हर चुभती हुई चीज़
हमेशा खराब नहीं होती है
मशीन की सुई जब चलती है रंगीन कपड़ों पर
तो एक बेहतरीन पोशाक तैयार होती है।
सिलाई मशीन की नाचती हुई सुई
गरीब का सहारा बन जाती है
सिलती है कपड़ों को फटाफट
और उसका परिवार चलाती है।
सुई गरीबों का वरदान होती है
लगा देती है थिंगरे उनके फटे कपड़ों पर
और बचा कर खर्चा नए कपड़ों का
वह उनकी मददगार होती है।
लगाता है डॉक्टर जब इंजेक्शन
तो सुई बहुत जोर से चुभती है
मगर इसी चुभती हुई सुई की दवा
मरीज़ की तबियत ठीक कर देती है।
सुई की फ़ितरत तो हमेशा
जोड़ने की होती है
डॉक्टर की सुई तो
कटे फटे अंगों को भी जोड़ देती है।
काश! कोई ऐसी भी सुई होती,
जो दो टूटे हुए दिलों को जोड़ देती
सिल देती बिखरे हुए ख्वाबों को
और उनके सपनों को उड़ान देती।
© प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर (म.प्र.)