भविष्य जानने के लिए कभी कभी इतिहास में झांकना पड़ता है और वर्तमान को समझना पड़ता है। इस प्रश्न का उत्तर तो एक ही लाइन में है लेकिन इसे सभी पक्ष को ध्यान में रखते हुए समझते हैं। मोदी जी के विषय में अंत में बात करेंगे क्योकि पहले बुरा भाग ही देखना हम पसंद करते हैं। महागठबंधन में सभी दलों में कुछ बातें एक जैसी है, इसे दो शब्दों में बेशर्मी और लोलुपता कह सकते हैं। देश का प्रधानमंत्री ऐसा होना चाहिए जो औसत शिक्षित हो तब भी चलेगा लेकिन उसे देश का इतिहास, वर्तमान, संस्कृति, देश की कमजोर और मजबूत पक्ष पर अच्छी पकड़ हो। वैसे भी इस देश का स्वर्णिम युग तभी था जब ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड या आधुनिक शिक्षा पद्धति नही था। प्रधानमंत्री पद के योग्य वही व्यक्ति हो सकता है जिसके सम्पूर्ण जीवन के रेकॉर्ड को जनता अच्छी तरह से जानती हो। दिमाग पर बहोत जोर देने के बाद भी मुझे ऐसा कोई नेता नही दिखता जो मोदी जी को टक्कर दे सकता हो अन्यथा वो अकेले चुनाव लड़ता। खुद बीजेपी में मोदी जी के टक्कर का कोई नही है। मान लेते हैं महागटबंधन जीत जाता है और इसके लिए निम्न उम्मीदवार हैं दावेदार: नरेंद्र मोदी : एक निर्धन परिवार में पैदा हुए मोदी जी ने बचपन में चाय बेचा। कम आयु में हुई शादी से किनारा करते हुए गृह त्याग कर दिया। हिमालय पर जीवन के चार वर्ष बिताये। वापस आकर संघ के कार्यो में लगे। आज जहां हम इस पर चर्चा करते हैं कि पत्नी खाना क्यो बनाये, पति क्यों ना बनाये वही दूसरी तरफ मोदी जी सूर्योदय से पहले उठकर सफाई करके अपने सभी संघ भाइयों के लिए चाय नाश्ता बनाते थे और उसके बाद जो भी उनका कार्य होता था दिन भर उसमे लगे रहते थे। चाय नाश्ता बनाने से लेकर गुजरात का मुख्यमंत्री और उसके बाद देश के प्रधानमंत्री बनने तक का सफर अपने दम पर हासिल किया। कर्मयोग की परिभाषा का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। अपना बेस्ट देने की क्षमता के कारण ये सीढ़ी दर सीढ़ी सफलता को प्राप्त करते हुए यहां तक पहुंचे। ये अकेले ऐसे नेता हैं देश में जिनका परिवार आज भी वैसे ही जीता है जब इनका कही कोई नाम नही था। अब तक के जीवन में ना किसी घोटाले का कलंक और ना ही किसी और प्रकार का कलंक। जो नेता आतंकियो की हिट लिस्ट में है, जिसके नाम से पाकिस्तान को तकलीफ होती है वो अपने आप में ये बताने के लिए पर्याप्त है कि मोदी जी के टक्कर में कोई नही। बाकि जनता जनार्दन तय करेगी।
महागठबंधन में कौन सा नेता देगा मोदी को टक्कर-
राहुल गांधी: इनके विषय में क्या कहा जाये। चांदी का चम्मच लेकर मुंह में पैदा होने के बाद भी ना इनका छात्र जीवन अच्छा था और ना ही इनके दिमाग का अब तक विकास हुआ। इनसे आम लोगों को एक बड़ी सीख मिलती है। चाहे कोई कितना ही पैसे वाला हो या फिर कितना ही अच्छी अंग्रेजी बोलने वाला हो, उसका कर्म और वाणी उसके औकात को बयान कर देती है। मासूम समझा जाने वाला असल में कितना शातिर और कपटी है वो इन बीते वर्षों में दिख चुका है। सदन में दो बार आंख मारने वाली हरकत, डोकलाम पर बिना सरकार की अनुमति के चीनी राजदूत से मिलना, विदेशी धरती पर देश की धरती की संस्कृति का अपमान करना, संघ की तुलना आतंकवादी से करना और बहोत से इनके कुकर्म इनके चरित्र को उजागर करते हैं। इस तरह से और जितने भी दलीय नेता बचते हैं उनका वर्णन उपरोक्त लोगों जैसा ही है। अब बात करते हैं उसकी जिसने सबको एक कर दिया, मतलब भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की। ममता बनर्जी: इन्होंने जिस विषय में पढ़ाई की है इसका असर साफ दिखता है। अगर ये प्रधानमंत्री बनती हैं तब हमे दुर्गापूजा, दिवाली, होली और जितने भी हजारों वर्षो से मनाये जाने वाले त्योहार हैं उसे अपने ख्वाबो में मनाना पड़ेगा। भगवा रंग पर प्रतिबंध लग जायेगा। जिस गति से पश्चिम बंगाल में संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या हो रही है वो देश भर में दिखेगा। यूं समझ लीजिये कि देशवासी पूतना की गोद में पल रहे होंगे। पश्चिम बंगाल अगला कश्मीर बनेगा सबसे पहले, इसके बाद अन्य राज्यों का नंबर आयेगा। विकास के नाम पर अब तक इन्होंने क्या किया वो कभी टीवी या अखबार में नही दिखा। इनके उपलब्धि के नाम पर मुख्य रूप से दंगे और घोटाले हैं। 20 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी है, केंद्र में है, और इसी पार्टी के नेताओं को ये बंगाल में नही आने देने का ऑर्डर देकर सरकार को ही तानाशाह कहने का आधारहीन तर्क भी देती है। मायावती: इन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि देशहित में इन्होंने गेस्ट हाउस कांड भुला दिया। जो अपनी इज्जत पर हाथ डालने वाले को गले लगा सकती है लेकिन उसी गेस्ट हाउस कांड में इनकी जान बचाते हुए मरने वाले ब्रह्मदत्त द्विवेदी को याद नही कर पायी वो देश का कितना हित सोचती होगी समझ में आता है। मनुवादी को गाली की तरह प्रयोग करने वाली मायावती को खुद नही मालूम कि इन्हें सत्ता के अलावा कुछ और भी प्रिय है। इनके विकास के नाम पर पार्क है, इनकी मूर्तियां हैं और दंगे का इतिहास है। अखिलेश यादव: मुख्यमंत्री बनने से पहले इनके अय्याशी भरे जीवन के अलावा किसी और बात का रेकॉर्ड नही है। वैसे भी ये एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बने थे। पहले टर्म में इतनी गुंडई हुई कि अखिलेश यादव जैसे युवा और विदेश में पढ़े लिखे बेटे को मुलायम सिंह यादव ने दूसरे टर्म में मुख्यमंत्री बनाया। तब इन्हें पता नही था कि अपना ही बेटा आस्तीन का सांप निकलेगा। दूसरे टर्म में इनके मुख्यमंत्री बनने से कोई फर्क नही पड़ा। मंदिरों में घंटी बजाने पर रोक, पुलिस थाने में जन्माष्टमी मनाने पर रोक, गुंडो आतंकियो को संरक्षण जैसे सपा ब्रांड कार्य होते रहे। इनका विकास थोड़ा अलग किस्म का रहा। इन्होंने शिलान्यास को ही उद्घाटन बना दिया। सरकारी खजाने का उपयोग इन्होंने कैसे बने करोड़पति में लगाया। इनकी बुआ भी इसमे टक्कर की ही थीं। तेजस्वी यादव: लालू यादव के दोनो बेटों ने राजनीति में आने से पहले ऐय्याशी और मस्ती के अलावा कुछ नही किया। 1 जनवरी 2008 में इन दोनो भाइयों की लड़की छेड़ने के आरोप में नकाबपोश लोगों द्वारा पिटाई भी हो चुकी है। जिस नीतीश कुमार को ये सुबह शाम ट्विट्टर पर कोसता है अराजकता को लेकर उसका सच ये खुद भी जानता है। दो दशक के शाशन में राजद ने बस गुंडे, नक्सली की फौज तैयार करी जो नीतीश कुमार के 5–10 के शाशन काल में तो नही खत्म होने वाले। इस बंधन के सभी नेता तुष्टिकरण के सहारे आगे बढ़े। अरविंद केजरीवाल: कांग्रेस को गाली देकर लेकिन असल में कांग्रेस के प्लान 2 के रूप में केजरीवाल भारत की राजनीति में उभरे। इनका सत्य आज पूरा देश जनता है। पाक प्रिय केजरीवाल असल में विदेशी चंदे और अजेंडे की उपज है। इससे ज्यादा इनके बारे में लिखना समय नष्ट करना है। अगर ये इतने ही काबिल होते जैसा इनके समर्थक गाते हैं तब इनके 5 साल की नौकरी में कुछ तो क्रांतिकारी कदम की बात आज हो रही होती क्योकि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं। इन्हें भारत से ज्यादा पाकिस्तान की चिंता है। अभी कुछ दिन पहले इन्होंने बोला था कि मोदी शाह फिर आ गये तो पाकितान को बर्बाद कर देंगे।