उसी सनातन शाश्वत सत्य को,
जो सुना है मैंने ऋषि- मनीषियों से,
पढ़ा है जिसको मैंने धार्मिक ग्रन्थों में,
दिखती है जिनकी झलक व्यवहार में,
उसी सच को आज फिर बता रहा हूँ।
जैसा कि पीढ़ियों से होता आ रहा है,
या फिर शेष जो बचा है अब उसका,
उसी शेष को मैं शेष अपने शब्दों में,
करके श्रंगारित पर्यायवाची शब्दों से,
आज फिर लिख रहा हूँ मेरी रचना में।
सबकी तरहां मैंने भी देखे हैं ख्वाब,
और गुम हूँ उन्हीं ख्वाबों में सबकी तरहां,
लेकिन मालूम है मुझको की इस दुनिया में,
क्या-क्या घटित हो रहा है पल पल में,
उन्ही घटनाओं पर बोल रहा हूँ मैं।
मुझको भी हुआ है प्यार आपकी तरहां,
लेकिन मुजरिम हूँ मैं आपकी नजरों में,
बदनाम हूँ मैं यह हिम्मत करके जहाँ में,
सजा जो मुझको मिली है समाज में,
उसी सजा का सच बता रहा हूँ मैं।
मजनूं ,रांझे, रोमियो की तरह,
मैं हुआ हूँ पागल मोहब्बत में,
ताकि अमर हो हमारी मोहब्बत,
कुर्बानी उसी के लिए दे रहा हूँ ,
ताकि याद करें लोग हमारा प्यार।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847