किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार श्रमिक है | प्रत्येक युग और काल में अपने श्रम के बूते पर श्रमिक ने दुनिया की प्रगति और उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया है | सड़क हो या घर , सुई हो या हवाई जहाज सबके निर्माण में श्रमिक के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता | भाखड़ा डैम हो या ताजमहल , चाहे पर्वत के सीने को चाक कर निकलने वाली सुरंगे हो धरती माँ के भरे खेत खलिहान -- या फिर विशाल जलधारा से भरी नदियों पर पुल निर्माण ! कहाँ एक मेहनतकश इंसान ने अपनी श्रम की शौर्यगाथा नहीं लिखी ? भले ही इतिहास पुस्तिकाओं में उसकी मेहनत की कहानियाँ दर्ज नहीं की गई पर उस की बनाई कृतियों में --- चाहे वे रिहाइशी महल , किले अथवा हवेलिया हो या मंदिर , मस्जिद गुरूद्वारे या फिर पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियाँ हर - जगह श्रमिक का समर्पण और श्रम मुंह चढ़कर बोलता है | आज की कंक्रीट की जंगलनुमा आधुनिक सभ्यता को नई शक्ल देने में तो श्रमिक ने कहीं अधिक पसीना बहाया है | कारखानों की निर्माण इकाइयां हो या हस्तकला उद्योग हर जगह मजदूरों और कारीगरों ने अपनी मेहनत और हुनर से निर्माण और कलाजगत में चार चाँद लगाये है | देश में धर्मनिरपेक्षता की सबसे सुन्दर मिसाल यदि कोई है तो वह है श्रमिक - वर्ग , जिसने जाति धर्म या नस्ली भेदभाव के बिना श्रम को अपना ईश्वर मान हर जगह मेहनत कर्म को प्राथमिकता दी है | वह हिन्दू के लिए काम करता हो या मुस्लिम अथवा सिख ,ईसाई के लिए , श्रम में निष्ठा उसका परम कर्तव्य और धर्म है | पर श्रमदाता की खुद की स्थिति किसी भी युग में संतोषजनक नहीं रही | मजदूरों को अनथक मेहनत के बावजूद ना कभी पेट भर अन्न मिल पाया ना उसके बच्चों और महिलाओं को अच्छा स्वास्थ्य और सुरक्षित जीवन | श्रमिकों की पीढ़िया सड़को और उद्योंगों के निर्माण में रत रहकर भी सड़कों तक ही सीमित रही| जीवन की विपरीत परिस्थितियों से जूझते और घोर विपन्नता से दो चार होते हुए एक ढंग की छत तक उन्हें कभी मुहैया नहीं हो सकी | उद्योगपतियों को शिखर पर बिठाने वाले उनकी फौलादी हाथ हमेशा अर्थ सुख से वंचित रहे | युगों से शोषित श्रमिक अपने स्वामियों और देश के भाग्यनिर्माताओं द्वारा सदैव छला गया | स्वार्थ में रत तंत्र ने कभी उसके कल्याण और बेहतर जीवन के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया | शायद इसी लिए स्वाभिमानी श्रमिक वर्ग ने स्वयं ही अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए सोचना शुरू कर दिया, क्योंकि मजदूरों की मजदूरी की अवधि कभी नियत नहीं रही | पर शिकागो में मई 1886 में मजदूर यूनियनों ने कामगारों के काम की अवधि को 8 घंटे तक निश्चित करने के लिए हड़ताल की शुरुआत की | इस हड़ताल में शिकागो की मार्किट में हुए बम धमाके का आरोप मजदूरों पर लगा जिसके फलस्वरूप पुलिस ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए उन पर गोली चला दी , जिसमे सात मजदूरों की मौत हो गयी थी | इसी आंदोलन की स्मृति को श्रमिकों के लिए समर्पित कर इसे मजदुर दिवस या मई दिवस कहकर पुकारा गया | इस दिन को श्रमिक वर्ग को महत्व देने का दिन माना गया | असल में यह दिन मजदूरों की निष्ठां और अनथक मेहनत की वंदना का दिन है | गांधी जी ने भी इस वर्ग को देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक प्रणाली की रीढ़ की हड्डी की संज्ञा देते हुए प्रशासन से इनकी बेहतरी की दिशा में काम करने की तथा उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति सचेत रहने की अपेक्षा की थी | जिससे वे किसी भी मसले अथवा झगडे का शिकार हुए बिना अपना काम ठीक ढंग से कर सकें | भारत में मई दिवस की शरुआत 1923 में चेन्नई से हुई | भारत समेत लगभग 80 देशों में इस दिन को मजदुर दिवस या लेबर डे के रूप में मनाया जाता है | आज तकनीकी युग में श्रमिको के लिए काम के अवसर कम से कमतर होते जा रहे हैं | भले ही देश के सविधान ने एक मजदूर को भी हर देश वासी की तरह समान अधिकार दिए हैं , पर उसे उन अधिकारों का लाभ ज्यादातर नहीं मिल पाया है| भले ही आज मजदूरों की औसत दशा पहले से थोड़ी ठीक है -- पर फिर भी श्रम दिवस पर नए संकल्पों और नए विचारों की जरुरत हैं , जिससे मजदुर वर्ग और उसकी आने वाली पीढियां एक अच्छा सुरक्षित और स्वच्छ जीवन जीने योग्य बन सकें | इसके लिए उनके बच्चों की शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये तो वही श्रमिक वर्ग को नई तकनीक का ज्ञान मुहैया करवाना सरकार की प्रमुख कोशिश होनी चाहिए ताकि रोटी , कपड़ा और मकान जैसी जरूरतों के लिए उन्हें सदियों से प्रचलित शारीरिक और मानसिक शौषण और प्रताड़ना से ना गुजरना पड़े | मजदुर दिवस श्रम के लौहपुरुष श्रमिक बंधुओं के प्रति अनुग्रह व्यक्त करने का दिवस है , श्रम के स्वाभिमान की उपासना और वंदन का दिन है | यह समाज और राष्ट्र के प्रति उनकी दी निस्वार्थ और निष्कलुष सेवाओं के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है | क्योंकि श्रम में ही किसी सभ्यता का स्वर्णिम भविष्य छिपा होता है जबकि अकर्मण्य समाज का पतन निश्चित होता है |