दिव्यांश प्रताप भानु का विवाह कुशलतापूर्वक निपट गया था और शिवन्या और शिवल्या अपने अपने पतियों के साथ अपने ससुराल वापस जाने के लिए सामान बांध रही थीं ।
सामान बांधने के बाद शिवन्या और शिवल्या दोनों मां मानसी के कक्ष में गईं और शिवन्या ने मां के पास बैठते हुए कहा -" मां हम दोनों को जो व्यवहार करना था वो हम लोग करके अब अपनी अपनी ससुराल वापस जा रहे हैं पर एक बात बताइए जरा, दिवी दादा वाली भाभी की अब मुंह दिखाई की रस्म होगी तो कुछ सोचा है उनको मुंह दिखाई में उपहार में देने के लिए !!"
मानसी ने कहा -" हां इस विषय में मैं और तुम्हारे पिताजी भी कल रात को बात कर रहे थे , दिवी ने तुम दोनों को तुम दोनों के विवाह पर अपनी कमाई से उपहार में जेवर दिया है , तो उसकी पत्नी को उपहार में जेवर तो देना ही है , वो अपनी तरफ से व्यवहार चला रहा है तो उसका व्यवहार हमें भी चलाना है , राग प्रताप और उसकी पत्नी दामिनी उसके विवाह में सम्मिलित नहीं हुए तो उनसे कोई मतलब भी नहीं बनता है ।
तुम दोनों को जितने वजन के जेवर उसने दिए हैं उतने उतने वजन के दो जेवर लेकर एक अपनी तरफ से दे दूंगी और एक राज प्रताप अपनी तरफ से दे देगा ,सही है ना !!"
" हां और क्या !!" शिवल्या बोली ।
मां ,पिता और भाइयों से विदा लेकर दोनों ससुराल वापस चली गईं ।
शिव प्रताप भानु का मन पिता सूर्य प्रताप भानु और मां दिव्या के अभी तक हुए व्यवहार और पक्षपात से खिन्न हो होता जा रहा था जो उसके स्वास्थ्य पर असर डालने लगा था ।
बात अब उसकी नहीं उसके बेटों की थी ,उनके भविष्य की थी ,अपने कारण हो रहे उनके साथ अन्याय की थी।
शिवल्या के विवाह के धीरे-धीरे तीन साल हो गए थे और दामिनी का मन सोचने लगा था कि शिवाली दीदी के विवाह के नाम पर पिताजी के कानों में जूं तक न रेंग रही है, पिताजी और मां कब तक जिएं किसे पता है !! उनके न रहने के बाद ये पागल कहीं हमें न ढो़नी पड़ जाए !! सो एक रात्रि पिता ससुर शिव प्रताप भानु को भोजन परोसते हुए दामिनी ने उनके मन का हाल जानने को अप्रत्यक्ष ही, भोजन कर रही शिवाली की तरफ देखकर कहा -" जब शिवाली दीदी भी ब्याह कर अपने ससुराल चली जाएंगी तब तो घर में रहा रहा न जाएगा ।"
शिव प्रताप भानु ने दामिनी बहू की बात सुनकर पास बैठी भोजन कर रही शिवाली के तरफ स्नेह से देखते हुए कहा -
" इसे कहीं न भेजूंगा ,ये तो सदा मेरे पास ,मेरे साथ ही रहेगी।"
ये सुनकर दामिनी के चेहरे का रंग ही उड़ गया ..... वो अब अवसर पाते ही शिवाली के कान भरने लगी -" शिवाली दीदी ,आपका भी कितना मन करता होगा कि मेरा भी ब्याह हो ,अपना घर हो , ढे़र सारी साड़ियां और जेवर हों , मैं भी ठाठ से अपने पति के साथ आऊं जाऊं !! पर पिताजी तो आपको चाहते ही नहीं !! चाहते होते तो आपका भी ब्याह करते !!
आप चाहती हो कि आपका भी ब्याह हो तो पिताजी से हठ करो कि मेरा भी ब्याह करें ,मुझे भी ब्याह करना है !!"
शिवाली का मासूम मन भी दामिनी भाभी की बातों में आने लगा कि पिताजी मेरा ब्याह तो करना ही नहीं चाहते !!
एक दिवस राग प्रताप भानु ने दामिनी को शिवाली के कान भरते हुए सुन लिया और उसने दामिनी से कहा -" दामिनी शिवाली को क्यों भड़का रही हो ! उसका ब्याह !! उसे कौन झेल पाएगा !!"
" पतिदेव इसीलिए तो शिवाली दीदी के कान भर रही हूं ,इनका ब्याह न हुआ तो इन पर जान छिड़कने वाले जेठ जी भी इनसे किनारा कर लेंगे और इन्हें जीवन भर हमें झेलना पड़ेगा!!"
राग प्रताप भानु को दामिनी की बात में दम लगा ।
अब शिवाली जब देखो तब शिव प्रताप भानु से कहने लगी - " पिताजी दोनों दीदी को ब्याह कर उनके घर भेज दिया पर मुझे क्यों अपने पास बिठाले हैं,मुझे भी अपना घर चाहिए जहां कोई मुझे तमाचा मारने वाला न हो !! कोई मुझे यहां लेकर आए और फिर ले जाए !!"
शिव प्रताप भानु भी समझ रहे थे कि जुबान तो मेरी शिवाली की है मगर इस जुबान पर शब्द छोटी बहू दामिनी के चढा़ए हैं ,,,
मगर बहू से क्या कहते ! मानसी से कुछ भी कहकर वो उसका दुख बढा़ना न चाहते थे !! एक मां के बेटों के साथ अन्याय तो उनकी मां दिव्या ही सह सकती थी , पर उसके बेटों की मां मानसी नहीं ......
वो जानते थे कि राज प्रताप को बताऊंगा तो वो इस संबंध में राग प्रताप को अपनी पत्नी को समझाने के लिए अवश्य कहेगा और राग प्रताप इस बात पर कैसी प्रतिक्रिया करे ये तो पता न था ,फलत: वो शिवाली की बात को अनदेखा करते रहे मगर एक दिवस हद हो गई,शिवाली ने हठ पकड़ ली कि जब तक मेरा ब्याह तय न कर देंगे तब तक मैं भोजन ही न करूंगी ,भूखी बैठी रहूंगी !!
बात राज प्रताप से भी छुपी न रह गई , और शिव प्रताप भानु असमंजस में पड़ गए कि अब इसका ब्याह न तय करूं तो ये तो भोजन ही न करेगी और तय करूं तो किसके साथ !! मेरी मासूम ,भोली बच्ची के साथ निर्वाह कौन करेगा भला !!
राज प्रताप भानु अचरज में पड़ गया कि शिवाली के दिमाग में ये बात कौन भर सकता है !! सोचते-सोचते उसे उस रात्रि की दामिनी की बात स्मरण हो आई कि जब शिवाली दीदी भी ब्याह कर अपने घर चली जाएंगी तो घर में रहा रहा न जाएगा।
वो समझ गया कि ये काम दामिनी बहू का ही है मगर जेठ होने के कारण वो दामिनी से कुछ कह न सकता था और राग प्रताप से कहकर घर की शांति भंग न करना चाहता था ,उसे भी समझ आ रहा था कि वैसे भी पिताजी अब परेशान रहने लगे हैं ,उनका स्वास्थ्य भी अब सही न रहता है और कोई नया बखेड़ा खड़ा होगा तो वो और टूट जाएंगे !!.......शेष अगले भाग में।