इन बिखरे टूटे सूखे पत्तों पर
पाँव बहुत अदब से रखना
कल तक इन्होंने ही बचाया था धूप से
इनको बिदराने की कोशिश न करना।
बुझे हुए इन दियों को
जरा सम्भाल के उठाना
कल इन्होंने ही दी थी जगमग रोशनी
तब दिवाली मना पाया था जमाना।
खुद जलकर दूसरों को रोशनी देना
इन दियों की फ़ितरत होती है
तिमिर को चीरकर इनमें
फ़िज़ा को रौशन करने की हिम्मत होती है।
माना कि इस संघर्ष में
साथ देते हैं तेल और बाती
मगर आवरण न होता दीपक का
तो ये लौ कहाँ से जल पाती।
बूढ़े होते मां-बाप पर कभी एहसान न दिखाना
अपनी धन-दौलत का रुतबा न जमाना
उन्होंने लुटा दी जवानी की ऊर्जा सारी
तब बन पाई है ये तक़दीर तुम्हारी।
दे सको तो भरपूर सम्मान उनको देना
ले सको तो उनसे अनुभव के मोती ले लेना
बैठकर थोड़ी देर पास उनके गपशप कर लेना
और आशीष से उनके अपना खज़ाना भर लेना।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)🇮🇳