न्यायपालिका प्रजातंत्र के चार स्तम्भों में से एक है। न्यायपालिका ही वो जगह है जहाँ हर किसी को इंसाफ मिलता है और अपने हक़ मिलते है। आज उसी न्यायपालिका में अपने हक़ की लड़ाई हमेशा लड़ती आ रहीं ट्रांसजेंडर स्वाति बरूआ न्याय की कुर्सी पर बैठ के न्याय करेंगी।बता दें कि 26 वर्षीय स्वाति अब असम की पहली और देश की तीसरी ट्रांसजेंडर जज हैं। LGBT (समलैंगिकों) समुदाय हमेशा से ही अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं। इसी में आते हैं ट्रांसजेंडर यानि जिन्हें आम भाषा में हिजड़ा कहा जाता है और भारत में आज भी इस मुद्दे पर बात करने से लोग कतराते हैं। समाज में हमेशा से ही LGBT (समलैंगिकों) को अलग नज़रों से देखा जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे ही ट्रांसजेंडर महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने समाज के मुँह पर अपनी क़ाबलियत का तमाचा मारा है और अपने और अपने तबके के लोगों के लिए सफलता की कई रहें खोली साथ ही अपने सपने को पूरा किया। ये कहानी है गुवाहाटी की रहने वाली स्वाति बरुआ की जो अब शहर की राष्ट्रीय लोक अदालत में बतौर जज काम करेंगीं । स्वाति को डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी द्वारा नियुक्त किया गया।कड़ी मेहनत और समाज द्वारा उत्पन्न की गयीं कई समस्याओं के बाद स्वाति ने ये मुकाम हांसिल किया। स्वाति भी बाकी ट्रांसजेंडर्स की तरह समाज के ताने सुनते हुए गुमनामी के अंधेरों में जी रहीं थी। साल 2012 में स्वाति उस वक्त चर्चा में आईं, जब अपने अधिकार की लड़ाई लड़ते हुए वह बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचीं। बता दें कि स्वाति लंबे समय से ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। वह कहती हैं, “हम ट्रांसजेंडर्स को समाज में तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। हमें बाकी इंसानों से अलग देखा जाता है।” इस नियुक्ति के बाद स्वाति का मानना है कि उनकी नियुक्ति के बाद से समाज में ट्रांसजेंडर्स के लिए एक नई राह खुलेगी और ट्रांसजेंडर्स के प्रति लोगों की मानसिकता भी बदलेगी। इस साल स्वाति ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक पीआईएल फाइल की थी, ताकि ट्रांसजेंडर के अधिकारों से जुड़े 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रदेश में लागू करवाया जा सके। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने मई 2018 में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि छह महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को नियमानुसार लागू किया जाए।