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पुस्तक समीक्षा - प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) ---------कवि - रवीन्द्र सिंह यादव -

10 अप्रैल 2018

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पुस्तक- प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक)

विधा - काव्य संग्रह

कवि - रवीन्द्र सिंह यादव

ISBN : 978-93-86352-79-8

प्रकाशक - ऑनलाइन गाथा, लखनऊ

मूल्य - 50 रुपये


तकनीकी युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन माध्यम बन कर उभरा है | यहाँ अनेक मंच हैं जिन पर आप अपनी बात सरलता और शीघ्रता से कह इससे जुड़े लोगों तक पहुंचा सकते हैं | इनमें ब्लॉग अभियक्ति का सशक्त मंच है| एक तरह से ब्लॉग हमारे विचारों का वो सदन है जहाँ हम अपने मौलिक विचारों का आदान-प्रदान बड़ी सरलता से कर सकते हैं | ब्लॉग हमारे चिंतन और मंथन को विस्तार दे हमें अपने जैसे अनेक लोगों से जोड़ता है, जो हमें प्रोत्साहित कर हमारी रचनात्मकता को विस्तार देता है | पिछले साल जनवरी में मैंने जब शब्द नगरी से लेखन की शुरुआत की तो मेरे पहले ही लेख को जिन लोगों ने पढ़कर उस पर अपने अनमोल शब्द लिखकर मेरा मनोबल बढ़ाया उनमें आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी भी थे | वहां रवीन्द्र जी की कई रचनाओं को मैंने पढ़ा | पर जुलाई में जब मैंने अपना ब्लॉग बनाया तो रवीन्द्र जी के ब्लॉग से भी परिचय हुआ और वहां उनकी अन्य प्रतिनिधि रचनाएँ पढ़ीं| एक सहयोगी रचनाकार के रूप में मैंने रवीन्द्र जी को बेहद शालीन और साहित्यिक शिष्टाचार से भरपूर पाया | यही बात उनके लेखन में भी झलकती है जिसमें अनावश्यक ताम-झाम नहीं है और न ही किसी सरल विषय को दुरुहता से प्रस्तुत करने का प्रयास | उनकी रचनाएँ चिर-परिचित मौलिक शैली में अपना सन्देश दे देती हैं | कविता लेखन में रवीन्द्र जी का अपना ही शिल्प है जो उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग पहचान दिलाता है | हर रचनाकार का यह सपना होता है कि उसकी रचनायें संग्रहित हो पुस्तक रूप में परिणत हों | पिछले दिनों पता चला कि आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी की रचनाओं का पहला संग्रह ''प्रिज्म से निकले रंग '' के नाम से आया है | मुझे भी इसे पढ़ने का अवसर मिला तो पाठक के रूप में मुझे इन्हें पढ़कर बहुत अच्छा लगा और आदरणीय रवीन्द्र जी के लेखन पर बहुत गर्व भी हुआ | जैसा कि नाम से ही पता चल जाता है, संग्रह में भावों और कल्पनाओं के इन्द्रधनुषी रंगो को विस्तार मिला है | अलग-अलग विषयों पर रचनाएँ अपनी कहानी आप कहती हैं | इन रचनाओं में समाज, नारी, प्रेम, राष्ट्र, प्रकृति, इतिहास और जीवन में अहम् भूमिका अदा करने वाले करुण-पात्रों को बहुत ही सार्थकता से प्रस्तुत किया गया है। एक पाठिका के रूप में इस संग्रह को पढ़ने का अनुभव मैं दूसरे साहित्य प्रेमियों के साथ बांटना चाहती हूँ |

पुस्तक में 34 रचनाएँ हैं जिन्हें सर्वप्रथम कृति के रूप में पाठकों को सौपने से पहले आदरणीय रवीन्द्र जी ने एक सुयोग्य पुत्र की भूमिका निभाते हुए इन्हें अपने स्वर्गीय माता-पिता जी और भाभी जी को सादर समर्पित किया है | साहित्य में पुस्तक लेखन में मंगलाचरण के रूप में सर्वप्रथम माँ सरस्वती की वंदना की सुदीर्घ परम्परा रही है | इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए कवि ने पहली रचना माँ सरस्वती की अभ्यर्थना के रूप में लिखी है, जो मुझे अन्य सरस्वती वन्दनाओं से बहुत अलग लगी | यह वंदना बहुत ही ह्रदयस्पर्शी है और बहुजन हिताय की भावना को प्रेरित करती है साथ ही एक सार्थक सन्देश भी देती है | शारदा माँ से लोक कल्याण के लिए प्रार्थना करते वे कहते हैं --

हे माँ !

भटके हुए जीव जगत को

सुरमई गीत सुनाकर उजियारा पथ दिखा देना

जीवन संगीत का

दिव्य बसंती राग सिखा देना !!

आदरणीय रवीन्द्र जी की नारी विषयक रचनाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया है | नारी के सम्मान में आदरणीय रवीन्द्र जी की नारी विषयक रचनाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया है | नारी के सम्मान में उनकी रचना में प्रश्न उठाया गया हैं कि--

'' नारी के सम्मान में एक दिन -- शेष दिन ?

इस विषय में उन्होंने कविता के साथ एक लेख भी संलग्न किया है जिसमें नारी की वैदिक काल से आज तक की दशा पर चिंतन किया गया है जिसमें समाज के संकुचित दृष्टिकोण को नकारते हुए नारियों के अनथक संघर्ष के लिए उन्हें नमन करते हुए उनसे शिक्षित हो जागने का आह्वान किया गया है जिससे वे समाज में अपना खोया सम्मान और गरिमा प्राप्त कर सकें क्योंकि वे मानते हैं शिक्षा ही वह हथियार है जो उन्हें उत्पीडन और शोषण से मुक्ति दिला सकता है | लेख में नारी के अधिकारों के प्रति न्यायप्रणाली के अनेक प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया है | बेटियों को समर्पित दूसरी रचना में वर्तमान की बेटी के आत्मकथ्य को बड़े ही जोशीले शब्दों में उकेरा गया है | आज की बेटी को एक ओर अपने इतिहास पर गर्व है तो उसे व्यर्थ के बंधन तोड़ अपना आकाश छूने की प्रबल आकांक्षा भी है। कवि ने बड़ी ही निर्भीकता से उसका संकल्प बड़े ही मनमोहक शब्दों में पिरोया है --

बंधन -भाव की नाज़ुक कड़ियाँ

अब तोड़ दूँगी मैं ,

बहती धारा मोड़ दूँगी मैं ,

मूल्यों की नई इबारत रच डालूँगी मैं,

माँ के चरणों में आकाश झुका दूँगी ,

पिता का सर फ़ख़्र से ऊँचा उठा दूँगी,!!!!!!

कोई भी संवेदनशील कवि समाज में घट रही घटनाओं से अछूता नहीं रह सकता | सम्यक दृष्टि से उनकी विवेचना कर प्रखर कवि अपना कविधर्म निभाते हैं | इसी क्रम में समसामयिक घटनाओं पर पैनी दृष्टि रखते हुए घटना का मर्म प्रस्तुत कर अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए रवीन्द्र जी ने अनेक रचनाएँ लिखी हैं | पीछे ऐसी ही एक मर्मान्तक घटना हुई जिसमें सेवा कर्म से जुड़ी एक नर्स ने मात्र तीन सौ रुपयों की खातिर एक नवजात शिशु को गर्म हीटर के पास सुला दिया जिससे उसका चेहरा झुलस गया | नारी को ममता और वात्सल्य की देवी माना गया है पर जब वह अपने स्त्री-धर्म से मुंह मोड़ जाती है तो यह ममता के लिए बड़ी अशुभ घड़ी होती है जिसके लिए उसे कभी माफ़ नहीं किया जा सकता | इसी घटना से आहत कवि का संवेदनशील मन प्रश्न करता है कि-------- उनकी रचना में प्रश्न उठाया गया हैं कि--


एक दिन जब वह समझदार बनेगा

तब परिजन निर्मम दास्तान ज़रूर सुनाएंगे

अपना झुलसा हुआ चेहरा देख

क्षमा करेगा उस नर्स को ?

जो सिर्फ तीन सौ रुपये के लिए

स्त्री-सुलभ ममत्व को तिलांजलि दे बैठी --------

इसी तरह एक बार मीडिया पर जब भारतीय सैनिकों की जली रोटियों का वीडियो वायरल हुआ तो सारे देश में देश के वीर जवानों को परोसी गयीं जली रोटियों के लिए देशभर में सरकार और सेना की ख़ूब भर्त्सना हुई पर '' जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि '' को चरितार्थ करते हुए कवि अपनी अंतरदृष्टि से इन जली रोटियों के लिए सैनिकों को विवेक और संयम की हिदायत देते हुए समझाया है कि राष्र्टीय एकता और अखंडता के विरोधियों को मौक़ा मिल जाएगा और वह जली रोटियां खाने वाली सेना को कमज़ोर समझ देश को भी कमज़ोर समझेगा | इसलिए 'जो मिले चुपचाप खाना' और 'देश के लिए बलिदान को तत्पर रहना ही' एक सैनिक का परम कर्तव्य है | क्योंकि ------


सर-ज़मीं क़ुर्बानी माँगती है,

सैनिक के ख़ून में रवानी माँगती है,

दूसरों का हक़ मारने वाले बेनक़ाब होंगे!

हम बुलंद हौसलों के साथ क़ामयाब होंगे!!


