मधुमाला चट्टोपाध्याय (Madhumala Chattopadhyay), सेंटिनल जनजाति की ज़मीन पर कदम रखना मतलब मौत को सीधा न्यौता , ऐसी जनजाति से दोस्ती का रिश्ता कायम करने वाली पहली महिला
Madhumala Chattopadhyay (मधुमाला चट्टोपाध्याय )
नार्थ सेंटिनल जनजाति के लोगो को लेकर एक धारणा है की ये लोग बाहरी लोगों को मार देते है .लेकिन मधुमाला चट्टोपाध्याय एक ऐसी महिला है जिन्होंने न सिर्फ ये धारण को गलत साबित किया बल्कि सब जनजाति से अलग मानी जाने वाली सेंटिनल जनजाति के साथ दोस्ती का हाथ भी मिलाया. जिसके बदले में उन्हें मौत नहीं बल्कि दोस्ती ही मिली.
कुछ समय पहले ही में अंडमान द्वीप पर रहने वाले सेंटिनल समुदाय के लोगों ने एक अमेरिकी नागरिक जॉन एसन चाऊ की हत्या कर दी थी. aजिसके बाद से एक बार फिर सेंटिनल का मुद्दा पूरी दुनिया में उठ गया और एक बार फिर लोगो के मन में इस समुदाय के लिए काफी डर पैदा हो गया. सेंटिनल समुदे को ले कर दुनिया की नज़रों में ये छवि बन गई कि यदि इनके सामने बाहरी दुनिया से कोई आ जाए तो ये लोग उसे मार सकते हैं. लेकिन एक महिला ऐसी भी हैं जिनसे ये लोग ख़ुशी ख़ुशी मिले भी थे और आज भी उनके स्वागत लिए तैयार हैं.
ये सेंटिनल जनजाति अंडमान द्वीप पर पिछले 60 हज़ार वर्षों से रह रही है और इस जगह इनके अलावा कोई नहीं रहता जिसकी वजह से ये काफी खुखर है और बहारी दुनिया के लोगों को ले कर इनके मन में काफी दुश्मनी भी है. भारी लोगों ने इन्हें अपनी दुनिया से दूर रखा है और इन लोगों ने बहारी दुनिया को खुद से दूर रहा है .
4 जनवरी, 1991 को भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण की एक टीम इस आईलैंड के दौरे पर गई हुई थी. इस दौरे पर रिसर्च एसोसिएट के तौर पर मधुमाला चटोपाध्याय भी इस टीम की हिस्सा थीं. उस वक़्त एक ऐसा मंजर देखने को मिला जो कभी न देखा था किसी ने और न ही सुना था, जैसे ही ये टीम आईलैंड पर पहुंची तो पहली बार इस जनजाति ने किसकी का स्वागत हथियारों से नही किया बल्कि एक महिला को देखते ही उन पर हमला करने के बजाय अपने हथियार झुका दिए .और ये वजह थी मधुमाला के दोस्ताना व्यवहार | मधुबला ने अपने डर को एक तरफ रख कर इन लोगों के साथ एक दोस्ती का हाथ बढ़ाया और इस समुदाय के लोगों के करीब आने की कोशिश की . ये सब देख पूरी टीम हैरान थी क्यूंकि पहली बार बहारी दुनिया का कोई इंसान इस जनजाति के करीब जा रहा था .
ये मंजर पहली बार देखा गया था जब पहली बार सेंटिनल जनजाति के लोगो ने किसी बाहरी का अपनी दुनिया में स्वागत किया. बता दें इस टीम में 13 सदस्य थे जिनमें से सिर्फ मधुमाला ही थीं जिन्होंने सेंटिनल जनजाति की भावनाओं को समझा और उनके करीब जाने की कोशिश की . आपको बता दें कि मधुमाला चट्टोपाध्याय इस वक्त केंद्र सरकार के सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर दिल्ली में कार्यरत हैं.
ऐसा माना जाता है कि सेंटीनल्स अपनी ज़मीन पर किसी भी इंसान को पैर नहीं रखने देते हैं और अगर किसी ने ये सीमा लांगी तो इसका मतलब है मौत . लेकिन मधुमाला एक मानव विज्ञानी थी और वह सेंटिनल जनजाति पर रिसर्च करना चाहती थी जिसके चलते उन्होंने अपनी जान जोख़िम में डालकर इस आईलैंड पर जाने का फ़ैसला किया. जिसके बाद मधुमाला ने न सिर्फ इन पर रिसर्च की बल्कि इनके साथ एक दोस्ती भी कायम की.
मधुमाला चट्टोपाध्याय ने न सिर्फ़ सेंटिनल जनजाति पर रिसर्च की बल्कि ऐसी कई जनजाति हैं जो बहारी दुनिया का अपनी दुनिया में आना पसंद नही करती. मधुमाला ने भारत के मानव विज्ञान सर्वेक्षण टीम की सदस्य के तौर पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की विभिन्न जनजातियों पर लगातार छह साल तक शोध कार्य किये.और मधुमाला ही वो पहली महिला भी हैं, जिन्होंने अंडमान की एक अन्य जनजाति 'जारवा' के साथ भी दोस्ताना रिश्ता कायम किया था.
मधुमाला चट्टोपाध्याय वो महिला है जिन्होंने इन जनजातियों से बाहरी दुनिया के लोगों को रु-ब-रु कराया और बताया की हिंसक होने के अलावा इनका एक और पहलु है जिसमे ये भाषा तो नहीं समझते पर भावनाएं ज़रूर समझते हैं . साथ ही दुनिया के सामने सेंटिनल और जारवा जैसी जनजातियों के एक नयी रूप को भी दिखाया.
मधुमाला चट्टोपाध्याय आज दिल्ली में केंद्र सरकार के किसी मंत्रालय में मिड लेवल अधिकारी के तौर पर नियमित सरकारी फ़ाइलों को संभालने का काम करती हैं. बावजूद इसके उन्होंने कभी भी अपनी सफ़लता को लेकर गुरुर नहीं दिखाया. आज दुनियाभर की कई बड़ी यूनिवर्सिटीज़ में उनकी क़िताबों Tribes of Car Nicobar और Journal Papers का रेफ़्रेन्स दिया जाता है.
साथ ही मधुमाला ने निकोबार की Onge जनजाति पर भी कई साल तक रिसर्च कार्य किये. रिसर्च के दौरान जब उन्होंने Onge जनजाति के लोगों के ब्लड सैंपल लिए तो इस जनजाति ने उन्हें Debotobeti यानि कि डॉक्टर का दर्जा दिया. कई साल बाद जब भारत सरकार के अनुरोध पर मधुमाला को फिर से इस जनजाति के लोगों से मिलने का मौका मिला, तो उन्होंने मधुमाला को पहचानते हुए कहा कि उनकी बेटी वापस आ गई है.
मधुमाला चट्टोपाध्याय ने कई शोध किये लेकिन इन शोधों में अंडमान निकोबार में बसी जनजातियों पर किया गया शोध ने उन्हें एक नई पहचान दी जिसके चलते आज उन्हें बाहरी दुनिया का वो पहला इंसान माना जाता है जिसने बाहरी दुनिया और इन जनजातियों के बीच एक दोस्ती का रिश्ता कायम किया और इनके दूसरे पहलु से भी लोगों को रूबरू कराया जिसमें हिंसा नहीं बल्कि भावनाएं है .