
20 मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया है और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | केंद्र सरकार को भी नियत आठ सप्ताह की अवधि में गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का आदेश दिया गया है | राज्य सरकार के असहयोग की स्थिति में केंद्र सरकार इसके खिलाफ कार्यवाही कर सकती है | भारत के सांस्कृतिक , सामाजिक और धार्मिक जीवन में इस समाचार से अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ है | सबसे बड़ी बात ये है कि गंगा को अतिक्रमण मुक्त करने और उत्तराखंड - उत्तरप्रदेश के बीच नदियों का बंटवारा करने की ये जनहित याचिका एक मुस्लिम नागरिक द्वारा दाखिल की गई है जिसने न्यूजीलैंड की एक नदी बांगक्यू का उदाहरण दिया , जिसे वहां की सरकार ने जीवित मानव के सामान अधिकार देकर जीवन दान दिया | इस फैसले के अनुसार गंगा -यमुना की और से मुकद्दमे सभी प्रकार की अदालतों में दाखिल किये जा सकते हैं - इनमे कूड़ा फैकने और अतिक्रमण करने पर मुकद्दमा किया जा सकता है | इसके आलावा इस रोचक निर्णय में कहा गया कि गंगा - यमुना की गलतियों को नजर अंदाज ना करते हुए उन्हें भी अपने पानी से खेतों के बह जाने पर और आसपास गंदगी फैलाने का दोषी माना जाएगा अर्थात गंगा - यमुना को यदि अधिकारों के योग्य माना गया तो उनके कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं | विदित रहे कि गंगा को भारतवर्ष की सबसे बड़ी होने का गौरव प्राप्त है |इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर और इसका उद्गम स्थान हिमालय में गंगोत्री नमक ग्लेशियर है | वही यमुना का उद्गम हिमालय का ही यमुनोत्री स्थान है | यमुना की लंबाई भी 1376 किलोमीटर है उसके बाद ये इलाहाबाद में गंगा में समा जाती है | कहाजाता है कि इसी स्थान पर अप्रत्यक्ष रूप से तीसरी नदी सरस्वती भी गंगा में आ मिलती है जिससे इस स्थान को संगम नाम से पुकारा गया है ! सच तो ये है कि उत्तराखंड न्यायालय के इस अभूतपूर्व फैसले ने नदियों के महत्व की आवश्यकता को नए सिरे से रेखांकित किया है |गंगा और यमुना भारत की मात्र नदियां नहीं हैं | इनके किनारों पर अनगिन सभ्यताएँ और संस्कृतियां पनपी और विकसित हुई | विशाल जन समूह के लिए ये नदियाँ जीवनदायिनी है| इनके अविरल प्रवाह ने अपने किनारे बसी केवल मानव सभ्यता को ही पोषित नहीं किया बल्कि अनेक प्रकार की वनस्पतियों , वन्य प्राणियों और जलचरो के जीवन को भी संरक्षण दिया है | पर सवाल ये उठता है कि वेद - पुराणों में सनातन काल से जिस अवधारणा को दर्शाया गया है-- उसे क्यों अनदेखा किया गया? हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गंगा को माँ और मोक्षदायिनी कह कर पुकारा गया | उसे सोम तत्व युक्त अमृतधारा माना गया| हिमालय की पुत्री के रूप में उसे भी उसे नारी रूपा ही माना गया | महाभारत में भीष्मपितामह को गंगा- पुत्र होने का गौरव प्राप्त है | भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप धरती पर अवतरित हुई गंगा को भागीरथी के साथ -साथ विष्णुपदी और ब्रह्मा जी के कमंडल दे प्रवाहित भक्ति और शक्ति कह कर पुकारा गया | नदियों में गंगा ने हमेशा प्रथमपूज्य देवी के रूप में सम्मान पाया है | कुम्भ और अर्ध कुम्भ के रूप में इसके किनारे मानव सभ्यता का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन होता है | गंगा के साथ यमुना को भी सूर्यपुत्री और यम की बहन के रूप में नारी- रूपा और देवी रुपा माना गया| इसका पौराणिक महत्व गंगा से काम नहीं आंका गया | यहाँ तक कि भारत की एकता को भी गंगा यमुना के नाम पर गंगा - जमनी तहजीब कहकर बुलाया गया गया | पर मानव की अति महत्वकांक्षा के फलस्वरूप इन देहकल्पित नदियों को मात्र निर्जीव नदी समझ कर इसके अस्तित्व को खंडित किया गया | साल दर साल नदियों पर इन अत्याचारों का चलन बढ़ता गया | किनारो पर औद्योगिक इकाइयों का स्थापन और कालांतर में गंदगी का मुंह इसकी अविरल निर्मल धारा की ओर मोड़ कर रही सही कसर भी पूरी कर दी गई| अच्छा होता शुरू से ही इन नदियों को वेद पुराणों में वर्णित रूप में देखा जाता तो आज ये उस दुर्दशा का शिकार हरगिज ना होती ! ! ये नदियां युगों - युगों से जीवित इकाई थी पर हमी ने ये बात बिसरा दी थी | आज फिर से उसी पुरातन अव धारणा को न्यायलय के आदेश से ही सही हमें अपने जीवन में धारण करना होगा ताकि इन नदियों को इनका खोया गौरव फिर से मिल पाए और ये युगों तक अपनी निर्मल और अविरल धारा के साथ धरती पर प्रवाहित होती रहे ! !
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