विश्व डाक दिवस -- आज विश्व डाक दिवस है | इस दिन के बहाने से चिट्ठियों के उस भूले बिसरे संसार में झाँकने का मन हो आया है ,जो अब गौरवशाली अतीत बन गया है | भारत में राजा रजवाड़ों के समय में संदेशों का आदान - प्रदान विश्वसनीय सन्देशवाहकों के माध्यम से होता था जो पैदल या घोड़ों आदि के माध्यम से अपनी सेवाएं देते थे | लेकिन ब्रिटिश राज में 1864 में इस व्यवस्था को सुव्यवस्थित ढंग से शुरू करने का प्रावधान किया गया | आजादी से पहले और आजादी के बाद के ढेढ़ सौ से भी ज्यादा सालों में जनमानस से जुड़कर डाक विभाग ने , लोंगों का बहुत ही सम्मान और स्नेह अर्जित किया है, इसका कारण रहा डाक विभाग ने समय के अनुसार लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपनी कार्य - प्रणाली में परिवर्तन करने से परहेज नहीं किया , जैसे कल के कागजी इतिहास को छोड़कर डाक विभाग भी डिजिटल होने की पूर्णता के पथ पर अग्रसर है | पर पत्रों का वह स्वर्णिम इतिहास भुलाये नहीं भूलता |
पत्र भावनाओं का अहम दस्तावेज -- पत्र सदियों से हर आम और खास के लिए अपने जज्बात जाहिर करने का सर्वोत्तम माध्यम रहे है | किस्से कहानियों में सुना जाता है , कि पुराने समय में इंसानों के साथ -साथ कबूतर भी संदेश इधर -उधर पहुँचाने का काम किया करते थे| पत्र किसी भी विषय पर हो सकते हैं, पर सदैव ज्यादा महत्व निजी पत्रों का ही रहा मैं इन्हें आत्मीयता के सघन उच्छ्वास के नाम से पुकारना चाहूंगी क्योकि निजी पत्र लेखन में पत्र लेखक ने सदैव ही अपने निंतात मौलिक रूप का परिचय दिया | उसने वो लिखा जो उसने लिखना चाहा , बिना लाग - लपेट के | अपनों के प्रति वो जताया-जो मौखिक रूप में कहना कभी संभव ना होता |साहित्य में भी पत्र लेखन को अहम विधा मानकर उसे सर्वोच्च स्थान दिया गया|
पत्र पर कविता उर शायरी खूब हुई पर अनेक साहित्यकारों के पत्रों को साहित्य में वो स्थान मिला जो उनकी रचनाओं को भी नहीं मिला होगा | कई साहित्य साधकों ने इन पत्रों को संजोने और संग्रहित करने का स्तुत्य प्रयास किया और इस अनमोल थाती को आने वाली पीढ़ियों के लिए संभाल कर रखा | हिंदी की कहें तो हिंदी साहित्य में आदरणीय बनारसीदासचतुर्वेदी जी ने उत्तम रचनाकारों के पत्रों को सग्रहित करने के लिए बाक़ायदा '' पत्रलेखन मंडल '' की स्थापना की जिसमे अन्य लोगों केअलावा हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर माननीय शिवपूजन सहाय जी भी शामिल थे | उन्होंने विभिन्न साहित्यकारों के पत्रों को संभालकर रखने और छपवाने में अहम् भूमिका अदा की|| उर्दू साहित्य के पुरोधा शायर मिर्जा ग़ालिब , जिनका पूरा नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान था , के पत्र उर्दू साहित्य के अनमोल दस्तावेज माने जाते हैं | उनके बारे में कहा जाता है , कि शायर के रूप में प्रसिद्ध ना भी होते तो उनके पत्र ही उन्हें उर्दू साहित्य में अटल स्थान दिलाने के लिए पर्याप्त थे | इन खतों में उनके लेखन का उत्कृष्ट रूप नजर आता है जिनमे अनेक अमर आशार इन्ही पत्रों के माध्यम से कहे गये| विशेष लोगों के साथ साथ आम लोगों ने भी सदियों पत्र लिखने ओर पढने के आनन्द को भरपूर जिया |