इस प्रकार इस अलग तेवर और चिंतन की रचना ने मुझे बहुत प्रभावित किया | क्योंकि सब कुछ सहकर मातृभूमि के लिए जान तक न्योछावर करना हमारे सैनिकों की सुदीर्घ परम्परा रही है | यह वही देश है जहाँ मातृभूमि के लिए महाराणा प्रताप ने घास तक की रोटियां खायी थीं |

श्रवणकुमार की पुण्य-धरा पर एक कलयुगी बेटे ने जब सर्द रात में पिता को घर के बाहर सुला दिया तो समाज में खंडित होते नैतिक मूल्यों पर विकल कवि ने उस बेटे को सार्थक रचना के माध्यम से खरी-खोटी सुनाई है। साथ में पिता का निस्वार्थ प्रेम याद दिलाते हुए खानाबदोश लोगों के संस्कारों का उदाहरण दिया है जो कम साधनों में भी सम्बन्धों की नई परिभाषा गढ़ते हैं -

इस पर कवि ने लिखा है ----

किसी खानाबदोश परिवार को देखो -

कैसे सह-अस्तित्व की परिभाषा गढ़ते हैं वे ..

अपने मूल्यों के सिक्कों की खनक-चमक से -

चौंधियाते रहते हैं !!!!!!!

भारत के सबसे चहेते नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के लिए लिखी रचना संकलन की प्रभावी रचनाओं में से एक है जिसमें उनकी रहस्यमयी मौत पर सवाल उठाते हुए कवि ने उन्हें नम आँखों से याद करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है और साथ ही सरकार की उस मंशा पर सवाल उठाये हैं जो इतने सालों बाद भी जाँच के अनेक प्रपंच रचकर उनकी मौत की गुत्थी को सुलझा न सकी। क्योंकि बकौल कवि -------


दुनिया विश्वास ना कर सकी

सुभाष के परलोक जाने का ,

सरकारें करती रहीं जासूसी -

भय था जिन्हें सुभाष के प्रकट हो जाने का |

कविताओं के अलग-अलग रंग निहारते हुए मुझे एक और रचना बहुत खास लगी जिसमें कवि ने प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले ताजमहल की यात्रा के दौरान आगरा के लाल किले से बादशाह शाहजहाँ की पीड़ा को अनुभव किया और उसे अपने शब्द देने का सफल प्रयास किया | कवि के मन में बड़े मार्मिक प्रश्न कौंधते हैं कि ख़ुद बादशाह बनकर तीस साल तक वक़्त की आती-जाती रौनकों को जीने वाले शंहशाह शाहजहाँ ने न जाने कैसे अपनी मौत से पहले साढ़े सात साल अकेले गुज़ारे होंगे ? जिस ताजमहल को अपनी प्रेयसी की याद में बनवाया था उसे निहारते हुए बादशाह के अंतस को टटोलती मार्मिक रचना में उसके मन की पीड़ा बड़े ही प्रभावी शब्दों में मुखर हुयी है | उसे दुनिया के छल और अपने अकेलेपन पर शिकायत है तो अपनी इस कलाकृति यानि ताजमहल पर बड़ा नाज़ भी है | वह उसे प्रेम की अमर निशानी और बेहतरीन कलाकृति मान कर कहता है -----



मेरे जज़्बे को सलाम आयेंगे

सराहेंगे क़द्र-दान शिल्पकारों को,

प्यार नफ़रत से बड़ा होता है

कहेगा अफ़साना उनसे जो नहीं आज वहाँ ।

मुंतज़िर है कोई

सुनने को मेरे अल्फ़ाज़ वहाँ ।


कवि दृष्टि पड़ जाने से कोई भी छोटी-सी घटना बड़ी बन जाती है तो छोटी-सी बात मर्मान्तक आघात | नन्ही बच्ची के ओस पर बालसुलभ उत्तर को कवि ने गम्भीरता से लेते हुए रचना ''ओस '' में 'ओस ' पर पड़ी संस्कारहीनता और जड़ता की ओस को बड़ी ही मार्मिकता के साथ शब्दबद्ध किया है क्योंकि ओस-कण प्रकृति के सबसे कोमल मोती हैं जिसे कवियों और साहित्यकारों ने सदैव कौतूहल से देखा और महत्व दिया है पर भावी पीढ़ी को ये जलकण वीडियो में दिखाकर पहचान करायी जाती है यो इससे दुखद और क्या हो सकता है ? साथ में प्राकृतिक ओस कण उपेक्षित ही रह जाते हैं | दूसरी तरफ एक सडक का नाम क्रूर बादशाह औरंगजेब के नाम से बदलकर शांति और प्रेम के मसीहा डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर कर देने पर कवि मन आह्लादित है | वे इस बात को भावी पीढ़ी के लिए सर्वोत्तम सन्देश मानकर लिखते हैं

भावी पीढियां अमन और प्रेम के धागे बुन सकें

कुछ ऐसा लिखें हम समय की स्लेट पर _____________

अनेक पड़ावों से गुज़रता अपनी काव्य यात्रा में कवि जीवन के अनेक रंग अपनी रचनाओं में उकेरता आगे बढ़ता है | अनेक प्रसंगों को देखने की कवि की अपनी ही दृष्टि और उसे शब्दों में सवांरने की अपनी ही कला ! इसी तरह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है दूब जिसे जिसे शुभता और मंगल का प्रतीक तो समझा जाता ही है साथ में विनम्रता और चिर हरियाली का पर्याय भी माना जाता है | उसी की महिमा को विस्तार देते 'दूब' नामक रचना में कवि ने धरा के सीने पर लिपटकर रहने को उसकी विन्रमता बताते हुए उसकी लघुता को नमन किया है | उन्नत और उद्दण्ड वृक्षों से कहीं महान बताते हुए उसे मानवीय संवेदनाओं के साथ जोड़कर बहुत ही सुंदर सार्थक सृजन करते उसके लिखा है -

छाँव न भी दे सके तो क्या -

घात-प्रतिघात की ,

रेतीली पगडंडी पर ,

घाम की तीव्र -तपिश से,

तपे पीड़ा के पाँव ,

मुझ पर विश्राम पाएंगे ,

दूब को प्यार से सहलाएंगे |

रोज़मर्रा जीवन के करुण पात्रों पर कवि का संवेदनात्मक चिंतन बहुत हृदयस्पर्शी है | मदारी , मज़दूर,लकड़हारा आदि पर बहुत संवेदनशील रचनाएँ अस्तित्व में आई हैं | बहरूपिया ' रचना में बहरूपिये के अलग-अलग मनमोहक रूपों से मुग्ध बच्चों को बड़ों की अनुपम सीख मिली है --

यह शख़्स है केवल मनोरंजन के लिए --------!

इतने रूप अनापेक्षित हैं एक जीवन के लिए -----------!!


इसके साथ अतीत के एक अहम् सामाजिक पात्र लकड़हारे का स्मरण बड़ा ही मर्मस्पर्शी है क्योंकि कुछ दशक पहले लकड़ी के गट्ठर को सर पर लादे संतोष से पेट भरने के लिए यह श्रमजीवी जीवन की गलियों में भटकता अक्सर नज़र आ जाता था | आज न उस लकड़ी के खरीददार रहे न लकड़ी बेचकर जीवनयापन करने वाला लकड़हारा | पर उसके खो जाने की पीड़ा कवि के इन शब्दों में व्यक्त हुई है --

आधुनिकता के अंधड़ में -

अब लकडहारा कहीं बिला गया है !!!!!

वैदिक साहित्य में जलंधर नामक राक्षस को अहंकार,अराजकता और दुराचार के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसने महाशिव की अर्धांगिनी पार्वती जो बड़ी ही कुत्सित दृष्टि से निहारकर उन्हें पाने की मिथ्या कामना धारण की थी उसके अस्तित्व को मिटाने के लिए विष्णु जी को भी छद्म लीला रचनी पड़ी थी जिसके फलस्वरूप जलंधर की पत्नी वृंदा के शाप से वे पत्थर रूप में परिणित हो गये और आज भी शालिग्राम रूप में पूजे जाते हैं | उसी जलंधर पर बहुत ही चिंतनपरक रचना है जिसमे कवि की विद्वता अलग रंग में झलकती है ,क्योकि आज भी जलंधर फिर से नये रूप और नई भूमिका में सक्रिय है |ये रचना एक सार्थक सन्देश भी देती है --

उन्मादी माहौल में दबकर -

कुछ ऐसे भी न्याय हुए

मानवता को रौंद डालने

शरू नये अध्याय हुए

अहंकार के अंधकार में

कोई आये दीप जलाने को

आज जलंधर फिर आया है

हाहाकार मचाने को !!!!!!

