साल 1989. हिंदू कुश की पहाड़ियों में दस साल अटके रहने के बाद आखिरकार सोवियत यूनियन को अपने पैर पीछे खींचने पड़े. सोवियत यूनियन की इस हार को चार दशक लंबे चले शीत युद्ध का अंत माना गया. अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन से लड़ने के लिए अमेरिका ने इस्लामिक चरमपंथी समूहों को बड़ी मात्रा में आर्थिक और सैनिक मदद दी थी. इस अमेरिकी इमदाद ने दुनिया भर में इस्लामिक आतंकवादी समूहों को पनपने में काफी मदद की. 1989 में सोवियत-अफगान युद्ध की समाप्ति ने अफगानिस्तान में सक्रिय कई सारे कट्टरपंथी समूहों को अपने लिए नई जमीन की तलाश के लिए मजबूर कर दिया. ऐसा ही एक संगठन था, ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन. यह अफगानिस्तान में सक्रिय संगठन ‘हरकत-उल-जिहाद’ से टूटकर बना संगठन था. 1989 में कश्मीर में शुरू हिंसक अलगाववादी आंदोलन में हरकत-उल-मुजाहिदीन एक सक्रीय संगठन हुआ करता था. 1993 और 1994 का साल में भरतीय सुरक्षा बालों ने हरकत-उल-मुजाहिदीन की कमर तोड़ दी. नवंबर 1993 में इसके सरगना नसरुल्लाह मंसूर लंगरयाल को भारतीय सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर लिया. इसके अगले साल, फरवरी 1994 में हरकत-उल-मुजाहिदीन के सेक्रेटरी मौलाना मसूद अज़हर और सज्जाद अफगानी भी भारतीय सेना के हत्थे चढ़ गए. 1999 में सज्जाद अफगानी को जेल तोड़कर भागते हुए गोली मार दी गई. इसके जवाब में हरकत-उल-मुजाहिदीन ने इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट-814 को अगवा कर लिया. भारतीय सरकार को मजबूर होकर भारतीय जेलों में बंद तीन आतंकियों मौलाना मसूद अज़हर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्तफाक अहमद ज़रगर को कंधार जाकर रिहा करना पड़ा. पाकिस्तान लौटने के बाद मौलाना मसूद अज़हर ने हरकत-उल-मुजाहिदीन से अलग होकर साल 2000 में अपना अलग संगठन बना लिया. नाम रखा, ‘जैश-ए-मोहम्मद’. जिसका शाब्दिक अर्थ है मोहम्मद की सेना. जैश-ए-मोहम्मद’ ने पहला बड़ा हमला किया अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर किया। इस हमले में 38 लोगों की जान गई. इसके दो महीने बाद दिसंबर 2001 में लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर देश की संसद पर हमला किया. इस हमले में हमारे 8 जवान शहीद हुए. अक्टूबर 2001 में भारत के दबाव के चलते संयुक्त राष्ट्र संघ ने जैश को आतंकी संगठन घोषित कर दिया. दिसंबर 2001 में अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट ने भी इसे आतंकी संगठन घोषित किया. इसके बाद पकिस्तान ने भी अपने यहां जैश को आतंकी संगठन घोषित कर दिया. यह जनवरी 2002 की बात है. यह परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा से ठीक पहले हुआ. जैश ने इस प्रतिबंध का कड़ा प्रतिरोध किया. मार्च 2002 से लेकर सितंबर 2002 तक जैश ने इस्लामाबाद, कराची,मुरी, बहावलपुर में फ़िदायीन हमलों की झड़ी लगा दी. प्रतिबंध लगने के बाद जैश में दो टुकड़े हो गए. पहला टुकड़ा खुद्दाम-उल-इस्लाम. इसका नेतृत्व मसूद अज़हर कर रहा था. दूसरा टुकड़ा था तहरीक-उल-फुरकान. इसका नेतृव अब्दुल्लाह शाह मजहर कर रहा था. 2003 में पाकिस्तानी सरकार ने खुद्दाम-उल-इस्लाम और तहरीक-उल-फुरकान पर भी बैन लगा दिया. इसके बाद अज़हर ने अपने संगठन का नाम बदलकर ‘अल-रहमत ट्रस्ट‘ रख दिया. इस बैन से खार खाए अज़हर ने परवेज मुशर्रफ को भी नहीं बख्शा. 14 और 25 दिसंबर 2003 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुशर्रफ पर इस संगठन ने जानेलवा हमला करवाया. इसके बाद पकिस्तान सरकार ने इस संगठन के खिलाफ क्रेक डाउन शुरू किया. मिलेट्री इंटेलिजेंस में जैश के समर्थकों को नौकरी से निकाल दिया गया. इनके ठिकानों को तहस-नहस कर दिया गया. 2004 के क्रेक डाउन के बाद मसूद अज़हर ने पाकिस्तानी सरकार के साथ समझौता कर लिया और पकिस्तान के भीतर आतंकी गतिविधि रोक दी. हालांकि जैश पकिस्तान में आधिकारिक तौर पर बैन था लेकिन ISI ने इस संगठन को फलने-फूलने में पर्याप्त मदद की. 2009 में आई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस संगठन ने पकिस्तान के बहावलपुर में साढ़े छह एकड़ में अपना बड़ा सा कॉम्प्लेक्स बना लिया था. यहां आतंकियों की ट्रेनिंग लगातार जारी रही. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मसूद अज़हर ने एक सभा में धमकी दी थी कि उसके पास 300 आत्मघाती हमलावर तैयार हैं. अगर नरेंद्र मोदी भारत का प्रधानमंत्री बनते हैं तो वो भारत पर हमला बोल देगा. 25 दिसंबर 2015 को नरेंद्र मोदी ने लाहौर जाकर पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ से मुलकात की. इसने जैश को नाराज कर दिया. इसके ठीक सात दिन बाद इस संगठन ने पठानकोट एयर बेस पर हमला कर दिया.सितंबर 2016 में हुए उड़ी हमले भी इस संगठन का नाम आया था. हालांकि आधिकारिक तौर पर जैश ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली थी. मौलाना मसूद अज़हर जैश का संस्थापक है. हलांकि अब वो इस संगठन के लिए परदे के पीछे से काम करता है. फिलहाल मसूद अज़हर का भाई अब्दुल रऊफ असगर इस संगठन का सरगना है. रऊफ 1999 में इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट-814 के अपहरणकर्ताओं में से एक था. रक्षा जानकार जैश-ए-मोहम्मद को कश्मीर में सक्रीय सबसे खतरनाक आतंकी संगठन मानते हैं. इसके साथ ही हाल ही पुलवामा में हुए हमले में भी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का ही नाम सामने आया है।