मोबाइल ने बदला परिदृश्य ------- जब तक आम जीवन में सोशल मीडिया की घुसपैठ नहीं हुई थी - पत्रों ने भावनाओं के अनगिन रंगों से जनमानस को खूब सराबोर किया | तेजी से बदलते समय में भले ही आज हर शहर और गाँव के प्रमुख कोने पर मौन सा खड़ा डाक - विभाग का लाल डिब्बा अप्रासंगिक हो गया हो पर किसी समय में इसका बहुत महत्व था | यदा - कदा इसका ताला खोलते ही डाक कर्मचारी की सांसे फूल जाती होंगी -- इतनी डाक के रूप में अनगिन चिट्ठियाँ सँभालते || डाक विभाग के इस अनथक कर्मी की भूमिका सीमा पर डटे जवान और खेत में जुटे किसान से किसी भी तरह कम नहीं थी | ठिठुरती ठंड हो या चिलचिलाती गर्मी किसे भी मौसम में इसका काम था लोगों तक समय पर संदेश पहुँचाना
विशेष लोगों के निजी पत्र भी रहे उल्लेखनीय -- महात्मा गाँधी जी के और लोगों के साथ अपनी पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी को लिखे निजी पत्र बहुत प्रसिद्ध हुए तो जवाहरलाल नेहरू जी के अपनी सुपुत्री इंदिरा गाँधी के नाम लिखे पत्रों के माध्यम से हम उन्हें राजनेता की छवि से बिलकुल अलग एक आम पिता के रूप में जान सकते हैं कि उनकी अपनी सुपुत्री से क्या अपेक्षाएं थी और वह उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए कैसे प्रेरित करना चाहते थे | इनमे से ज्यादातर पत्र नैनी जेल से लिखे गये | ये पत्र मूलतः अंग्रेजी में थे ये जानना रोचक रहेगा कि इन पत्रों का हिन्दी में अनुवाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने किया था |स्वामी विवेकानन्द के पत्र भारत वर्ष की सांस्कृतिक धरोहर हैं |
जुडी अनेक यादें --- मुझे याद है मेरी माँ ने पांचवी या छठी कक्षा के दौरान , मुझे मेरी बुआ जी के पत्र के प्रतिउत्तर में पहली बार पत्र लिखने के लिए प्रेरित किया | बुआ जी ने भी उस अनगढ़ पत्र का उत्तर अत्यंत स्नेह से दिया | उसके बाद घर की ओर से पत्राचार तकरीबन मेरे जिम्मे हो गया | घर के अलावा - हमारे गली पडोस में जिन लडकियों की घर में छोटी बहन नहीं थी - उनकी शादी के बाद उनके लिए पत्र लिखने का सौभाग्य भी मुझे ही मिलता रहा | मुझे याद है बचपन में हमारी तीनों बुआ के पत्रों की हम किस तरह राह देखा करते थे करते थे - जिनमे से दो बुआ की अत्यंत सुंदर लिखाई से ही गाँव के डाकिया चाचा हमसे पहले ही बता देते थे कि हमारी कौन सी बुआ का पत्र आया है | मेरे आंठ्वी कक्षा और छोटे भाई के पांचवी कक्षा में उत्तम परिणाम के साथ वजीफा अर्जित करने पर हमारी छोटी बुआ जी ने बम्बई से भाई के लिए हाथ से बुना स्वेटर और मेरे लिए अलार्म घड़ी भेजी थी उसका मुकाबला अमेजोन और फ्लिप्कार्ट से खरीदी गयी महंगी चींजे कभी नहीं कर कर सकती |याद आता है मेरी दादी के नाम आया उनकी माँ द्वारा लिखा गया पत्र जिसे वे अपने कीमती सामान की तरह हाथी दांत की नक्काशी वाली अपनी छोटी सी संदूकडी में बड़े जतन से संभालकर रखती थी | उनके दुनिया से जाने के बाद ये अनमोल थाती मेरे पास सुरक्षित है |