जीवन के सांस्कृतिक रंगों को कवि में बहुत उल्लास और उत्साहवर्धक शैली में प्रस्तुत किया है |इनमे होली पर अनुपम रचना है तो प्रकृति के उत्सव बसंत पर सुकोमल सृजन !! अपने रचनाकर्म के माध्यम से कविने अपने

भीतर की नैसर्गिकता को बचाने का आह्वान किया है क्योकि ये नैसर्गिकता ही सही अर्थों में एक इंसान को इंसान बनाती है और भीतर के अपनत्व को मुरझाने नहीं देती | इसी अपनत्व को सर्वोपरि मानते हुए जीवन में आशा की नई सुबह की कल्पना की है | प्रेम को बड़े ही उद्दात और परम्परागत रूप में स्वीकार करते हुए अपनी रचनाओं में जगह दी है तो सत्ता- पक्ष के पूंजीवादी रवैये से आहत हो उसे फटकार - समसामयिक मुद्दों पर एक सजग नागरिक की भूमिका अदा की है |


अंत में कहना चाहूंगी कि'' प्रिज्म से निकले रंग '' प्रबुद्ध, सुधि पाठकों को जरुर पसंद आयेंगे | क्योकि ये एक आम आदमी का चिंतन भी है और एक सजग कवि की भावपूर्ण अंतर्यात्रा भी !! अपने काम के साथ अपनी रचनात्मकता को नये आयाम देते हुए रवीन्द्र जी ने शब्द -शब्द सम्पदा से अपने रचना संसार को समृद्ध किया | ये काव्य -संग्रह उसका मूर्त रूप है | संग्रह की सबसे बड़ी खूबी इसकी मौलिक शैली है |मैं इस बहुरंगी प्रस्तुति के लिए आदरणीय रविन्द्र जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें देती हूँ और आशा करती हूँ कि उनका ये संग्रह पाठकों के लिए एक नया अनुभव लेकर आयेगा और उनकी रचना यात्रा नए आयामों की और निरंतर अग्रसर रहेगी |


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लोहड़ी --------- उल्लास का पर्व

12 जनवरी 2017
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पंजाब का लोकपर्व मकर सक्रांति से ठीक एक या कभी - कभी दो दिन पहले आता है | ये पर्व पंजाब की जिन्दादिली से भरे जनजीवन को दर्शाता है .| इस दिन लोगों का उत्साह देखते ही बनता है | . घरो और गलियों में रेवड़ी और मूंगफली की

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सूर्य उपासना - का पर्व ---- मकर संक्राति

13 जनवरी 2017
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ब्रह्मांड में सूर्य के बिना जीवन की कल्पना करना नितांत निरर्थक है | सूर्य का उदय सृष्टि में जीवन का सन्देश लेकर आता है | इसके विपरीत संध्या में सूर्यास्त ग्रहो - उपग्रहों के अस्तित्व का प्रतीक है क्योकि सूर्य के असीम प्र

3

बासंती लड़की

30 जनवरी 2017
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जाड़े की उस कंपकंपाती शाम को अपने गाँव की सड़क पर टहलते हुए ऐसा लगा मानो सडक की जरिये खेत सांस ले रहे हों | दूर –दूर तक खेतों में गेहूं व गन्ने की फसलें लहलहा रहीं थी | मेढ़े भी हरी – भरी घास से भरी थी और उन पर झुकी थी मधुर बास

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करनाल में पतंगबाजी का बसंत

30 जनवरी 2017
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करनाल की गिनती हरियाणा के अग्रणी शहरो में होती है | आजकल तो इसे हरियाणा के मुख्यमंत्री का शहर भी होने का गौरव भी प्राप्त है | करनाल में कई चीजें ऐसी हैं जो इसे विशेष दर्जादिलाती हैं -- जैसे भारतीय डेरी अनुसन्धान केंद्र , शेरशाह सूरी की कोस मीनार ,

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जी , टी . रोड पर अँधेरी रात का सफ़र ---

10 फरवरी 2017
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दिन के प्रत्येक पहर का अपना सौन्दर्य होता है | जहाँ भोर प्रकृतिवादी कवियों के लिए सदैव ही नवजीवन की प्रेरणा का प्रतीक रही है वहीँ प्रेमातुर व्यक्तियों और प्रेमवादी विचारधारा के कवियों व साहित्यकारों के लिए रात्रि के प्रत्येक पल का अपना महत्व माना है | रचनाकारों ने अपनी रचनाओं -- चाहे वह कविता हो

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तुम्हारी चाहत --- कविता

12 फरवरी 2017
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अनमोल है तुम्हारी चाहत - जो नहीं चाहती मुझसे , कि मैं सजूँ सवरू और रिझाऊं तुम्हे ; जो नहीं पछताती मेरे - विवादास्पद अतीत पर ,और मिथ्या आशा नहीं रखती

7

फागुन में उस साल

13 फरवरी 2017
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फागुन मास में उस साल -मेरे आँगन की क्यारी में ,हरे - भरे चमेली के पौधे पर - जब नज़र आई थी शंकुनुमा कलियाँ पहली बार !तो मैंने कहा था कलियों से चुपके से -"कि चटकना उसी दिन और खोल देना गंध के द्वार ,जब तुम आओ

8

तुम्हारा मौन

16 फरवरी 2017
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असह्य हो चुका है तुम्हारा - ये विचित्र मौन ; विरक्त हो जाना तुम्हारा - रंग , गंध और स्पर्श के प्रति ; अनासक्त हो जाना - अप्रतिम सौन्दर्य के प्रति | भावहीन हो बैठ उपेक्षा करना - संगीत की मध

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अलमस्त बचपन -- कविता

25 फरवरी 2017
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भरपूर हरियाली खेतों की --- और बचपन की ये मस्त अदा ! तन धरा पे मन अम्बर में - हटी है जग की हर बाधा !! खुशियों का जब चला काफिला - झुक - सा गया गगन नीला . धरती की गोद में अनायास - कोई फूल

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तुम्हारी आँखों से --

26 फरवरी 2017
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तुम्हारी आँखों से छलक रही है किसी की चाहत अनायास -- जो भरी हैं पूनम जैसे उजास से और हर पल चमकती हैं --- अँधेरे में जलते दो दीपों की मानिंद ; जो

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कल सपने में ---- नव गीत

4 मार्च 2017
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कल सपने में हम जैसे - इक सागर तट पर निकल पड़े! लेकर हाथ में हाथ चले और निर्जन पथ पर निकल पड़े जहाँ फैली थी मधुर चांदनी - शीतल जल के धारों पे , कुंदन जैसी रात थमी थी -- मौन स्तब्ध आधारों पे फेर आँखे जग - भर से वहां- दो प्रेमी नटखट निकल पड़े फिर से हमने चुनी

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होली गीतों की भूली बिसरी परम्परा

9 मार्च 2017
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होली का पर्व अपने साथ ऐसा उल्लास और उमंग ले कर आता है जिसमे हर इन्सान आकंठ डूब जाता है | ये फाल्गुन मास में आता है | फाल्गुन मास में बसंत ऋतुअपने चरम पर होतीहै | कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि फागुन मास में प्रकृति का उत्सव मनता है | धरती सरसों

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चाँद फागुन का -- नवगीत

12 मार्च 2017
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बादल संग आंखमिचौली खेले -- पूरा चाँद सखी फागुन का-- ! संग जगमग तारे - लगें बहुत ही प्यारे ; सजा है आँगन आज गगन का ! सखी ! दूध सा चन्दा -- दे मन आनंदा ; हरमन भाये ये समां पूनम का ! कोई फगुवा गाये -

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कहीं मत जाना तुम -- कविता

19 मार्च 2017
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बिनसुने - मन की व्यथा -- दूर कहीं मत जाना तुम ! किसने - कब- कितना सताया - सब कथा सुन जाना तुम ! ! जाने कब से जमा है भीतर -- दर्द की अनगिन तहें , जख्म बन चले नासूर - अब तो लाइलाज से हो गए ; मुस्कुरा दूँ मैं जरा सा -- वो वजह बन जाना तुम ! ! रो

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गंगा -- यमुना कब ना थी ज़िंदा इकाई ?

23 मार्च 2017
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20 मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया है और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | केंद्र सरकार को भी नियत आठ सप्ताह की अवधि में गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का आदेश दिया

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आई तुम्हारी याद -- कविता

28 मार्च 2017
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दूभर तो बहुत थी - ये उदासियाँ मगर , आई तुम्हारी याद - तो हम मुस्कुरा दिए ! आई पलट के खुशियां - महकी हैं मन की गलियां ; बहुत दिनों के बाद - हम मुस्कुरा दिए ! ! बड़े विकल कर रहे थे -- कुछ जो संशय मनचले थे ; धीरज ना कुछ बचा था - और नैन भर चले थे ; बस यूँ ही उड़

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हिमालय - वंदन ----------- - कविता

1 अप्रैल 2017
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सुना है हिमालय हो तुम ! सुदृढ़ , अटल और अविचल - जीवन का विद्यालय हो तुम ! ! शिव के तुम्ही कैलाश हो - माँ जगदम्बा का वास हो , निर्वाण हो महावीर का -- ऋषियों का चिर - प्रवास हो ; ज्ञान - भक्ति से भरा - बुद्ध का करुणालय हो तुम ! ! युगों से अजेय हो -- वीरों

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तुलसी के राम

6 अप्रैल 2017
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श्री राम कृष्ण भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और परिचायक हैं |कहते हैं यदि भारतीय संस्कृतिऔर समाज में से राम और कृष्ण को निकाल दिया जाये तो वह शून्य नहीं तो शून्य प्राय अवश्य हो जायेगी | दोनों ही भारतीय समाजके जननायक नहीं बल्कि युग नायक हैं | जहाँ श्री कृष्ण के बालपन , किशोरावस्थ

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अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली --- कविता --

11 अप्रैल 2017
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अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली , पेड़ को रह रह ताक रही हैं उनकी नजरे भोली ! ! हरे भरे पेड़ पर लदे हैं -फल आधे कच्चे आधे पक्के बड़ी ललचाई नजरों से ताके जाते हैं बच्चे ; कई तिडकम भिड़ा रहे भीतर ही भीतर होगे सफल बड़े हैं धुन के पक्के ; देख -समझ ना कोई

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सांस्कृतिक चेतना का पर्व -- बैशाखी

14 अप्रैल 2017
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जीवन में इन्सान हर रोज़ अनेक प्रकार के संघर्ष , पीड़ा , कुंठा , बेबसी और अभाव आदि से रु - ब- रु होता है | भले ही वह बाहर से कितना भी प्रसन्न और सुखी क्यों ना दिखाई देता हो , एक उदासी क

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श्रमिक दिवस ------ श्रम का उपासना पर्व ---

30 अप्रैल 2017
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किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार श्रमिक है | प्रत्येक युग और काल में अपने श्रम के बूते पर श्रमिक ने दुनिया की प्रगति और उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया है | सड़क हो या घर , सुई हो या हवाई जहाज सबके निर्माण में

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मैं श्रमिक --- कविता --

30 अप्रैल 2017
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इंसान हूँ मेहनतकश मैं - नहीं लाचार या बेबस मैं ! बड़े गर्व से खींचता अपने जीवन का ठेला -- संतोषी मन देख रहा अजब दुनिया का खेला ा ! गाँधी सा सरल चिंतन - मैले कपडे उजला मन , श्रम ही स्वाभिमान

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सुनो गिलहरी ------------ कविता

7 मई 2017
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पेड़ की फुनगी के मचान से - क्या खूब झांकती हो शान से , देह इकहरी काँपती ना हांफती -- निर्भय हो घूमती बड़े स्वाभिमान से ! पूंछ उठाये - चौकन्नी निगाह

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प्रेम और करुणा के बुद्ध

9 मई 2017
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ढाई हजार साल पूर्व - ईशा पूर्व की छठी सदी धरा पर महात्मा बुद्ध का अवतरण मानव सभ्यता की सबसे कौतुहलपूर्ण घटना है | बुद्ध की जीवन गाथा कदम - कदम पर नए आयाम रचती है | बुद्ध के जीवन में कहाँ रहस्य नहीं है -- कहाँ कौत

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माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा ------ कविता

13 मई 2017
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माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा बिटिया की माँ बनकर मैंने तेरी ममता को पहचाना है ,माँ बेटी का दर्द का रिश्ता - क्या होता है ये जाना है ; बिटिया की माँ बनी हूँ जबसे - - पर्वत ये तन बना है मेरा ,उसका हंसना , रोना और खान

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सुनो -- मनमीत ---------नवगीत -

17 मई 2017
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पीड़ - पगे मन से आ मिल कर - इक अमर - गीत लिखें हम तुम ! हार के भी सदा जीती है - जग में प्रीत लिखें हम - तुम ! ! तन पर अनगिन जख्म सहे - तब जाकर साकार हुई - मंदिर में रखी मूर्त यूँ हुई

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आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ------- कविता

20 मई 2017
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आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ,फुर्र - फुर्र उड़ती - चले चाल लहरिया !शायद भूली राह - तब इधर आई - देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ; फुदके पात पात - हर डाल

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पेड़ ने पूछा चिड़िया से --- कविता

23 मई 2017
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पेड़ ने पूछा चिड़िया से --------- तेरी ‘ चहक’ का फल कहाँ लगता है ? जिसको चख सृष्टि के कण - कण में – आनंद चंहु ओर विचरता है ! ! जो फूल में गंध बन कर बसता, करुणा से तार मन के कसता ; जो अनहद - नाद सा गुंजित

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गीतिका --

28 मई 2017
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जगी आँखों से सपने-- ए मन तू ना देख यहाँ , कहाँ लिखे थे उनके संग - तेरी किस्मत के लेख यहाँ ? चकोर को कब मिला चंदा - हर सीप को कब मिला मोती ? प

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ये रुदन है हिमालय का ------------- कविता --

16 जून 2017
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ये रुदन है हिमालय का जो हर बंध तोड़ बह रहा है मिट जाऊंगा तब मानोगे - आक्रांत हो कह रहा है ! ''कर दिया नंगा मुझे - नोच ली हरी चादर मेरी , जंगल सखा भी मिट चले - जिनसे थी ग़ुरबत मेरी , ''चीत्कारता पर्वतराज - खोल दर्द की गिरह रहा है

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स्मृति शेष -- पिता जी

17 जून 2017
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कल थे पिता - पर आज नहीं है - माँ का अब वो राज नहीं है ! दुनिया के लिए इंसान थे वो , पर माँ के भगवान् थे वो ; बिन कहे उसके दिल तक जाती थी खो गई अब वो आवाज नहीं है ! ! माँ के सोलह सिंगार थे वो ,माँ का

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सुनो बादल ! --- कविता - --

30 जून 2017
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नील गगन में उड़ने वाले - ओ ! नटखट आवारा बादल , मुक्त हवा संग मस्त हो तुम किसकी धुन में पड़े निकल ! उजले दिन काली रातों में - अनवरत घूमते रहते हो ,उमड़ - घुमड़ कहते क्या - और किसको ढूंढते रहते हो ? बरस पड़ते किसकी याद में जाने - तुम सहसा करके नयन तरल !! तुम्

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श्री गुरुवै नमः -------- गुरु पूर्णिमा पर विशेष-

9 जुलाई 2017
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भारत अनंत काल से ऋषियों और मनीषियों की पावन भूमि रहा है जिन्होंने समूचे विश्व और भटकी मानवता का सदैव मार्ग प्रशस्त कर उन्हें सदाचार और सच्चाई की राह दिखाई है | इसकी अध्यात्मिक पृष्ठभूमि ने हर काल में गुरुओं के सम्मान की परम्परा को अक्षुण रखा है | अनादिकाल से ही आमजन से लेकर अवतारों तक के जीवन में ग

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गाँव में कोई फिर लौटा है -- नवगीत --

13 जुलाई 2017
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मुद्दत बाद सजी गलियां रे -गाँव में कोई फिर लौटा है !जीवन बना है इक उत्सव रे - गाँव में कोई फिर लौटा है ! !रोती थी घर की दीवारें छत भी यूँ ही चुपचाप पड़ी थी

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बिटिया ---- कविता --

20 जुलाई 2017
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घर संभालती बिटिया -घर संवारती बिटिया , स्वर्ग को धरती पे उतारती बिटिया ! सुधड़ है सयानी है बिटिया तो घर की रानी है ;उम्र भले छोटी है -पर बातों में पूरी नानी है ;सफल दुआ जीवन की

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मेरे गाँव ------------ कविता --

24 जुलाई 2017
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तेरी मिटटी से बना जीवन मेरा -तेरे साथ अटूट है बंधन मेरा , तुझसे अलग कहाँ कोई परिचय मेरा ? तेरे संस्कारों में पगा तन मन मेरा !!नमन तेरी सुबह और शाम कोतेरी धरती, तेरे खेत - खलिहान कोतेरी गलियों ,मुंडेरों का कहाँ सानी कोई ? वंदन मेरा तेरे खुले आसमान को ;तेरे उदार परिवेश

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तुम्हारे दूर जाने से साथी --- कविता --

27 जुलाई 2017
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तुम्हारे दूर जाने से साथी - मन को ये एहसास हुआ दिन का हर पहर था खोया सा -मन का जैसे वनवास हुआ !! अनुबंध नहीं कोई तुमसे -जीवन भर साथ निभाने

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गा रे जोगी ! -------- कबिता |

31 जुलाई 2017
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गा रे! कोई ऐसा गीत जोगी –बढे हर मन में प्रीत जोगी ! ना रहा अब वैसा गाँव जोगी जहाँ थी प्यार ठांव जोगी . भूले पनघट के गीत प्यारे - खो गई पीपल की छांव जोगी ; बढ़ी दूरी मनों में ऐसी - कि बिछड़े मन के मीत जोगी !! बैठ बाहर फुर्सत में गाँव टीले - तू

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शुक्र है गाँव में ----- कविता --

3 अगस्त 2017
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शुक्र है गाँव में इक बरगद तो बचा है जिसके नीचे बैठते - रहीम चचा हैं !! हर आने -जाने वाले को सदायें देते हैं - चाचा सबकी बलाएँ लेते हैं , धन कुछ पास नहीं उनके - बस खूब दुआएं देते हैं ; नफरत से कोसों दूर है - चाचा का दिल सच्चा है !! सिख - हिन्दू य

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अपराजिता ---------------------- कहानी --

10 अगस्त 2017
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संघर्ष की धूप ने गौरवर्णी तारो को ताम्र वर्णी बना दिया था | लगता था नियति ने ऐसा कोई वार नहीं छोड़ा -जिससे तारो को घायल न किया हो - पर तारो थी कि नियति के हर वार को सहती - निडरता से जीवन की राह पर चलती ही जा रही थी | लोग कहते थे बड़ी अभागी है तारो –

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सूर के श्याम ------- जन्माष्टमी पर विशेष ---

14 अगस्त 2017
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भारतवर्ष के सांस्कृतिक सामाजिक और धार्मिक के साथ हर रोज के जीवन का एक अक्षुण अंग हैं राम और कृष्ण | राम जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम है तो वही कृष्ण के ना जाने कितने रूप है | श्री कृष्ण को सम्पूर्णता का दूसरा नाम कहा गया है| वे चौसठ क

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बीते दिन लौट रहे हैं --------- नवगीत --

