चंचल नैना . फूल सी कोमल ,
कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी ?
रूप - माधुरी का महकता उपवन -
लगे निश्छल गाँव की छोरी सी !
मिटाती मलिनता अंतस की
मन प्रान्तर में आ बस जाए
रूप धरे अलग -अलग से -
मुग्ध, अचम्भित कर जाए
किसी पिया की है प्रतीक्षित --
लिए मन की चादर कोरी सी ! !
तेरी चितवन में उलझा मनुवा -
तनिक चैन ना पाए
यही ज्योत्स्ना चुरा के चंदा
प्रणय का रास रचाए ;
रंग ,गंध , सुर में वास तेरा -
तू सृष्टि की रंगीली होरी सी ! ! ! !
अनुराग स्वामिनी मनु की -
तुम हो नटखट शतरूपा सी
शारदा तुम्हीं लक्ष्मी , सीता-
शिव की शक्ति स्वरूपा सी ;
अपने श्याम सखा में व्याप्त
तुम्हीं राधिका गोरी सी !!
सृष्टा की अनुपम रचना
तुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!
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