हर नववर्ष और दीपावली पर रंग बिरंगे कार्डों का वो रोमांचक सतरंगी संसार स्मृतियों से कहाँ ओझल हो पाता है ! कितनी उमंग से अपनी बुआओं , ननिहाल और सहेलियों के लिए अच्छे से अच्छा शुभकामना संदेश वाला कार्ड ढूंढने की वो अनथक कवायद इतनी रोमांचक थी कि उसके आगे मोबाइल व्हात्ट्स अप्प और इंटरनेट के ईमेल सन्देश बिलकुल फीके हैं -- क्योकि वे कार्ड और शुभकामना संदेश कुछ अपनों के लिये होते थे जिनमे भावनाएं निर्झर सी बह एक मन से दूसरे मन में अनायास प्रवेश कर जाती थी , जबकि आज हर त्यौहार और नववर्ष के संदेश मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गये हैं | भले इनमे से कुछ बहुत ही आत्मीयता के साथ भेजे जाते हों पर उनमे वो गर्मजोशी नहीं है | डाकिया को शुभसमाचार लाने पर पुरस्कृत करने की उत्तम परम्परा का अलोप हो चुकी है|
बदली डाकिये की भूमिका --- बदलते समय में अब कोई पलक पांवड़े बिछाकर डाकिये का इन्तजार नहीं करता | उसकी बदली भूमिका में उसकी जगह क़ानूनी नोटिस , नौकरी से संबधित पत्र अथवा कोई जरूरी सामान का कोरियर इत्यादि पंहुचाने के लिए सीमित हो गई है | भावनाओं से भरे
पत्रों का भरा डाकिये का थैला अब बीते समय की बात हुई | नीले रंग के अंतर्देशीय पत्र , पीलेरंग के लिफाफे और रंगीन बॉर्डर से सजे एरोग्राम अब कहीं देखने में नजर नहीं आते | कोने से फटा पोस्टकार्ड अब किसी के आकस्मिक निधन का दुखद समाचार लिए डराने नही आता -- अब तो किसी दुखद घटना का समाचार तुर्त- फुर्त फोन से ही मिल जाता है |
इस परम स्नेही डाकिया के गौरवशाली अतीत को स्मरण करते हुए हमारे प्रबुद्ध सहयोगी रचनाकार आदरणीय रविन्द्र सिंह यादव जी ने अत्यंत भावपूर्ण कविता लिखी है जिसकी कुछ पंक्तियाँ साभार लिखना चाहूंगी --
कभी बेरंग खत भी आता था
पाने वाला ख़ुशी से दाम चुकाता था
डाकिया सबसे प्यारा मुलाजिम होता था
राज़, अरमान , राहत . दर्द , रिश्तों की फ़सलें बोता था
डाकिया चिट्ठी तार पार्सल रजिस्ट्री मनीआर्डर लाता था
डाकिया कहीं ख़ुशी कहीं गम के सागर लाता था
आज भी डाकिया आता है
राहत कम आफत ज्यादा लाता है
पोस्टकार्ड नहीं रजिस्ट्री ज्यादा लाता है
खुशियों का पिटारा नहीं
थैले में क़ानूनी नोटिस लाता है |
फिल्मों में मिला अहम स्थान --- फिल्मों में भी डाकिये को हमेशा सर माथे पर बिठाकर उसपर अनगिन गाने रचे गये तो खत को भी फ़िल्मी गीतों में महत्वपूर्ण स्थान मिला' पलकों की छाँव में '' के मासूम सरल , निश्छल डाकिये को कौन भुला पायेगा जिसके '' डाकिया डाक लाया '' गाकर अलबेले , मस्ताने डाक बाँटने के अंदाज ने हर सिने प्रेमी के मन में अक्षुण स्थान बनाया , वहीँ '' नाम '' फिल्म के नायक के साथ अनगिन अप्रवासी भारतियों को अपनी मातृभूमि का स्मरण कराता गीत -- चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है '' हिंदी सिनेमा के सदाबहार गीतों में शुमार किया जाता है | सरस्वती चन्द्र के'' फूल तुम्हे भेजा है ख़त में '' , फिल्म कन्यादान का कवि नीरज द्वारा लिखा गया अमर गीत '' लिखे जो खत तुझे - वो तेरी याद में '' और संगम फिल्म का '' ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ करके तुम नाराज ना होना '' प्रेमासिक्त मन की मधुर मनुहार है | इसके अलावा-- शक्ति फिल्म का '' हमने सनम को खत लिखा '' अपनी तरह का एकमात्र गीत है | इसी तरह तुम्हारी कसम फिल्म का -- ''हम दोनों मिलके कागज पे दिल के - चिट्ठी लिखेंगे जवाब आयेगा '' जिसे गीत सिने जगत की अनमोल थाती कहे जा सकते हैं , जो पत्रों के गौरवशाली अतीत की गाथा बनकर सदियों हर दिशा में गूंजते रहेंगे और इस 'ख़त ' नाम के भावनाओं से भरे दस्तावेज के अचानक समय के परिवर्तन की लहर के बीच विलुप्त हो जाने के कसकते अहसास को याद दिलाते रहेंगे |
एक चिट्ठी मेरी डायरी से -- 22 साल पहले मेरी शादी के बाद पहली बार जब मेरी बड़ी बहन की चिट्ठी आई तो मायके की यादों से कसकते भावुक मन से मैंने उसे प्रतिउत्तर में एक कविता लिख दी जो मैंने संकोचवश भेजी तो नहीं पर मेरी डायरी में पड़ी रही जिसे आज यहाँ लिखने का मन हो आया है ---
फिर आज तुम्हारी पाती से -
कई बिछुड़े पल याद आये ;
जो जाके के लौट ना पाएंगे -
वो परसों और कल याद आये |
भूल चली थी जो गीत कई -
सहसा फिर से याद आये ,
मुस्काए अधर भले बरबस -
पर मेघ सजल नैंनों पर छाए
जो पल - पल,मन महकाते हैं -
खुशियों के कोलाहल याद आये !!
स्नेहिल स्पर्श वो माँ का
पल पल मन को छू जाता है ,
हूँ दूर भले पर दूर नहीं -
ये चुपके से कह जाता है;
जो स्नेहाश्रु छलकाते थे -
वो नैना निर्मल याद आये !!
कागज के सीने से लिपटा -
ये स्नेह तुम्हारा अनुपम है -
इस ममता का ना मोल कोई-
जग सारा बाकि निर्मम है ;
इस प्यार को याद करूँ तो बस -
माँ का आँचल याद आये !!!!!!
अंत में यही कहना चाहूंगी कि शायद इस सूचना और तकनीकी क्रांति के इस युग में भी भावनाओं की सुगंध में भीगे पत्र शायद कोई किसी के नाम लिखता हो और कोई एक तो शायद ऐसा जरुर होगा जिसके नाम कोई प्रेम भरी पाती आई होगी |
काव्यांश ---- डाकिया साभार-- /www.hindi-abhabharat.com
========================================================== -----
पाठकों के लिए विशेष -- कभी ख़त यूँ भी लिखवाये जाते थे------- जिन्हें डाक बाँटने वाले अत्यंत विश्वसनीय डाकिया बाबू ही लिखते थे | डाकिया बाबू को सांवरिया के नाम खत लिखने का स्नेहिल आग्रह करती ''आये दिन बहार के '' की निर्मल मना नायिका के मधुर , सरस बोल किसे भा ना जायेगें ---- जो कितने आग्रह से कह रही है --------
'' खत लिखदे सांवरिया के नाम बाबू -- कोरे कागज पे लिखदे सलाम बाबू -
वो जान जायेंगे पहचान जायेंगे-- कैसे होती है सुबह से शाम बाबू !!!!!!!!!!!!! ''
मेरा आग्रह जरुर सुने |