दुनिया की इस तेज दौड़ में,
तू पहुंच नहीं जाये उस मुकाम,
जहाँ होते हैं पल आनंद के,
मौजमस्ती के लिए पल क्षणभर,
जो चुभोते हैं बाद में नस्तर,
जिंदगी भर रुलाने के लिए,
एक यह भय जिससे कि,
रहता हूँ हमेशा आशंकित मैं।
चाहे तू मत समझ मुझको अपना,
चाहे तू मुझसे जीभर नफरत कर,
या मुझको दे दे विष का प्याला,
लेकिन देख नहीं सकता मैं,
तुमको बेइज्जत होते हुए,
बर्बाद होते हुए उन लोगों से,
जो अभी बहुत ही करीब तेरे,
और दिखा रहे हैं तुमको सपनें,
झूठे- नकली और अदृश्य आज,
अपने मतलब- स्वार्थ के लिए,
एक यह भय जिससे कि,
रहता हूँ हमेशा आशंकित मैं।
रोकता हूँ तुमको हमेशा मैं,
जाने को बाहर मेरे बिना,
किसी चमकती महफ़िल में,
बेखबर महकते हुए चमन में,
मचलती हुई लहरों में बहने को,
इतराती हुई ठंडी पवन में,
झूमने के लिए खुलकर,
कि कोई तुमको वहाँ पर,
नहीं कर दे गुमराह जीवन में,
दर -दर शरण माँगने के लिए,
एक यह भय जिससे कि,
रहता हूँ हमेशा आशंकित मैं।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)