पक्षियों का वो राजा कहलाता,
मुकुट पहन मेरी छत पर आ जाता।
कुहू-कुहू की आवाज़ लगाकर,
अपनी मोरनी को वो बुलाता।।
जब चलती ठण्डी पुरवाई,
मन उसका आनन्दित हो जाता।
अपने सुन्दर पँख फैलाकर,
मस्त मगन वो नाच दिखाता।।
थोड़ी सी आहट पाकर वो,
पँख समेट खड़ा हो जाता।
कितनी कोशिश कर लो तुम फिर,
वो न अपना नाच दिखाता।।
राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा पाकर ,
वो गर्व से फूला नहीं समाता।
मोर पँख धारण करते हैं कान्हा,
यह देख वो धन्य हो जाता।।
कोई सम्पूर्ण न हुआ है जग में,
ऐसी सीख हमें दे जाता।
इतने सुन्दर पँख वो लेकर,
अपने पैर देख लज्जित हो जाता।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर