दोहा :- दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं॥ अर्थ :- रहीम कहते हैं कि कौआ और कोयल का रंग एक समान कला होता हैं. जिस कारण जब तक उनकी आवाज़ सुनाई न दे दोनों में भेद कर पाना बेहद कठिन है परन्तु जब बसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं। दोहा :-रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय॥ अर्थ :-रहिम दास कहते हैं कि यदि आप अपने मन को एक स्थान पर रखकर काम करेंगे, तो आप अवश्य ही सफलता हासिल कर लेंगे, अगर मनुष्य एक मन से ईश्वर को चाहे तो वह ईश्वर को भी अपने वश में कर सकता है । दोहा :- जैसी परे सो सही रहे, कही रहीम यह देह।धरती ही पर परत हैं, सित घाम औ मेह॥ अर्थ :- रहीम कहते हैं कि जैसे धरती उस पर पड़ने वाली सर्दी, गर्मी और वर्षा सहती हैं वैसे ही मानव शरीर को सुख दुःख सहना चाहिये। दोहा :- खीर सिर ते काटी के, मलियत लौंन लगाय।रहिमन करुए मुखन को, चाहिये यही सजाय॥ अर्थ :- रहीमदस जी कहते हैं कि खीरे के कड़वेपन को दूर करने के लिये उसके ऊपरी सिरे को काटकर उस पर नमक लगाया जाता हैं ठीक वैसे ही कड़वे शब्द बोलने वालो के लिये भी ऐसी ही सजा होनी चाहिए । दोहा :-वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग । बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग॥ अर्थ :-रहीम कहते हैं कि धन्य है वो लोग जिनका जीवन सदा परोपकार के लिए बीतता है, जिस तरह फूल बेचने वाले के हाथों में खुशबू रह जाती है ठीक वैसे ही इन परोपकारियों का जीवन भी खुशबु से महकता रहता है । दोहा :- तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ अर्थ:- रहीम कहते हैं कि वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते हैं और सरोवर कभी अपना पानी नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं। दोहा:-रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि । जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार ॥ अर्थ:- रहीम दास जी कहते हैं कि बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती। दोहा :-सबको सब कोउ करै कै सलाम कै राम। हित रहीम तब जानिये जब अटकै कछु काम॥ अर्थ :-सबको सब लोग हमेशा राम सलाम करते हैं।परन्तु जो आदमी कठिन समय में रूके कार्य में मदद करे वही अपना होता है। दोहा :-कहि रहीम या जगत तें प्रीति गई दै टेर ।रहि रहीम नर नीच में स्वारथ स्वारथ टेर ॥ अर्थ :-रहीम कहते है कि इस संसार प्रेम में समाप्त हो गया है, लोगों में केवल स्वार्थ रह गया और दुनिया में स्वार्थी लोग रह गये हैं जिस कारण दुनिया खोखली हो गई है। दोहा :-दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥ अर्थ :-दुख में सभी लोग एक दूसरे को याद करते हैं, लेकिन सुख में कोई किसी को याद नहीं करता , यदि लोग एक दूसरे को सुख में भी याद करते तो दुनिया में दुख ही नहींहोता । दोहा :-जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥ अर्थ : इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। लेकिन मछली जल को छोड़ नहीं सकती और वह पानी से अलग होते ही मर जाती है। दोहा :-मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय ।फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय ।। अर्थ :-रस, फूल, दूध, मन और मोती जब तक स्वाभाविक सामान्य रूप में है ,तब तक अच्छे लगते है लेकिन यह एक बार टूट-फट जाए तो कितनी भी युक्तियां अपना लो वो फिर से अपने स्वाभाविक और सामान्य रूप में नहीं आते । दोहा :-बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय ।रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।। अर्थ :-रहीमदास कहते हैं कि मनुष्य को बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए । क्योंकि अगर किसी कारण से कुछ गलत हो जाता है, तो इसे सही करना मुश्किल होता है, क्योंकि एक बार दूध खराब हो जाये, तो हजार कोशिश कर ले उसमे से न तो मक्खन बनता है और न ही दूध । दोहा :-एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥ अर्थ :- इस दोहे में दो अर्थ है ,जिस प्रकार किसी पौधे के जड़ में पानी देने से वह अपने हर भाग तक पानी पहुंचा देता है । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही भगवान की पूजा-आराधना करनी चाहिए । ऐसा करने से ही उस मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए । तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे। दोहा:- रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय | सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय ॥ अर्थ : रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता। दोहा :-रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार | रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ॥ अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए। दोहा :- चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह। जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह अर्थ :- जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं। दोहा :- जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥ अर्थ :- जो लोग गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं. जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं। दोहा :- जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय॥ अर्थ :- दिये के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं. दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं। दोहा :- रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥ अर्थ :- रहीमदस जी कहते हैं कि संकट आना जरुरी होता हैं क्योंकि इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित और बुरा सोचता हैं।