आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ,
फुर्र - फुर्र उड़ती - चले चाल लहरिया !
शायद भूली राह - तब इधर आई -
देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ;
फुदके पात पात - हर डाल पे घूमे
कभी सो जाती बना डाली का तकिया !
उल्लास में खोई -- फिरे शोर मचाती
मीठा गाना गाती - थोड़ा दाना चुग जाती
देख हँसे - खिल - खिल मुन्ना ,
उदास थी पहले - अब मुस्काई मुनिया !
हुआ भरा भरा सा - सूना था आँगन
घर का हर कोना पुलक बना है मधुबन ;
तुम्हारे कारण आई - नन्ही सी चिड़िया !
नीम तुम्हारा बहुत शुक्रिया ! ! !