दिव्या व मानसी बात कर ही रही थीं कि दिव्या के कक्ष में दिव्य ने प्रवेश किया ।
"अरे दिव्य ,मेरा लाड़ला बेटा ,आओ ,आओ ।"दिव्या ने उठकर आगे बढ़ते हुए दिव्य प्रताप भानु से स्नेह का गागर उडे़लते हुए कहा ।
दिव्य माँ व मानसी के चरण -स्पर्श करता हुआ बोला -"माँ मैंने और कनक ने मनाली जाने का प्रोग्राम बनाया है ,मैं पिताजी की आज्ञा ले आया हूँ ,आपसे आशीर्वाद लेने आया हूँ ।"
"ये तो बहुत अच्छा है दिव्य ,तुम्हें व कनक बहू को जाना ही चाहिए मगर तुम्हारे विद्यालय से तुमने छुट्टी ले ली है !!" दिव्या ने दिव्य को अपने पास बैठाते हुए पूछा ।मानसी समीप ही खडी़ हो गई।
"हाँ माँ मैं वहाँ अध्यापक भले हूँ मगर वहाँ चलती मेरी ही है तो मैं पर्याप्त छुट्टी लिए हूँ ।"
"फिर सही है ।"दिव्या ने कहा ।
मानसी अपने कक्ष में चली गई ।अगले दिवस दिव्य व कनक मनाली रवाना हो गए।
समय अपने चक्र से आगे बढा़ और फिर एक दिन मानसी ने दिव्या के कक्ष में जाकर उसे कुछ सूचना दी ।दिव्या खुशी में झूम उठी ,, हवेली में फिर एक बार नन्हीं किलकारियाँ गूंजने का शुभ समाचार दिव्या के कानों ने सुना था ।
दिव्या ने सूर्य प्रताप को सूचना भिजवाई कि आप दादा जी बनने वाले हैं ,सूर्य प्रताप भी प्रसन्न हुए ।
अपनी छुट्टियाँ मनाकर दिव्य व कनक वापस लौट आए और दिव्य ने भी माँ दिव्या को सूचना दी कि तैयारी कर लीजिए माँ , आप दादी बनने वाली हैं ।
दिव्या की खुशी का पारावार न रहा और ये सूचना सूर्य प्रताप को भी हर्ष के नीर से स्नान करा गई ।
दिव्या ने सूर्य प्रताप को हवेली के भीतर कक्ष में बुलाया जहाँ वो शिव प्रताप व मानसी को पहले ही बुलावा भेज चुकी थी और शिव प्रताप व मानसी दिव्या के कक्ष में आकर बैठ चुके थे ।
सबकी उपस्थिति में दिव्या ने सूर्य प्रताप से कहा -" देखिए मानसी की गोद भी भरने वाली है और मेरे लाड़ले दिव्य की कनक की भी तो मैं ये सोच रही थी कि क्यों न हम गरीब जनों को दो -दो शुभ सूचना मिलने के कारण मिठाइयाँ व वस्त्र भेंट करें ।"
सूर्य प्रताप ने पहले कनक की तरफ देखा फिर मानसी की तरफ देख कर बोले -" पहले वो दिन तो आने दो जब इस हवेली को दो -दो पौत्र मिलें , मुझे तो अंदेशा है कि एक से पुत्री न आ जाए !! दोनों तरफ से पौत्र हुए तब ही असल खुशी मनाई जाएगी ।"इतना कहकर सूर्य प्रताप मानसी की तरफ एक नज़र डालकर चले गए।
शिव प्रताप को समझ आ गया था कि पिता सूर्य प्रताप का संकेत उसकी पत्नी मानसी की तरफ था और उसका मन क्षोभ से भर उठा मगर दिल की अच्छी मानसी ने इस तरफ ध्यान ही न दिया क्योंकि उसे कुछ पता ही न था ।
