दुनियाभर में भारतीय प्रतिभा अपना लोहा मनवा रही है। बड़ी कंपनियों के महत्वपूर्ण पदों से लेकर कई देशों की सरकारों में भी यहां के लोग शामिल हैं। ज़ाहिर है किसी और देश में जाकर चुनौतियों का सामना करते हुए ख़ास मुकाम बनाना बेहद कठिन होता है। खासकर बात जब महिलाओं की हो तो उनके लिए रास्ते और भी मुश्किल भरे होते हैं। ऐसे में देश की बेटियां भी आज खुद को साबित करने में पीछे नहीं हैं। मोना दास ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, जो अमेरिका के वाशिंगटन राज्य की सीनेटर बनी हैं। अमेरिका में पली-बढीं मोना को अपने देश और संस्कृति से बेहद लगाव है। उन्होंने मकर संक्रांति के पावन दिन को अपने शपथ के लिए चुना। इतना ही नहीं, मोना ने गीता को हाथ में लेकर पद की शपथ ली और ‘जय हिंद’ के नारे लगाए। मोना दास ने सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में स्नातक तथा पिंचोट विश्वविद्यालय से प्रबंधन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है। कॉलेज में ही उनका रुझान राजनीति की ओर हो गया था। सीनेटर मोना दास कहती हैं- “मुझे अपने पैतृक गांव जाने की बहुत इच्छा है और मैं बिहार के साथ-साथ देश के सभी हिस्सों में घूमना चाहती हूं। भारत मेरा मूल देश है और मुझे अपने देश पर गर्व है।” बताते चलें मोना को सीनेट हाउसिंग स्टेबिलिटी एंड अफोर्डेबिलिटी कमेटी की वाइस चेयरमैन का कार्यभार दिया जाएगा। देश की इस बिटिया पर पूरे देश को नाज़ है।मोना ने पहली बार में ही ये बड़ी कामयाबी हासिल की है। डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य मोना ने दो बार के रिपब्लिकन सीनेटर रहे जो फ़ैन को हराया है।
बिहार के दरभंगा कॉलेज अस्पताल में जन्मीं मोना दास (1971) ने अपने संदेश में बेटी की शिक्षा का मसला उठाया। उन्होंने कहा एक लड़की को शिक्षित करने से पूरा परिवार तथा आने वाली पीढ़ियों को भी शिक्षित किया जा सकता है। निर्वाचित सदस्य के रूप में दास लड़कियों को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाएंगी।
मोना मूल रूप से बिहार के मुंगेर जिले की हैं, जो महज़ आठ माह की उम्र में अमेरिका चली गई थीं। उनके पिता सुबोध दास इंजीनियर हैं और उनका परिवार अमेरिका में रहते हुए आज भी अपने गांव दरियापुर से जुड़ा हुआ है।
मोना दास के दादा मुंगेर के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. गिरिश्वर नारायण दास हैं। मोना की सफ़लता से उनके गांव में खुशी की लहर देखी जा रही है।