गूंजी मातमी धुन
लुटा यौवन
तन सजा तिरंगा
लौटा माटी का लाल
माटी में मिल जाने को !
इतराया था एक दिन
तन पहन के खाकी
चला वतन की राह
ना कोई चाह थी बाकी
चुकाने दूध का कर्ज़
पिताका मान बढाने को !
लौटा माटी का लाल
माटी में मिल जाने को !!
रचा चक्रव्यूह
शिखंडी शत्रु ने
छुपके घात लगाई
कुटिल चली चाल
मांद जा जान छिपाई
पल में देता चीर
ना आया आँख मिलाने को !
लौटा माटी का लाल
माटी में मिल जाने को !!
उमड़ा जन सैलाब -
विदा की आई बेला ,
हिया विदीर्ण महतारी आज
आंगन ये कैसा मेला ?
सुत सोया आँखें मूंद
जगा ना धीर बंधाने को;
लौटा माटी का लाल -
माटी में मिल जाने को !!!!!!!
पुलवामा के वीर शहीदों को अश्रुपूरित कोटि नमन !!!!!!!!!
स्वरचित -- रेणु--
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