27 अगस्त 2017
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ये सुनकर उमंग जागी है ,कि बीते दिन लौट रहे हैं ;उन राहों में फूल खिल गए - जिनमे कांटे बहुत रहे है ! चिर प्रतीक्षा सफल हुई - यत्नों के फल अब मीठे हैं , उतरे हैं रंग जो जी

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लम्पट बाबा ----- कविता --

30 अगस्त 2017
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कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ? धर सर कथित ' ज्ञान ' का झाबा !!गुरु ज्ञान की डुगडुगी बजायी -विवेक हरण कर जनता लुभाई ,श्रद्धा , अन्धविश्वास में सारे डूबे - हुई गुम आडम्बर में सच्चाई ; बन बैठे भगवान समय के खुद बन गये काशी काबा !! धन बटोरें

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मेरी वे अंग्रेजी शिक्षिका-- संस्मरण -----

4 सितम्बर 2017
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छात्र जीवन में शिक्षकों का महत्व किसी से छुपा नहीं | इस जीवन में अनेक शिक्षक हमारे जीवन में ज्ञान का आलोक फैलाकर आगे बढ़ जाते है पर वे हमारे लिए प्रेरणा पुंज बने हमारी यादों से कभी ओझल नहीं होते | एक शिक्षक के जीवन में अनगिन छात्र - छात्राएं आते हैं तो विद्यार्थी भी

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राह तुम्हारी तकते - तकते ---------- कविता --

16 सितम्बर 2017
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राह तुम्हारी तकते - तकते-यूँ ही बीते अनगिन पल साथी,आस हुई धूमिल संग में -ये नैना हुए सजल साथी ! !दुनिया को बिसरा कर दिल ने-सिर्फ तुम्हे ही याद किया ,हो चली दूभर जब तन्हाईतुमसे मन ने संवाद किया - पल भर को भी मन की नम आँखों से- ना हो

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माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है --------- कविता |

2 अक्टूबर 2017
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माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है - माँ की आँख डबडबाने लगी है ! चिर परिचित खेत खलिहान यहाँ हैं ,माँ के बचपन के निशान यहाँ हैं ; कोई उपनाम -

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ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल-- कविता ------

5 अक्टूबर 2017
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तुम्हारी आभा का क्या कहना !ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!कौतुहल हो तुम सदियों से श्वेत ,, शीतल , नूतन धवल !!! रजत रश्मियाँ झर झर झरती अवनि अम्बर में अमृत भरतीकौन न भरले झोली इससे ? तप्त प्राण को शीतल करती थकते ना नैन निहार तुम्हे तुम निष्कलुष , ,पावन और निर्मल | ओ शरद पूर्णि

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एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत --

17 अक्टूबर 2017
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अनगिन दीपों संग आज जलाऊँ - एक दीप तुम्हारे नाम का साथी ,तुम्हारी प्रीत से हुई है जगमग क्या कहना इस शाम का साथी !! जब से तुम्हे साजन पाया है -मन हर्षित हो बौराया है ,तुमसे कहाँ अब अलग रही मैं ?खुद को खो तुमको पाया है ; भीतर तुम हो -बाहर तुम हो - तू आराध्य मेरे मन धाम का साथी

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आँगन में खेल रहे बच्चे ---------- बाल कविता ---

8 नवम्बर 2017
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आँगन में खेल रहे बच्चे ,भोले भाले मन के सच्चे !एक दूजे के कानों में -गुप चुप से बतियाते हैं , तनिक जो हो अनबन आपस में -खुद मनके गले मिल जाते है ;भले -बुरे तर्क ना जानेबस हैं थोड़े अक्ल के कच्चे !आँगन में खेल रहे बच्चे !!निश्छल राहों के ये राही -भोली मुस्कान से जिया चुरालें ,नजर भर

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सुनो जोगी !------- कविता -

17 नवम्बर 2017
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ये तुमने कैसा गीत सुनाया जोगी - जिसे सुनकर जी भर आया जोगी , ये दर्द था कोई दुनिया का – या दुःख अपना गाया जोगी ! अनायास उमड़ा आखों में पानी - कह रहा कुछ अलग कहानी , तन की

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मेहंदीपुर बालाजी के बहाने से ---लेख --

27 नवम्बर 2017
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इस साल अक्टूबर की २३ तारीख को राजस्थान में मेहंदीपुर बाला जी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | दिल्ली से मेहंदीपुर के लिए बेहतरीन सडक मार्ग है -- बीच मार्ग में इस सड़क के - जिसके साथ - साथ खूबसूरत अरावली पर्वत श्रृखंला है | क्योकि इससे पूर्व कभी मैंने

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जीवा----- कहानी --

30 नवम्बर 2017
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नीम के पेड़ से छनकर आती धूप , जैसे ही जीवा के तन को जलाने लगी, हडबडा कर उसकी आँख खुल गई | ना जाने कब से लेटा था -वह नीम की छाँह तले | जब सोया था -तब सूरज घर के पिछवाड़े की तरफ था -अब ठीक नीम के ऊपर चमक रहा है | भादो की चिलचिलाती धूप और उस पर हवा

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फिर चोट खाई दिल ने --कविता

7 दिसम्बर 2017
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फिर चोट खाई दिल ने --और बरबस लिया पुकार तुम्हे , हो विकल यादों की गलियों में - मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे ! मुंह मोड़ के चल दिए साथी - तुम तो नयी मंजिल - नयी राहों पे ; ये तरल नैन रह गए तकते - तुम रहे अनजान जिगर की आहों से ; उस दिल को बिसरा कर बैठ

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समय साक्षी रहना तुम -- कविता --

27 दिसम्बर 2017
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अपने अनंत प्रवाह में बहना तुम , पर समय साक्षी रहना तुम !! उस पल के- जो हो सत्य सा अटल - ठहर गया है भीतर कहीं गहरे ,रूठे सपनों से मिलवा जो - भर गया पलकों में रंग सुनहरे ; यदा -कदा बैठ साथ मेरे -उन यादों के हार पिरोना तुम !! जिसमे आया जाने कहाँ से - जन्मों की ले पहचान कोई , विस्मय

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अलविदा -- 2017--

31 दिसम्बर 2017
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शब्द नगरी संगठन और सभी साहित्य मित्रों और पाठको को मेरी और से नूतन वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं | जाते साल को हजारों सलाम जिसने शब्द नगरी के माध्यम से एक सार्थक मंच प्रदान कर अनेक दिव्य अनुभ

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शब्द नगरी पर एक साल -- लेख |

12 जनवरी 2018
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समय निरंतर प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी - मीठी यादों का साक्षी बनता है | इनमे से कई पल यादगार बन जाते हैं | पिछले साल मेरे जीवन में भी शब्दनगरी से जुड़ना एक यादगार लम्हा बन कर रह गया | जनवरी --2017 में गूगल पर पढने क

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बसंत बहार से तुम------ कविता --

20 जनवरी 2018
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था पतझड़ सा नीरस जीवन -आये बसंत बहार से तुम ,सावन भले भर -भर बरसे - पहली सौंधी बौछार से तुम | ये मन कितना अकेला था एकाकीपन में खोया था , खुशियों का था इन्तजार कहाँ बुझा - बुझा हर रोयाँ था ;तपते मन पे सहसा बरस गए बन शीतल मस्त फुहार से तुम ! मधु सपना बन ठहर गए - इन थकी मांदी सी

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ऋतुराज आया है -- निबंध --

22 जनवरी 2018
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माघ की कडकडाती ठंड के बीच शरद ऋतु में सिकुड़े दिन विस्तार पाने लगते है तो धूप में हलकी गरमी ठण्ड से त्रस्त तन और मन को अपनी गर्माहट से सेककर अनुपम आनंद प्रदान करती है |धीरे धीरे गरमाती ऋतु में आहट देता है -- बसंत | जिसे ऋतुराज कह सृष्टि ने सिर- माथे पर धारण किया है और इसे मधुम

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जिन्होंने वारे लाल वतन पे - कविता

24 जनवरी 2018
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जिन्होंने वारे लाल वतन पे -नमन करो उन माँओं को ;जिनके मिटे सुहाग देश - हित--शीश झुकाओं उन ललनाओं को !!दे सर्वोच्च बलिदान जीवन का -मातृभूमि की लाज बचाई .जिनकी बदौलत आज आजादी -हो सत्तर की इतरायी ;यशो गान रचो उन वीरो

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चाँद साक्षी आज की रात

30 जनवरी 2018
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तेरे मेरे अनुपम प्रणय का- चाँद साक्षी आज की रात ; मेरे मन में तेरे विलय का - चाँद साक्षी आज की रात ! झांके गगन की खिड़की से -चंदा घिरा तारों के झुरमुट से, मुस्काए नटखट आनन्द भरा -छलकाए रस अम्बर घट से ; सजा है आँगन नील न

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इन्द्रधनुष कविता --

8 फरवरी 2018
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जाने ये कौन चितेरा है -जो सजा लाया नया सवेरा है , नभ की कोरी चादर पर जिसने - हर रंग भरपूर बिखेरा है ?ये कौन तूलिका है ऐसी -जो ज़रा नजर नहीं आई है ?पर पल भर में ही देखो -अम्बर को सतरंगी कर लाई है ?जो धरा को कर हरित वसना - पथ में बिछा गया रंग

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नदिया तुम नारी सी --- कविता -

10 फरवरी 2018
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नदिया तुम नारी सी -निर्मल, अविकारी सी , कहीं जन्मती कहीं मिल जाती -नियति की मारी सी !!निकली बेखबर अल्हड , शुभ्रा ,स्नेह्वत्सला ,धवल धार , पर्वत प्रांगण में इठलाती - प्रकृति का अनुपम उपहार ; सुकुमारी अल्हड बाला -तुम बाबुल की दुलारी सी -नदिया तुम नारी सी !! हुलसती,

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शिव -वंदना -----------

13 फरवरी 2018
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ओंकार तू ! निर्विकार तू !! सृष्टि का पालन हार तू !सदाशिव !स्वीकार करो नमन मेरा !आत्म वैरागी -हे नीलकंठ !तू आदि अनंत -- तू दिग्दिगंत !!अव्यक्त ,अनीश्वर ,शशिशेखर ! शिवा,सोमनाथ ,संतों का संत !विष्णुवल्लभ ,आत्मानुरागी-हे सदाशिव !स्वीकार करों अर्चन मेरा !!तू त्रिकालसृष्टा ! तू अनंत दृष्टा!यूँ ही

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खलल मत डालना इनमे------ कविता --

18 फरवरी 2018
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किसी हिन्दू की करना ना मुसलमान की करना ,बात जब भी करना- बस हिदुस्तान की करना !!न है वो किसी मस्जिद में -ना बसता पत्थर की मूरत में ,इसी जमीं पे रहता है वो -बस इंसानों की सूरत में ; अल्लाह , ईश्वर से जो मिलना -तो कद्र हर इन्सान की करना !!सरहद पे जो जवान -हर जाति- धर्म से दूर था ,सीने पे गोली

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मन प्रश्न कर रहे ------- कविता

25 फरवरी 2018
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हुआ शुरू दो प्राणों का -- मौन -संवाद- सत्र !मन प्रश्न कर रहे - स्वयम ही दे रहे उत्तर !!हैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?कोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ? न कोई पाया जान सृष्टि का राज ये गहरा-राग- प्रीत गूंज रहा हर दिशा में रह- रह कर !!समझ रहे एक दूजे के मन की भाषा - जग पड़

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बसंत गान ------

27 फरवरी 2018
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हंसो फूलो -- खिलो फूलो -डाल-डाल पर झूलो फूलो !उतरा फागुन मास धरा पर -हर रंग रंग झूमो फूलो !!गलियों में सुगंध फैलाओ,भवरों पर मकरंद लुटाओ ;भेजो आमन्त्रण तितली को -''कि बूंद - बूंद रस पी लो'' फूलो ! !हंसों के नीम -आम बौराएँ -खिलो के कोकिल तान चढ़ाए , महको - महके रात संग तुम्हारे - घुल पवन में अम्ब

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जीवन में तुम्हारा होना---- कविता --

9 मार्च 2018
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जब सबने रुला दिया -तब तुमने हंसा दिया ,ये कौन प्रीत का जादू भीतर -तुमने जगा दिया ? जीवन में तुम्हारा होना - शायद अरमान हमारा था ;इसी लिए अनजाने में दिल ने तुम्हे पुकारा था ; सहलाया ये घायल अंतर्मन --मरहम सा लगा दिया !!खुद को भूले बैठे थे -जीवन की तप्त दुपहरी थी - जो साथ तुम्हे लेकर

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पुस्तक समीक्षा --------- मन कितना वीतरागी --लेखक -- पंकज त्रिवेदी जी --

12 मार्च 2018
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शब्दनगरी पर पिछले साल जनवरी से लेख न के दौरान कलम के धनी अनेक विद्वानों से परिचय हुआ उन्ही मे से एक हैं आदरणीय 'पंकज त्रिवेदी 'ज

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दो परियां ये आसमान की ---- कविता --

22 मार्च 2018
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दो परियां ये आसमान की मेरी दुनिया में आई हैं ,सफल दुआ जीवन की कोई -स्नेह की शीतल पुरवाई है ;तुम दोनों संग लौट आया है -वो भुला सा बचपन मेरा ; तुम्हारी निश्छल हंसी से चहका -ये सूना सा आँगन मेरा ; एक शारदा - एक लक्ष्मी सी -पा तुम्हे

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जिस पहर से----- कविता --

31 मार्च 2018
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जिस पहर से पढने- शहर गये हो ; तन्हाईयों से ये - घर आँगन भर गये हैं |उदासियाँ हर गयी है - घर भर का ताना - बाना ,हर आहट पे तुम हो -अब ये भ्रम पुराना ; जाने कहाँ वो किताबे तुम्हारी - बन प्रश्न तुम्हारे-मेरे उत्तर गये है !!झांकती हूँ गली में-लौटे बच्चों की टोली,याद आ जाती तुम्हारी - सूरत सलोनी

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पुस्तक समीक्षा - प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) ---------कवि - रवीन्द्र सिंह यादव -

10 अप्रैल 2018
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पुस्तक- प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) विधा - काव्य संग्रह कवि - रवीन्द्र सिंह यादव ISBN : 978-93-86352-79-8प्रकाशक - ऑनलाइन गाथा, लखनऊ मूल्य - 50 रुपये तकनीकी युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन माध्यम बन कर उभरा है | यहाँ अनेक मंच हैं जिन

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बुद्ध की यशोधरा -- कविता |

21 अप्रैल 2018
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बुद्ध की प्रथम और अंतिम नारी- जिसने उसके मन में झाँका,जागी थी जैसे तू कपलायिनी -- ऐसे कोई नहीं जागा !!पति प्रिया से बनी पति त्राज्या-- सहा अकल्पनीय दुःख पगली,नभ से आ गिरी धरा पे- नियति तेरी ऐसी बदली ; वैभव से बुद्ध ने किया पलायनत

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साहित्य के गुरुदेव -- रवीन्द्रनाथटैगोर --- लेख

7 मई 2018
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भारतीय साहित्य जगत में पूजनीय रविन्द्रनाथ टैगोर ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने अपनी असीम प्रतिभा से बहुत बड़े काल खंड को अपनी मौलिक विचारधारा और साहित्य कर्म से ,सांस्कृतिक चेतना के मध्यम पड़ रहे स्वर को प्रखर किया | उनका जन्म साहित्य और संस्कृति के उत्थान के शुभ संकेत लेकर आया | जैसा

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गंगा रे तू बहती रहना -लेख --

23 मई 2018
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भारत के परिचय में सबसे पहले शामिल होने वाले प्रतीकों में गंगा का नाम सर्वोपरि आता है | यूँ तो हर नदी की तरह गंगा भी एक विशाल जलधारा का नाम है पर भारत वासियों के लिए ये एक मात्र नदी बिलकुल नही है बल्कि प्रातः स्मरणीय प्रार्थना है | कौन

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जिद -- लधु कथा --

31 मई 2018
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फोन में व्हाट्स अप्प पर धडा - धड आते तुम्हारे अनगिन फोटो देख मैं स्तब्ध हूँ ! इन में तुम्हारी रक्तरंजित निर्जीव देह गोलियों से बिंधी हुई एक हरे मैदान के बीचो बीच लावारिस सी पडी है | छः फुट का सुंदर सुडौल शरीर मिटटी बन गया है अब |तुम्हारी पीली कमीज और जींस खून से भरी है | |जख्

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रूहानी प्यार ----- कविता -------------

3 जून 2018
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हुए रूहानी प्यार केकर्ज़दार हम - -- रखेगें इसे दिल मेंसजा संवार हम !! बदल जायेंगे जब - सुहाने ये मन के मौसम , तनहाइयों में साँझ की घुटने लगेगा दम - खुद को बहलायेंगें-इसको निहार हम !! इस प्यार की क्षितिज पे रहेंगी टंकी कहानियां , लेना ढूंढ तुम वहीँ

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उतराखंड त्रासदी ---- हिमालय का आक्रांत स्वर -----लेख --

16 जून 2018
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हिमालय पर्वत सदियों से भारत का रक्षक और पोषक रहा है |इसकी प्राकृतिक सम्पदा ,चाहे वह वन संपदा हो या खनिज संपदा - ने जनजीवन को धन - धान्य से भरपूर किया है , तो इसके हिमनद सदानीरा नदियों के एकमात्र जल स्त

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संत कबीर लेख ---------- कबीर जयंती पर विशेष

27 जून 2018
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हिंदी साहित्य में कबीर भक्ति काल के प्रतिनिधि कवि के रूप में जाने जाते हैं | इसके अलावा वे भारत वर्ष के सांस्कृतिक और अध्यात्मिक जीवन को ऊर्जा देने वाले प्रखर प्रणेता हैं | उनकी ओजमयी फक्कड वाणी आज भी प्रासंगिक है | कौन है ज

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पुण्यस्मरण बाबा नागार्जुन -- जन्म दिन विशेष --

30 जून 2018
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परिचय--- बाबा नागार्जुन हिंदी और मैथिलि साहित्य के वो विलक्षण व्यक्तित्व हैं जिनकी-- काव्यात्मक प्रतिभा के आगे पूरा साहित्य जगत नत है | इन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के दरभंगा जिले के ''तौरानी''नामक गाँव में मैथिलि ब्राह्मण परिवार में हुआ |संयोग ही रहा क

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जो ये श्वेत,आवारा , बादल -कविता

