Hindi poem -Nida Fazli दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती