Saikripa-Home for Homeless
“साईंकृपा ( SaiKripa) - Saikripa-Home for Homeless दिल्ली एनसीआर में स्थित एक NGO (गैर-सरकारी संगठन ) है, जो कि वंचित बच्चों को पढ़ाने और उन्हें जीवन को नई दिशा देने का कार्य करता है।”
बच्चे मानव जाति का भविष्य हैं। “Saikripa-Home for Homeless” जैसा कि नाम से ज़ाहिर है कि साईंकृपा घर है उन सभी बच्चों के लिए जिनके सर पर छत नहीं है। बता दें सांईकृपा एक प्रयास है उन बच्चों के लिए जिन्हें हम सड़कों पर भीख मांगते हुए, शोषित होते हुए या ड्रग्स और कई गंभीर अपराध करते हुए देखते हैं, उनको इन परिस्थितियों से बाहर निकलने ले लिए और उन्हें जीवन में नई दिशा दिखाने के लिए सांईकृपा कार्यरत है। सांईकृपा NGO का उद्देश्य ऐसे ही बच्चों को घर, शिक्षा, प्रेम और स्नेह जैसी जीवन की सभी मूल बातों को बताकर वंचित बच्चों को एक अस्तित्व देना है जिससे वे न केवल जीवित रह सकें बल्कि जीवन जीना सीखें और जीवन को ख़ुशी ख़ुशी जियें।
बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं और अगर उन्हें सही समय पर सही आकार न दिया जाये तो वे बिखर जाते हैं। ऐसे ही बच्चों के लिए अपने बचपन में एक छोटा सा सपना सजाया था साईंकृपा की फाउंडर अंजिना राजगोपाल ने। अंजिना जी का कहना है कि “जब वे अपने गांव के वंचित बच्चों को पढ़ाई के प्रति लालसा दिखाते हुए जब उन्हें किताबें और ड्रम लेकर जाते हुए देखा करती थीं तो उनके ज़हन में यही आता था की वह भी एक दिन बड़े होकर वंचित बच्चों को एक घर जैसा माहौल और पढ़ाई के लिए स्कूल खोलेंगीं। घर की आर्थिक स्थिति के चलते वो ये सपना पूरा करने के लिए बस अपने बड़े होने का इंतज़ार कर रहीं थीं।” पिता की मृत्यु के बाद अंजिना ने अपने इस सपने को साकार करने और देश के वंचित बच्चों को एक सुनहरा और सुनिश्चित भविष्य देने के लिए पहल शुरु की ।
बता दें “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” में कार्यरत अंजिना राजगोपाल ने साल 1988 में वंचित बच्चों के लिए सांईकृपा नाम से एक NGO की स्थापना की। दो साल तक साईंकृपा में एक भी बच्चा नहीं आया पर उन्होंने अपना संघर्ष और अपना सपना देखना ज़ारी रखा, उन्होंने हार नहीं मानी। उसके बाद धीरे धीरे साईंकृपा में बच्चे आना शुरू हुए। कई सोशल वर्कर्स साईंकृपा से जुड़े और उन्होंने कई वंचित बच्चों को साईंकृपा में भेजा जिससे आज उन बच्चों को एक सुनहरा भविष्य मिला।
बता दें कि आज साईंकृपा में लगभग 60 वंचित बच्चे हैं जिनके लिए साईंकृपा केवल एक NGO नहीं है बल्कि उनका घर है। अंजिना राजगोपाल ने भी इन बच्चों को परिवार का पूरा माहौल दिया है। साईंकृपा में बच्चे बिल्कुल अपने घर की तरह रहते हैं और एक खास बात हैं कि यहाँ रहने वाला हर बच्चा अंजिना राजगोपाल को “मम्मी” कह कर पुकारता है। अंजिना जी में NGO में रहने वाले बच्चों को अपनी माँ दिखती है और वह भी अपने बच्चों की तरह ही उन्हें स्नेह करती हैं और उनके साथ खड़ी रहतीं हैं।
आज हम आपसे साईंकृपा के ऐसे ही एक वंचित बच्चे की कहानी साझा करने जा रहे हैं जिसको साईंकृपा और अंजिना राजगोपाल ने न केवल एक घर दिया बल्कि जीवन की नई दिशा भी दीं।
अरविन्द
ये कहानी है अरविन्द की जिनकी उम्र 22 वर्ष है। जो कि B-Tech Biotechnology, शारदा यूनिवर्सिटी के छात्र हैं। अरविन्द ने कभी न अपने माता-पिता की शक्ल देखी थी न कभी परिवार का मतलब जाना था। अरविन्द अपने नानी के घर ही रहता था पर वहां उसे घर जैसा नहीं बल्कि हमेशा ही सौतेलों जैसा व्यवहार मिला। उसके मौसी और मामा कहने को तो उसके अपने थे पर उसे वो अपनापन कभी मिला नहीं। अरविन्द सदा ही उनपर एक बोझ रहा। एक वक्त था जब न अरविन्द को परिवार क्या होता है ये पता तक नहीं था और वो पढ़ाई से तो वो कोसों दूर था। फिर उसका हाथ साईंकृपा ने थामा उसके जीवन का वो दिन था जब उसकी ज़िंदगी की बदल गई और आज अरविन्द एक नई ज़िंदगी जी रहा है। आइये जानते हैं साईंकृपा के साथ अरविन्द का सफर।
“साईंकृपा” के साथ अरविन्द का सफर अरविन्द की ज़ुबानी
मेरा नाम अरविन्द है और मेरी उम्र 22 वर्ष है। मैं शारदा यूनिवर्सिटी में बीटेक बायोटेक्नोलोजी का छात्र हूँ। मुझे मेरे माता-पिता का तो पता नहीं पर मैं हमेशा से ही अपनी नानी के यहाँ रहा था। मेरे परिवार में मेरी मौसी हैं और मामा हैं पर उनका होना न होना मेरे लिए एक बराबर है। परिवार के बारे में मुझे साईंकृपा में आने के बाद पता चला। मौसी मामा के खुद के बच्चे थे तो उनकी तरफ से मुझे कभी अपनापन नहीं मिला। मैं हमेशा ही उनमें अपना परिवार ढूंढता था पर मुझे वो कभी मिला नहीं, मिला तो बस सौतेला व्यवहार।
मैं जब 6 साल का था तब मेरी मुलाक़ात “मम्मी”(अंजिना राजगोपाल) से हुई और उस समय मानों कि मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी। मम्मी की वजह से न केवल मुझे माँ का प्यार मिला बल्कि एक परिवार मिला और मैंने शिक्षा के महत्त्व को समझा और जाना। आज मैं जो कुछ भी हूँ केवल मम्मी और साईंकृपा की वजह से ही हूँ। 6 साल की उम्र तक मैं गांव में ही रहा था वहां का रहन-सहन तौर-तरीके मेरे अंदर घर कर चुके थे क्योंकि वहां न कोई मुझे समझने वाला था न ही कोई सँभालने वाला था।जब मैं साईंकृपा आया उस वक्त मुझे ठीक से बात करना भी नहीं आता था। मुझे साईंकृपा से जुड़कर बातचीत करना आया और यहीं मैंने जीवन जीना सीखा और जीवन की मूल बातें भी सीखीं। शुरू में मेरा पढ़ाई में कभी मन ही नहीं लगता था पर जब मैं यहाँ आया और मैंने अपने साथ के बच्चों को पढ़ते हुए देखा जिसके बाद मेरे मन में भी पढ़ने की इच्छा जागृत हुई और मैंने भी अपनी पढ़ाई शुरू कर दी।
मम्मी ने मुझे पढ़ाना शुरू किया स्कूल भेजा। मम्मी के साथ मेरी ज़िंदगी में बदलाव लाने में एक और बहुत बड़ा हाथ है और वो है खुर्शीद भाई का। खुर्शीद भाई ही वो इंसान हैं जिन्होंने मुझे पढ़ाई के मायने बताये और ABCD तक लिखना सिखाया। मेरी स्कूलिंग यहाँ दिल्ली में नहीं हुई बल्कि मैंने मसूरी में रहकर पढ़ाई की है, बचपन से अब तक मेरी पढ़ाई का और मेरा सारा खर्चा मुझे साईंकृपा से से ही मिला। साईंकृपा ने ही मुझे अपने पैरों पर खड़ा किया है।
