हम भूल गए सच में, अपनी संस्कृति- संस्कार।
इसीलिए तो बन गए, वृद्धाश्रम यहाँ हजार।।
हम भूल गए सच में-------------------।।
जिसने हमको दिया जन्म, उस माँ की पीड़ा भूल गए।
पालन -पोषण जिसने किया, उस बाप का दर्द भूल गए।।
बुढ़ापे में उनको बेघर कर, किया है उनपे अत्याचार।
हम भूल गए सच में----------------------।।
सहे होंगे कितने कष्ट उन्होंने, हमको धनवान बनाने में।
लिया होगा किसी से कर्ज , हमारा यह ताज सजाने में।।
लेकिन हम नहीं कर सके, बुढ़ापे में उनके सपनें साकार।
हम भूल गए सच में -----------------------------।।
अपने बच्चे भी सीख रहे हैं, हमसे ही ऐसे गुण और धर्म।
यही होगा हाल हमारा भी , होंगे दोषी ये अपने ही कर्म।।
ठुकरा देंगे हमको बुढ़ापे में, हमको समझकर ऐसे बेकार।
हम भूल गए सच में -----------------------------।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847