पेड़ की फुनगी के मचान से -
क्या खूब झांकती हो शान से ,
देह इकहरी काँपती ना हांफती --
निर्भय हो घूमती बड़े स्वाभिमान से !
पूंछ उठाये - चौकन्नी निगाहें -
चल देती हो जिधर मन आये
छत , दीवार , तार या खंबा --
बड़ी सरल हैं तुम्हारी राहें !
जहाँ जी चाहे आँख मूँद सो लेती
मसला पानी है ना रोटी ;
भूखी हो फल पेट भर खाती -
माँ की रखी कुजिया से झटपट पानी पी जाती !
घूमती डाल - डाल और पात - पात -
मलाल नहीं कोई नहीं है साथ ;
आज की चिंता ना कल की फ़िक्र --
देख लिए हैं पेड़ के सारे फल चखकर ,
फुदकती मस्ती में - हो बड़ी सयानी -
बन बैठी हो पूरी बगिया की महारानी ,
सुबह ,शाम ना देखती दुपहरी --
दुनिया में तुम सबसे सुखी हो गिलहरी ! ! !