अनमोल है तुम्हारी चाहत -
जो नहीं चाहती मुझसे ,
कि मैं सजूँ सवरू और रिझाऊं तुम्हे ;
जो नहीं पछताती मेरे - विवादास्पद अतीत पर ,
और मिथ्या आशा नहीं रखती -
मेरे अनिश्चित भविष्य से ;
व्यर्थ के प्रणय निवेदन नहीं है -
और न ही मुझे बदलने का कुत्सित प्रयास !
मेरी सीमायें और असमर्थतायें सभी जानते हो तुम ,
सुख में भले विरक्त रहो -
पर दुःख में मुझे संभालते हो तुम ;
ये चाहत नहीं चाहती कि मैं बदलूं
और भुला दूं अपना अस्तित्व ;
सच तो ये है कि -------
अनंत है तुम्हारा आकाश ,
मेरी कल्पना से कहीं विस्तृत -----
जिस में उड़ रहे तुम और मैं भी स्वछंद हूँ -
सर्वत्र उड़ने के लिये ! !
अनमोल है तुम्हारी चाहत |