हिंदू धर्म में किसी की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है, शव को मुखाग्नि दी जाती है औऱ फिर उसकी अस्थियों को गंगा जी में प्रवाहित किया जाता हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे जिनके निधन को लगभग 70 साल हो चुके हैं लेकिन आज तक उनकी अस्थियों को गंगा में विर्सजित नहीं किया गया है। तो चलिए आपको बताते है उस शख्स की कहानी। लेकिन एक बात उनके बारे में जानकर आपको हैरानी होगी की गोडसे की अस्थियां आज तक नदी में प्रवाहित नहीं की गई हैं। उनकी अस्थियों का कलश आज भी पुणे के शिवाजी नगर इलाके में स्थित एक इमारत के कमरे में सुरक्षित रखी हुई हैं। उस कमरे में उनकी अस्थि कलश के अलावा उनके कुछ कपड़े और हाथ से लिखे नोट्स भी संभालकर रखे गए हैं। नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर से एक इंटरव्यू के दौरान, आज तक उनकी अस्थियों को संभाल कर रखने की वजह पूछी गई तो उन्होंने बताया कि, उनके परिवार को गोडसे का शव तक नहीं दिया गया था, बल्कि फांसी के बाद सरकार ने खुद घग्घर नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया था। जिसके बाद उनकी अस्थियों को एक डिब्बे में भरकर उनके परिवार को सौंप दिया था। चूंकि गोडसे ने अपनी फांसी के पहले अपने परिवार वालों को अपनी अंतिम इच्छा बताई थी, जिसके चलते उनके परिवार ने आज तक उनकी अस्थियों को नदी में नहीं प्रवाहित किया है। नाथूराम गोडसे ने अपनी अंतिम इच्छा में कहा था कि उनकी अस्थियों को तब तक संभाल कर रखा जाए जब तक सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में समाहित न हो जाए और फिर से एक बार अखंड भारत का निर्माण न हो जाए। जब ऐसा हो जाए तभी मेरी अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित करा जाए। इसी वजह से गोडसे के परिवार ने आज तक उनकी अस्थियों को संभाल कर रखा हुआ है। क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ? क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को … पुणे के ब्राह्मणों के साथ ? क्या था सावरकर और हिन्दू महासभा का चिन्तन ? क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का .. कैसी नृशंस फांसी दी गयी उन्हें l पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची जाती हैं। अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुए रेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थी l बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,,” आज़ादी का तोहफा ” रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ा l ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की… भयानक बदबू…… सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं, उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थे l मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी. किसी भी गाडी पर हल्ला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं- बच्चियों को भगाया गया.बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी … बलात्कार किये बिना…..? जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी…. डॉक्टर ने पूछा क्यों ??? उन महिलाओं ने जवाब दिया… हम आपको क्या बताये हमें क्या हुआ हैं ? हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं…उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे। जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड) निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया l 1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये, और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा जी का आग्रह था…क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था l विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे….और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए…..पैसे दो, नहीं तो मैं मर जाउगा….एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए… क्या यह हिंसा नहीं थी .. अहिंसक आतंकवाद की आड़ में दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोईताबा नहीं रहना चाहिए l निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं…जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे रहो लेकिन छत के निचे नहीं l क्योकि… तुम हिन्दू हो…. 4000000 हिन्दू भारत में आये थे,ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं…. ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब गांधीजी माइक पर से कहते थे क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे ?? यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ..और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ? 35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार 2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआऔर उसके बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंची l 10 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को खरीदा बेचा गया l 20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया, तरह तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाओं के बाद ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य हैं जो की 1947 के समकालीन लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों से छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ, नए कल की शुरुआत करो … आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण देखा होगा, U S S R टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान आदि … परन्तु यह सब देश जो बने वो एक परिभाषित अविभाजित सीमा के अंदर बने l और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण थे की पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए… क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया… या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में l परन्तु ऐसा नही हुआ …. यहाँ पर उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी … यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था … मोहनदास करमचन्द के अनुसार l नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा l पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे … उन्होंने फिर से मांग की … की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं l पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए …. कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए…. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो … (NH – 1) जो दिल्ली के पास से जाता हो … जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो … (10 Miles = 16 KM) इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l 30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी …मान लिया जायेगा l तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में …और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l हुतात्मा का अर्थ होता है जिस आत्मा ने अपने प्राणों की आहुति दी हो …. जिसको की वीरगति को प्राप्त होना भी कहा जाता है l यहाँ यह सार्थक चर्चा का विषय होना चाहिए की हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे जीने क्या एक बार भी नहीं सोचा होगा की वो क्या करने जा रहे हैं ? किसके लिए ये सब कुछ कर रहे हैं ? उनके इस निर्णय से उनके घर, परिवार, सम्बन्धियों, उनकी जाती और उनसे जुड़े संगठनो पर क्या असर पड़ेगा ? घर परिवार का तो जो हुआ सो हुआ …. जाने कितने जघन्य प्रकारों से समस्त परिवार और सम्बन्धियों को प्रताड़ित किया गया l परन्तु ….. अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करमचन्द के कुछ अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948 की रात को ही पुणे में 6000 ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर जिन्दा जलाया l 10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए गए l सोचने का विषय यह है की उस समय संचार माध्यम इतने उच्च कोटि के नहीं थे, विकसित नही थे … फिर कैसे 3 घंटे के अंदर अंदर इतना सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा नरसंहार कर दिया गया …. सवाल उठता है की … क्या उन अहिंसक आतंकवादियों को पहले से यह ज्ञात था की गांधी वध होने वाला है ? शाम के 5 बजकर 15 मिनट हो रहे थे और गांधीजी अपने अनुयाइयों के साथ बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की ओर जा रहे थे। गांधी जी के साथ काफी भीड़ भी थी। तभी उसी भीड़ से नाथूराम गोडसे नाम का एक शख्स उनके सामने आया, पहले तो उसने दोनों हाथ जोड़कर बापू को नमन किया और फिर उनके शरीर में अपनी पिस्टल से एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दी। गोलियों की आवाज से वहां पर अफरा-तफरी मच गई इसके पहले की कोई समझ पाता कि क्या हुआ है। गांधी जी दुनिया छोड़कर जा चुके थे। गांधीजी की हत्या की खबर सुनकर बिरला हाउस में सन्नाटा पसर गया था, कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर हुआ क्या है। खबरों के मुताबिक, उस वक्त बिरला हाउस में जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और अंग्रेज अफसर लॉर्ड माउंटबेटन मौजूद थे। बाहर सभी लोग इस घटना की बात कर रहे थे, बिरला हाउस के बाहर लोगों का हुजूम उमड़ आया था। तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बिरला हाउस के बाहर मौजूद भीड़ को बताया कि गांधीजी अब इस दुनिया में नहीं हैं।आज तक रखी हैं गोडसे की अस्थियां
गोडसे की अंतिम इच्छा
नाथूराम गोडसे की कहानी
“आज़ादी का तोहफा”
विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र …
बापू की हत्या