अमरुद
चुराने आ गई बच्चों की टोली ,
पेड़ को रह रह ताक रही हैं उनकी नजरे
भोली ! !
हरे भरे पेड़ पर लदे हैं -फल आधे कच्चे आधे पक्के
बड़ी ललचाई नजरों से ताके जाते हैं बच्चे ;
कई तिडकम
भिड़ा रहे भीतर ही
भीतर
होगे सफल बड़े हैं धुन
के पक्के ;
देख -समझ
ना कोई उनकी बाते –
इक दूजे से संकेतों में बतियाते सब हमजौली ! !
कुछ गली में खड़े दीवार से टेक
लगाये ,
एक झुका -- दूजे को
कंधे पे चढ़ाए ;
बाकि सब की पहरा
दे रही चौकन्नी निगाहें –
ज़रा सी आहट पे भाग ले पैर सर पे उठाये ;
बस कुछ पल
की बात है काम निपट जाये-
हैं कोशिश में
फलों से भर जाये झोली ! !
एक नन्हा बच्चा चढ़
बैठा मोटी टहनी के ऊपर
–
फैक रहा अमरुद तोड़ - नीचे
वालों के ऊपर ;
पाया
मानों पल में जग भर
का खजाना –
लगे समेटने फल बच्चे बडे
खुश होकर ;
बड़ी कशमकश में हैं कुछ ज्यादा मिल जाये
जल्द ख़त्म हो जाए ये आंखमिचौली ! !
चुपके से बाहर झाँका तो मेरी आँखें भर आईं -
शुक्र है बच्चों में बचा है बचपन ये बात मन भाई -
किताबों के बोझ तले दबे थे नन्हे बच्चे -
निकले कुछ बाहर - इनकी दुनिया मुस्काई ;
चोरी के फल
पाकर खिल गए सबके चेहरे
छोटी सी
ख़ुशी ने नन्हे मनों की गांठे खोली ! ! !