शिवाली के लिए इसके आगे एक शब्द भी कहा तो मैं तुम्हारी जुबान खींच लूंगा ,मुझे शिवाली के लिए ऐसे शब्द सुनना कदापि स्वीकार नहीं है , तुम्हें पूरी सौ एकड़ भूमि चाहिए ना , ठीक है तुम्हें पूरी सौ एकड़ भूमि मिल जाएगी , शिवाली को बची सौ एकड़ भूमि में से पचास एकड़ दी जाएगी बस !!" राज प्रताप भानु ने क्रोध में भरकर राग प्रताप भानु का कालर पकड़ते हुए कहा ।
"बस करो !! घर न हो गया रणक्षेत्र हो गया जहां दोनों जैसे एक दूसरे के खून के प्यारे हुए जा रहे हैं !! " भीतर से उठकर बाहर आई दिव्या चीखी ।
यह सब शिव प्रताप भानु के स्वास्थ्य पर बहुत असर डाल गया और उन्होने बिस्तर पकड़ लिया , सारे के सारे घटनाक्रमों के तंतु उनके मन को छेदने लगे , उन्हें व्यथित करने लगे और उन्हें अब शिवाली का ब्याह करना वास्तव में आवश्यक लगने लगा क्योंकि वास्तविकता तो यही थी कि उनकी शिवाली मानसिक रूप से बाकी सबकी भांति स्वस्थ न थी और भविष्य किसने देखा है !
आज बड़े भाई राज के ह्रदय में बहन का प्रेम हिलोरें ले रहा है ,आगे चलकर अगर उसका भी मन शिवाली से भर गया तो शिवाली का क्या होगा !! राग प्रताप तो पहले ही उसका उत्तरदायित्व लेने से हाथ जोड़ रहा है !!
अब शिव प्रताप भानु बिस्तर पर पड़ने की वजह से न खेतों में जा पाते और न ही श्रीधन से उनकी मुलाकात व बात ही हो पाती ,, जब से राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु खेतों में कार्य करने वाले हुए थे तब से शिव प्रताप भानु श्रीधन से वैसे भी अपने खेतों में कार्य न कराते थे ,श्रीधन उसके दिए हुए खेत के टुकड़े पर ही खेती करता था ,पर अब वो भी बूढ़ा हो चला था तो उसके चलते खेत पर गोपी कार्य करता था ,वो तो जब शिव प्रताप भानु खेत पर भोजन लेकर आते तो उनके समीप बैठकर भोजन करते उनकी हर छोटी-बड़ी बात सुनता और उनको दिलासा देता था ।
शिव प्रताप भानु के खेतों पर न आने से श्रीधन को उसकी चिंता हो रही थी ,पर वो शिव प्रताप भानु का हाल चाल पूछता भी तो किससे ! वो भली भांति जानता था कि शिव बाबू के बच्चे मुझे पसंद न करते हैं क्योंकि राज प्रताप और राग प्रताप दोनों ही उससे अभिवादन करना तो दूर उसकी तरफ देखते भी न थे ।
पिता के बिस्तर पर पड़ जाने से और राग प्रताप के सहयोग न मिलने की वजह से शिवाली के ब्याह की सारी तैयारी राज प्रताप भानु को अकेले ही करनी पड़ रही थी ,राग प्रताप भानु ने तो उस दिवस के बाद से ही दादा राज प्रताप से बात तक न की थी ,ये सब भी शिव प्रताप के मन को निरंतर व्यथित करता जा रहा था ,साथ ही साथ उसे पिता सूर्य प्रताप भानु के साथ ही मां दिव्या से भी नफरत हो चली थी क्योंकि वो मां थीं ,मां तो अपने बेटे के लिए उसके अधिकार के लिए सारे जहां से लड़ जाती है ,,,यहां तो अपने पति ही थे जिनसे उन्हें अपने बेटे और अपने पौत्रों के अधिकार के लिए आवाज उठानी थी मगर उन्होने ऐसा कुछ करने का प्रयास तक न किया था ।
एक दिवस राज प्रताप भानु खेत में जाने को घर से निकला तो सामने से दिव्यांश प्रताप भानु आता दिखा ।
दिव्यांश प्रताप ने आगे बढ़कर राज प्रताप भानु के चरण-स्पर्श करते हुए कहा -" दादा प्रणाम ।"
"खुश रहो दिव्यांश ,कैसे हो ?" राज प्रताप भानु ने पूछा ।
" सही ही हूं दादा ।" दिव्यांश प्रताप ने बुझे मन से कहा ।
"लग तो न रहे हो !" राज प्रताप ने कहा ।
" जानते हो दादा , मेरा मन अब घर में न लगता है , किसी से बात करने का मन न करता है ,सब के सब बस अपना स्वार्थ देख रहे हैं ,मेरे पिता भी ....... आप जानते हैं अभी कुछ दिवस पूर्व पिताजी ने बाबा से जाकर कहा कि "पिताजी जमाना अब बहुत बदल रहा है और तिजोरी भर के जेवर घर पर रखना सुरक्षित नहीं है तो क्यों न बैंक में लाॅकर खुलवा कर सारे जेवर वहां रख दिए जाएं !"
बाबा ने कहा -" ऐसा है तो बैंक में लाॅकर खुलवा लो और जेवर वहां रखवा दो ।"
पिताजी के ऐसा कहने के पीछे की मंशा क्या मैं समझता नहीं हूं ! ऐसा करके पिताजी तिजोरी के समस्त जेवर अपने कब्जे में लेना चाहते हैं ताकि अगर भविष्य में बाबा का खून आप लोगों के प्रति हिलोरें ले और वो आप लोगों में उन जेवरों का बंटवारा करना चाहें तो भी न कर सकें !!
दादी जब रात में बाबा के पास बात करने आईं तब बाबा बरामदे में थे , उन्होने बाबा से बात की और बाबा ने मुझे व दिवाकर प्रताप को बुलाकर कहा कि तुम्हारी दादी ,तुम दोनों की बहू को मुंह दिखाई में कुछ जेवर देना चाहती हैं तो वो तिजोरी खोल दें और तुम दोनों को जो पसंद आए वो तुम निकाल लो ,फिर सारे जेवर बैंक के लाॅकर में रखवा दिए जाएं ,फिर जब दिनकर प्रताप का विवाह ,जो कि तय हो रहा है , हो जाए तब उसकी पत्नी को जेवर तो कनक बहू ही लाॅकर से निकलवा कर दे देगी।
ये सब सुनकर मेरा तो मन खराब हो गया , आप लोगों का हिस्सा मारकर मुझे मेरा हिस्सा दिया जाए वो मैं कदापि लेना न चाहता हूं , मैंने और मेरी पत्नी ने मन बना लिया है कि दिनकर प्रताप के विवाह के बाद हम कहीं अलग घर लेकर रहेंगे और हम दोनों जितना कमाते हैं उसी में संतुष्टि भाव से रहेंगे , बाबा और दादी के इन आचरणों से मुझे दोनों से नफरत सी हो चली है ।"
दिव्यांश प्रताप के द्वारा ऐसा सुनकर उसके मन में भी दादी दिव्या के लिए बेतहाशा नफरत भर गई , दिव्यांश प्रताप के द्वारा ही उसे पता चला कि कनक चाची अब चाचा के साथ वहीं रहने लगी हैं तो बाबा के लिए भोजन दिव्यांश प्रताप की पत्नी ही बना रही है ।
राज प्रताप ने मां मानसी को ये सब बताया और मानसी के द्वारा शिव प्रताप तक बात पहुंची , ये सारी बात शिव प्रताप के मन पर एक और प्रहार कर गई............शेष अगले भाग में।