Hindi poem - Kumar vishwas
उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही खासकर नहीं मिलती
शायरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती
रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रुह बिकती है
मै जिधर हूँ उधर नहीं मिलती