5 जुलाई 2018
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जो ये श्वेत,आवारा , बादल - रंग -श्याम रंग ना आता –कौन सृष्टि के पीत वसन को- रंग के हरा कर पाता ? ना सौंपती इसे जल संपदा – कहाँ सुख से नदिया सोती ? इसी जल को अमृत घट सा भर- नभ से कौन छलकाता ?किसके रंग- रंगते कृष्ण सलोने घनश्याम कहाने खातिर ?इस सुधा रस बिन क

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विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी

24 जुलाई 2018
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पंजाब का शाब्दिक अर्थ पांच नदियों की धरती है | नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं पनपतीहैं और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ अनेक तरह से मानव को उपकृत कर मानव जीवन को धन - धान्

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सावन की सुहानी यादें -- लेख -

12 अगस्त 2018
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सावन के महीने का हम महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है | फागुन के बाद ये दूसरा महीना है जिसमे हर शादीशुदा नारी को मायका याद ना आये .ये हो नहीं सकता | मायके से बेटियों का जुड़ाव सनातन है | मायके के आंगन की यादें कभी मन से ओझल नहीं होती | भारत में प्रायः हर जगह

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अमर शहीद के नाम --

15 अगस्त 2018
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जब तक हैं सूरज चाँद --अटल नाम तुम्हारा है , ओ ! माँ भारत के लाल ! अमर बलिदान तुम्हारा है !!-आनी ही थी मौत तो इक दिन -- जाने किस मोड़ पे आ जाती.- कैसे पर गर्व से फूलती , - मातृभूमि की छाती ;-दिग -दिंगत में गूंज रहा आज--यशोगान तुम्हारा है !!ओ ! माँ भार

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भैया तुम हो अनमोल !

25 अगस्त 2018
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जग में हर वस्तु का मोल - पर भैया तुम हो अनमोल !दर-दर पर शीश झुका करके - मांगा था तुझे विधाता से -तुम सा कहाँ कोई स्नेही- सखा मेरा -मेरा गाँव तो है तेरे दम से ; सुख- दुःख साझा कर लूं अपना रख दूं तेरे आगे मन खोल !!बचपन में जब तुमने गिर -गिर - ये ऊँगली पकड चलना सीखा , नीलगगन का चंदा भी -था

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अन्तरिक्ष परी - कल्पना चावला

30 अगस्त 2018
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चित्र--- अपनी चिरपरिचित गर्वित मुस्कान के साथ कल्पना चावला --परिचय भारत की अत्यंत साहसी और कर्मठ बेटियों का जिक्र बिना कल्पना चावला के कभी पूरा नही होता | उन्हें भा

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तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे -- कविता

9 सितम्बर 2018
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मीत कहूं ,मितवा कहूं ,क्या कहूं तुम्हे मनमीत मेरे ? नाम तुम्हारे हर शब्द मेरे तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे !! हर बात कहूं तुमसे मन की - कह अनंत सुख पाऊँ मैं , निहारूं नित मन- दर्पण में - तुम्हे स्वसम्मुख पाऊँ मैं;सजाऊँ ख्वाब नये तुम संग - भूल, ये गीत -अतीत मेरे !!सृष्टि में जो ये प्रणय

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तृष्णा मन की -

23 सितम्बर 2018
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मिले जब तुम अनायास - मन मुग्ध हुआ तुम्हे पाकर ; जाने थी कौन तृष्णा मन की - जो छलक गयी अश्रु बनकर ? हरेक से मुंह मोड़ चला - मन तुम्हारी ही ओर चला अनगिन छवियों में उलझा - तकता हो भावविभोर चला- जगी भीतर अभिलाष नई- चली ले उमंगों की नयी डगर ! !प्राण

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नेह तुलिका --

6 अक्टूबर 2018
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रंग दो मन की कोरी चादर हरे ,गुलाबी , लाल , सुनहरी रंग इठलायें जिस पर खिलकर !! सजे सपने इन्द्रधनुष के - नीड- नयन से मैं निहारूं सतरंगी आभा पर इसकी -तन -मन मैं अपना वारूँबहें नैन -जल कोष सहेजे-- मुस्काऊँ नेह -अनंत पलक भर !! स्नेहिल सन्देश तुम्

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भूली बिसरी पाती स्नेह भरी --[ विश्व डाक दिवस ]

9 अक्टूबर 2018
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विश्व डाक दिवस -- आज विश्व डाक दिवस है | इस दिन के बहाने से चिट्ठियों के उस भूले बिसरे संसार में झाँकने का मन हो आया है ,जो अब गौरवशाली अतीत बन गया है | भारत में राजा रजवाड़ों के समय में संदेशों का आदान - प्रदान विश्वसनीय सन्देशवाहकों के माध्यम से होता था जो पैदल या घोड़ों आदि के माध्यम से

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उलझन -- लघु कविता

14 अक्टूबर 2018
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इक मधुर एहसास है तुम संग - ये अल्हड लडकपन जीना , कभी सुलझाना ना चाहूं - वो मासूम सी उलझन जीना ! बीत ना मन का मौसम जाए - चाहूं समय यहीं थम जाए ; हों अटल ये पल -प्रणय के साथी - भय है, टूट ना ये भ्रम जाए संबल बन गया जीवन का - तुम संग ये नाता पावन जीना ! बांधूं अमर प्रीत- बंध मन के तुम सं

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समाज के अनसुने मर्मान्तक स्वर ----------------पुस्तक समीक्षा- चीख़ती आवाजें - कवि ध्रुव सिंह ' एकलव्य '---

29 नवम्बर 2018
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साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है | वो इसलिए समय के निरंतर प्रवाह के दौरान साहित्य के माध्यम से हम तत्कालीन परिस्थितियों और उनके प्रभाव से आसानी से रूबरू हो पाते हैं | सब लोग हर दिन असंख्य लोगों की समस्याओं और उनके जीवन के सभी रंगों को देखते रहते हैं शायद वे उन

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सुन ! ओ वेदना-- कविता --

13 दिसम्बर 2018
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सुन ! ओ वेदना जीवन में -लौट कभी ना आना तुम !घनीभूत पीड़ा -घन बन -ना पलकों पर छा जाना तुम !!हूँ आलिंगनबद्ध - सुखद पलों से -कर ना देना दूर तुम , दिव्य आभा से घिरी मैं -ना हर लेना ये नूर तुम ,सोई हूँ ले सपने सुहाने - ना मीठी नी

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चाँद हंसिया रे !

2 फरवरी 2019
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चाँद हंसिया रे ! सुन जरा !ये कैसी लगन जगाई तूने ? कब के जिसे भूले बैठे थे -फिर उसकी याद दिलाई तूने !!गगन में अकेला बेबस सा - तारों से बतियाता तू नीरवता के सागर में - पल - पल गोते खाता तू ;कौन खोट करनी में आया ? \ये बात न

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लौटा माटी का लाल

16 फरवरी 2019
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गूंजी मातमी धुन लुटा यौवन तन सजा तिरंगा लौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को ! इतराया था एक दिन तन पहन के खाकी चला वतन की राह ना कोई चाह थी बाकी चुकाने दूध का कर्ज़ पिताका मान बढाने को ! लौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को !!रचा चक्रव्यूह शिखंडी शत्रु ने छुपके घात लगाई कु

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हार्दिक अभिनन्दन !

1 मार्च 2019
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वीर अभिनन्दन ! हार्दिक अभिनन्दन ! तुम्हारे शौर्य को कोटि वन्दन ! पुलकित , गर्वित माँ भारती - तुम्हारे निर्भीक पराक्रम से , मृत्यु - भय से हुए ना विचलित - ना चूके संयम से ;सिंह पुत्र तुम जननी के सहमा शत्रु नराधम !! श

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उस फागुन की होली में

9 मार्च 2019
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जीना चाहूं वो लम्हे बार बार जब तुमसे जुड़े थे मन के तारजाने उसमें क्या जादू था ? ना रहा जो खुद पे काबू था कभी गीत बन कर हुआ मुखर हंसी में घुल कभी गया बिखर प्राणों में मकरंद घोल गया बिन कहे ही सब कुछ बोल गया इस धूल को बना गय

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फूल ! तुम खिलते रहना !

26 मार्च 2019
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--- जीवन में बसंत चारों ओर बसंत का शोर है | हो भी क्यों ना !जीवन में बसंत का आना असीम खुशियों का परिचायक है | प्रश्न उठता है बसंत क्या है ? क्या है इसकी परिभाषा ?यूँ तो बसंत को हर किसी ने अपनी परिभाषा दी है पर सरल शब्दों में कहें तो फूलों की खिलना ही सृष्टि में बसंत का परिचायक है

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कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी

6 अप्रैल 2019
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चंचल नैना . फूल सी कोमल , कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी ? रूप - माधुरी का महकता उपवन - लगे निश्छल गाँव की छोरी सी ! मिटाती मलिनता अंतस की मन प्रान्तर में आ बस जाए रूप धरे अलग -अलग से - मुग्ध, अचम्भित कर जाए किसी पिया की है प्रतीक्षित -- लिए मन की चादर कोर

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तुम मिले कोहिनूर से

5 मई 2019
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भीगे एकांत में बरबस -पुकार लेती हूँ तुम्हे सौंप अपनी वेदना - सब भार दे देती हूँ तुम्हे ! जब -तब हो जाती हूँ विचलित कहीं खो ना दूँ तुम्हेक्या रहेगा जिन्दगी मेंजो हार देती हूँ तुम्हे ! सब से छुपा कर मन में बसाया है तुम्हे जब भी जी चाहे तब निहार लेती हूँ तुम्हे बिखर ना जाए कहीं रखना इस

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याद तुम्हारी -- नवगीत

1 जून 2019
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मन कंटक वन में-याद तुम्हारी -खिली फूल सीजब -जब महकीहर दुविधा -उड़ चली धूल सी!!रूह से लिपटी जाय-तनिक विलग ना होती,रखूं इसे संभाल -जैसे सीप में मोती ;सिमटी इसके बीच -दर्द हर चली भूल सी !!होऊँ जरा उदासमुझे हँस बहलाएहो जो इसका साथतो कोई साथ न भाये -जाए पल भर ये दूर -हिया में चुभे शूल सी !!तुम नहीं हो जो

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कभी अलविदा ना कहना तुम

22 जून 2019
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कभी अलविदा ना कहना तुम मेरे साथ यूँ ही रहना तुम !तुम बिन थम जाएगा साथी ,मधुर गीतों का ये सफर ;रुंध कंठ में दम तोड़ देगें -आत्मा के स्वर प्रखर ;बसना मेरी मुस्कान में नित ना संग आंसुओं के बहना तुमतुम ना होंगे हो जायेगी गहरीभीतर की तन्हाईयां-टीसती विकल करेंगीयादों की ये परछाईयां-गहरे भंवर में संताप के -

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सुनो चाँद !

