्स इन जर्नलिज़्म ( एमसीआरपीवी )
पत्रकार, लेखक, ब्लॉगर, कवि,
विभिन्न न्यूज चैनल में सबएडिटर के तौर पर काम करने का अनुभव और वेबमीडिया में फीचर लेखक के तौर काम किया है । फ्रीलांस लेखक के तौर पर कार्यरत । विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है । मास्टर्स इन जर्नलिज़्म ( एमसीआरपीवी )
सच में अच्छी पंक्तियाँ
8 जनवरी 2020