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मेरे लिए मेरी जिंदगी का सबसे खराब पहलु रहा है जब मेरी उम्र 6 साल की थी गांव में मुझे टीवी (तपेदिक) हो गई थी जिसके लिए मौसी और मामा ने ठीक से मेरा इलाज भी नहीं करवाया था। उसी समय जब मैं साईंकृपा आया तो ये कह सकते हैं की साईंकृपा की वजह से मुझे नयी ज़िंदगी मिली। मम्मी ने मेरा इलाज करवाया और मुझे एक नया जीवन दिया। बीमारी के समय मेरी पूरी देखभाल, दवाई, इलाज सब मम्मी ने ही किया।
वो समय था जब मैं गांव में था तो मुझे पढ़ाई के सही मायने तक नहीं पता था लेकिन साईंकृपा में आने के बाद मैंने पढ़ाई शुरू की और दसवीं में 85 फीसदी अंक प्राप्त किये बारवीं भी सफलतापूर्वक पास की। इसके बाद मैंने इन्द्रप्रथ यूनिवर्सिटी का भी पेपर पास किया किसी कारणवश मैं वहां एडमिशन नहीं ले पाया। उसके बाद मैंने शारदा यूनिवर्सिटी में बीटेक बायोटेक्नोलोजी में एडमिशन लिया और मैं इस साल बीटेक की फ़ाइनल ईयर में हूँ।
मेरी ज़िंदगी के आदर्श की बात की जाए तो खुर्शीद भाई मेरे लिए मेरे आदर्श हैं। मैं हमेशा ही उनकी तरह बनना चाहता हूँ क्योंकि खुर्शीद भाई इतने दयालु और अच्छे दिल के हैं और वे हमेशा ही अपनी सारी परेशानियां एक तरफ रख कर हमेशा ही दूसरों के लिए सोचते हैं। मेरे लिए तो हमेशा ही वे खड़े रहें हैं उन्हीं ने मुझे पढ़ना सिखाया स्कूल के बाद मेरी पढ़ाई के लिए वो अपना समय निकलते थे और मुझे पढ़ाया करते थे। मैं उन्हीं की तरह दयालु हृदय का और धैर्यवान बनना चाहता हूँ।
मैं आर्मी जॉइन करना चाहता हूँ और उससे मैं अपने घर साईंकृपा की मदद करना चाहता हूँ। मेरे इस सपने में मेरी मम्मी और खुर्शीद भाई भी मेरा पूरा-पूरा साथ दे रहे हैं। मैं इंजीनियरिंग के साथ साथ आर्मी की भी तैयारी कर रहा हूँ। इन सब का खर्चा भी मेरा परिवार यानि साईंकृपा ही उठा रहा है मेरी हर ज़रूरत को ये पूरा करते हैं, और मेरा भी यही सपना है कि मैं भी सफल हो कर साईंकृपा में रह रहे मेरे छोटे भाई-बहनों और मम्मी के लिए कुछ कर सकूँ।
साईंकृपा से जुड़ने से पहले की ज़िंदगी और इससे जुड़ने के बाद की ज़िंदगी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। जब मैं गांव में था तो मेरा बचपन कहीं खो सा गया था हाथ में खिलौनों और किताबों की जगह घास काटने के लिए कैंची और गाय का चारा हुआ करता था। अगर मौसी और मामा के बच्चे अंदर कमरे में पढ़ रहे होते थे तो मुझे अंदर कमरे में भी जाने की इजाज़त नहीं होती थी।बचपन की ये तस्वीरें आज मैं याद भी नहीं करना चाहता। साईंकृपा में आने के बाद मैंने अपना बचपन नए सिरे से शुरू किया और एक अपनी नई दुनिया बसाई जिसमें मेरी मम्मी थीं मेरे बड़े भाई थे और साथ ही साथ कई छोटे-छोटे भाई बहन भी थे साईंकृपा में आने के बाद मुझे एक परिवार और एक सुनहरा भविष्य मिला। जिसकी शायद मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
मैं अपने छोटे भाई बहनों और अपने जैसे वंचित बच्चों को बस यही कहना चाहता हूँ खूब मन लगा कर पढ़ाई करो और अपने पैरों पर खड़े होकर एक सुनहरे भविष्य का निर्माण करो, और साथ ही अपने जैसे बच्चों को पढ़ाओ ताकि वे भी एक सशक्त समाज का निर्माण कर सकें। इसके अलावा में एक बात और कहना चाहता हूँ कि बड़ा आदमी बनने से पहले एक बेहतर इंसान बनो।
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