वरिष्ठजन दिवस पर मेरी एक रचना उन बुजुर्गो के नाम जो अपने घर आँगन में सघन छांह भरे बरगद के समान है | जो उनकी कद्र जानते हैं उन्ही के मन के भाव ----
बाबा की आँखों से झांक रही
स्नेह की छांव सुहानी है
सुधारस पावन मेरे लिए
नयनकोर से छलका पानी है !!
नित मेरी राह निहारा करते
धुंधले तरल नयन गदगद से ,
घर की दीवार को थामे बैठे -
बाबा छाँह भरे बूढ़े बरगद से ;
खुले है द्वार मन और घर के-
हर ताला बेमानी है !
शुक्र है बदौलत बूढ़े बाबा की
आबाद आंगन -मेरे घर का ,
लरजते हाथ दुआओं वाले -
घना साया मेरे सर का ;
उनसे ही गाँव बसा मेरा
अपनेपन की निशानी है !
नाज़ करे , न करें गिला
बैठे लिए भीतर बचपन मेरा ,
प्यार भरे दो बोल के भूखे
भूला देते हर अवगुण मेरा ,
मन भीतर लहराती
यादों की फसलें धानी है !
बाबा की आँखों से झांक रही
स्नेह की छांव सुहानी है
सुधारस पावन मेरे लिए
नयनकोर से छलका पानी है !!
स्वरचित -