कैसे कितने चेहरे बदलकर, लोग यहाँ रहते हैं।
मुहँ में राम बगल में छुरी,लिये हुए मिलते हैं।।
कैसे कितने चेहरे बदलकर-----------------।।
स्वार्थ अपना देखकर लोग, छोड़ देते हैं अपनों को।
करके खून रिश्तों का भी, पूरा करते हैं सपनों को।।
ऐसे ही तो बनकर खिलाड़ी,खेल क्या क्या रचते हैं।
मुहँ में राम बगल में छुरी, लिये हुए मिलते हैं।।
कैसे कितने चेहरे बदलकर------------------।।
खुद को दिखाने को बेदाग,पापी कहते हैं औरों को।
ओढ़कर चौला सज्जन का,बर्बाद करते हैं औरों को।।
कहते हैं खुद को दीपक, मगर औरों के घर जलाते हैं।
मुहँ में राम बगल में छुरी , लिये हुए मिलते हैं।।
कैसे कितने चेहरे बदलकर------------------।।
खुद को धनवान कहते हैं, लेकिन मन में नहीं दया शर्म।
राह बदलते हैं देख गरीब को, ऐसा ही है उनका धर्म।।
कहते हैं खुद को ज्ञानी पुरुष,मन में कपट वो रखते हैं।
मुहँ में राम बगल में छुरी, लिये हुए मिलते हैं।।
कैसे कितने चेहरे बदलकर------------------।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर - 9571070847