22 जुलाई 2019
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अब नहीं हो! दुनिया के लिए, तुम तनिक भी अंजाने, चाँद! सब जान गए राज तुम्हारा तुम इतने भी नहीं सुहाने, चाँद! बहुत भरमाया सदियों तुमने , गढ़ी एक झूठी कहानी थी; वो थी तस्वीर एक धुंधली ,नहीं सूत कातती नानी थी; युग - युग से बच्चों के मामा - क्या कभी आये लाड़ जताने?चाँद ! खोज - खबर लेने तु

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कारगिल युद्ध -- शौर्य की अमर गाथा

25 जुलाई 2019
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कोई भी राष्ट्र कितना भी शांति प्रिय क्यों ना हो , अपनी सीमाओं की हर तरह से सुरक्षा करना उसका परम कर्तव्य है | यदि कोई देश अपनी सुरक्षा में जरा सी भी लापरवाही करता है उसे पराधीन होते देर नहीं लगती | , क्योंकि राष्ट्र की सीमाओं के पार बसे दूसरे राष्ट्र भी

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लिख दो कुछ शब्द --

29 अगस्त 2019
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लिख दो ! कुछ शब्दनाम मेरे , अपने होकर ना यूँ - बन बेगाने रहो तुम ! हो दूर भले - पास मेरे .इनके ही बहाने रहो तुम ! कोरे कागज पर उतर कर . ये अमर हो जायेंगे ; जब भी छन्दो में ढलेंगे , गीत मधुर

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बूढ़े बाबा ---- वृद्ध दिवस पर

1 अक्टूबर 2019
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वरिष्ठजन दिवस पर मेरी एक रचना उन बुजुर्गो के नाम जो अपने घर आँगन में सघन छांह भरे बरगद के समान है | जो उनकी कद्र जानते हैं उन्ही के मन के भाव ----बाबा की आँखों से झांक

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नमन न्यायपालिका

11 नवम्बर 2019
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नमन न्यायपालिका के -सम्पूर्ण अधिकार की शक्ति को,न्याय मिला , भले देर हुई , वन्दन इस द्वार शक्ति को !समय बढ़ गया आगे,लिख सौहार्द की नई परिभाषा; प्यार जीता नफरत हारी , बो हर दिल में नयी आशा ;हर कोई अपलक देख रहा -इस प्यार की शक्ति को !समभाव भरी ये पुण्यधरा .गीता भी

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मेरे गाँव के गुमनाम शायर

28 दिसम्बर 2019
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अपने गाँव के कविनुमा व्यक्ति को जब मैंने पहली बार अपने घर की बैठक में देखा , तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा | मैं उन्हें आज अपने घर की बैठक में पहली बार देख रही थी |इससे पहले मैंने उन्हें अपने गाँव की अलग -अलग गलियों में निरर्थक घूमते देखा था या फिर जहाँ - तहां मज़मा जोड़कर सुरीले स

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आभार शब्दनगरी

13 जनवरी 2020
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आज का दिन एक बार फिर बीती यादों की ओर लिए जा रहा है ।आज ही के तीन साल पहले शब्दनगरी पर टििप्पणी के लिए बनाये गए अकाउंट ने मेरी जिंदगी बदल दी थी। उन सभी पाठकों और सहयोगियों की ऋणी रहूँगी, जिन्होंने मेरी इस शानदार रचना यात्रा में मुझे अतुलनीय सहयोग दिया। आभार...आभार

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प्रेम ना बाडी उपजे

14 फरवरी 2020
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प्रेम सदियों से मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है | हर इंसान अपने जीवन में प्रेम के अनुभव से गुजरता है | इसे प्रेम, प्यार , इश्क , स्नेह , नेह इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारा गया और उतनी ही नई परिभाषाएं गढ़ी गयी |ये जब भगवान से हुआ - भक्ति कहलाया , प्रियतम से हुआ नेह कहलाया , अप्राप्य स

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ये ठहराव जरूरी था - कोरोना काल पर चिंतन

29 मई 2020
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कितने सालों से देख रहे थे , अलसुबह भारी - भरकम बस्ते लादे- टाई- बेल्ट से लैस , चमड़े के भारी जूतों के साथ आकर्षक नीट -क्लीन ड्रेस में सजा -- विद्यालयों की तरफ भागता रुआंसा बचपन --- तो नम्बरों की दौड़ और प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले की धुन में- आधे सोये- आधे जागते किशोर

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गुरु वन्दना

5 जुलाई 2020
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मेरे समस्त स्नेही पाठकवृन्द को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं --- तुम कृपासिन्धु विशाल , गुरुवर ! मैं अज्ञानी , मूढ़ , वाचाल गुरूवर ! पाकर आत्मज्ञान बिसराया .छल गयी मुझको जग की माया ;मिथ्यासक्ति में डूब -डूब हुआ अंतर्मन बेहाल , गुरुवर ! तुम्हारी कृपा का अवलंबन , पाया अ

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चलो नहायें बारिश में -- बाल कविता

2 सितम्बर 2020
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चलो नहायें बारिश में लौट कहाँ फिर आ पायेगा ?ये बालापन अनमोल बड़ा ,जी भर आ भीगें पानी में झुलसाती तन धूप बड़ा ; गली - गली उतरी नदिया कागज की नाव बहायें बारिश में !चलो नहायें बारिश में !झूमें डाल- डाल गलबहियाँ, गुपचुप करलें कानाबाती करेंगे मस्ती और मनमानी सीख आज हमें ना भाती , लोट - लोट लि

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लाडली नाज़ों पली

30 नवम्बर 2020
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🌹🌹आदरणीय भाई रवींद्र सिंह यादव जी को लाडली बिटिया   के शुभ विवाह की  हार्दिक बधाई और शुभकामनाएंनव युगल को भावी जीवन की हार्दिक मंगल कामनाएं। लाडली नाज़ों पली चली ससुराल गली! निभाना फेरों की रीतयही जग का चलनना रख पाए पिताकरे लाखों जतनथी अमानत पराईमेरे अँगना पलीलाडली नाज़ों पली चली ससुराल गली!  क्यू

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मन पाखी की उड़ान - प्रेम कविता

11 मार्च 2021
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मन पाखी की उड़ान तुम्हीं संग मन मीता जीवन का सम्बल तुम एक भरते प्रेम घट रीता !नित निहारें नैन चकोर ना नज़र में कोई दूजा हो तरल बह जाऊं आज सुन मीठे बैन प्रीता ! बाहर पतझड़ लाख चिर बसंत तुम मनके सदा गाऊँ तुम्हारे गीत भर - भर भाव पुनीता ! बिन देखे रूह बेचैन हर दिन राह निहारे लगे बरस पल एक

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आज कविता सोई रहने दो

30 अक्टूबर 2021
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<h1><em><strong>आज कविता सोई रहने दो,</strong></em></h1> <h1><em><strong>मन के मीत मेरे

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पुस्तक प्रकाशन -' समय साक्षी रहना तुम '

19 जनवरी 2022
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🙏🙏 पुटक मंगवाने के  लिए लिंक   माँ सरस्वती को नमन करते हुए  शब्दंनगरी  के ,मेरे सभी स्नेही पाठवृंद को मेरा सादर और सप्रेम अभिवादन। आप सभी के साथ, अपनी पहली पुस्तक ' समय साक्षी रहना त

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आओ देवता आओ!श्राद्ध कथा

24 सितम्बर 2022
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रसोई से आती विभिन्न स्वादिष्ट  व्यंजनों  की मनभावन गंध और माँ  की स्नेह भरी आवाज  ने घर से बाहर जाते  नीरज  के कदमों को सहसा रोक लिया |'' आज तुम्हारे दादा जी पहला श्राद्ध है बेटा ! इसलिए उन्हें  समर्प

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माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!

10 जनवरी 2023
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मेरी रचनात्मकता की उर्वर भूमि शब्दनगरी को मेरा सादर नमन!11 जनवरी 2017 को अपनी रचना यात्रा जहाँ से शुरु की थी उसी जगह खड़े होकर पीछे  देखना  बहुत भावुक कर देता है।कितने लोग मिले इस मंच पर जिन्हें पाकर ज

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