ये सुनकर उमंग जागी है ,
कि बीते दिन लौट रहे हैं ;
उन राहों में फूल खिल गए -
जिनमे कांटे बहुत रहे है !
चिर प्रतीक्षा सफल हुई -
यत्नों के फल अब मीठे हैं ,
उतरे हैं रंग जो जीवन में-
वो इन्द्रधनुष सरीखे हैं
मिटी वेदना अंतर्मन की --
खुशियों के दिन शेष रहे हैं - !
एक लहर समय की थी साथी -
आई और आकर चली गई,
कसक है इक निश्छल आशा -
हाथ अपनों के छली गई ;
छद्म वैरी गए पहचाने -
जिनके अपनों के भेष रहे हैं !
पावन , निर्मल प्रेम सदा ही --
रहा शक्ति मानवता की ,
जग में ये नीड़ अनोखा है -
जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;
युग आये - आकर चले गए ,
पर इसके रूप विशेष रहे हैं !
उन राहों में फूल खिल गए
जिनमे कांटे बहुत रहे हैं !!!!