जहाँ एक तरफ हवेली ने दो -दो शुभ सूचनाओं का स्वाद चखा था वहीं दूसरी तरफ मनिका के आए पत्र से श्रीधन व सुरतिया परेशान व व्यथित हो उठे थे । मनिका ने अपने पत्र में जो अपने पिता श्रीधन को लिखा था उसका निचोड़ ये था कि नंदिनी के पति नवीश को व्यापार में इतना घाटा हुआ था कि नवीश को कर्ज लेने तक की नौबत आ गई थी और कोई भी उसे कर्ज देने को तैयार न था ।
लोग ये सोचकर उसे कर्ज न दे रहे थे कि पता नहीं लौटा पाए न लौटा पाएं ,यद्यपि नवीश की व्यापार क्षेत्र में साख अच्छी थी पर फिर भी रुपए,पैसे के मामले में लोग बहुत सोच कर ही निर्णय लेते थे क्योंकि ये रुपया अच्छे अच्छे संबंधों में कड़वाहट घोल देता है ।
मनिका ने पिता श्रीधन को ये भी बताया था कि उसका विवाह नंदिनी ने अपने घर के सामने ही रहने वाले एक व्यक्ति से करा दिया था ।वो जब दिनभर कार्य करने जाता तब मनिका नंदिनी के पास बनी रहती और फिर पति के आने पर वो अपने घर चली जाती थी ।
मनिका ने पिता श्रीधन को स्पष्ट कर दिया था कि ये बात शिव दादा को न बताएं क्योंकि नंदिनी ने शिव दादा को पत्र न लिखा इस संबंध में ये सोचकर कि भैया उसकी मदद कर न पाएंगे और मदद न कर पाने के कारण वो दुखित हो जाएंगे ।
श्रीधन व सुरतिया ने नंदिनी को अपनी मनिका के बराबर ही स्थान दिया था अतः नंदिनी के लिए दोनों बहुत चिंतित हो उठे थे और क्या किया जाए इस उधेड़बुन में लगे हुए थे।
इधर सूर्य प्रताप ने दिव्य को अपने पास बुलाकर उससे कहा -" दिव्य प्रताप बेटा , तुम अब चूंकि शिक्षक हो गए हो तुमपर दोहरी जिम्मेदारी हो गई है ,अपनी नौकरी भी देखना और हजारों एकड़ की भूमि पर उत्पन्न फसल से प्राप्त धन के सही से रखरखाव की भी अतः तुम श्रीधन के नेतृत्व में गोपी को अपना मुनीम रख लो वो रुपए का रखरखाव कर तुम्हें सब हिसाब-किताब देता रहेगा ।
अब दिव्य असमंजस में पड़ गया !रुपए-पैसे के मामले में तो वो किसी पर भरोसा न करने वाला था और पिता को मना करने का अर्थ उनके मन में अपनी छवि खराब करना था ।
वो ऐसा उपाय सोचने लगा जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।
श्रीधन व सुरतिया बहुत विचार विमर्श करते रहे कि कैसे नंदिनी बिटिया की मदद की जाए !!
आखिर नंदिनी उनके लिए मनिका के जैसी ही थी !
गोपी को इस संबंध में कुछ भी पता न था क्योंकि वो कभी भी मनिका का पत्र न पढ़ता और न ही उसके पास समय होता कि वो पिता श्रीधन से बहन के विषय में हाल चाल ले ,, वो तो दिव्य के साथ ही लगा रहता था फिर चाहे वो हवेली हो या फिर दिव्य का विद्यालय ।
श्रीधन दिव्य प्रताप भानु के विद्यालय से आने की प्रतीक्षा करने लगा और वो जैसे ही आया वैसे श्रीधन दिव्य के पास पहुँचा ।
"क्या बात है काका ! कुछ कहना है क्या ?" दिव्य ने श्रीधन को देखकर पूछा ।..........शेष अगले भाग में।