जब छोटे शहरों के लोग रूख़
बड़े शहरों का करते है।
वो चंपा चमेली से हो जाते
हैं,
महक साथ ले जाते हैं।
अपने पैरों की मिट्टी बिखेर कर आते है,
जहां कई और फूल उग आते है,
जहां भी जाते है अपनी पहचान साथ लेकर
जाते है,
वापस फिर
उसी महक को लेकर अपने छोटे से शहर
में जाते है, सब बदला -बदला सा उनको पाते हैं,
नहीं बदलती तो बस उनकी महक है जो दिखती नहीं
लेकिन बस जाती हैं उनकी सांसों में और बातों
में।
शिल्पा रोंघे