चाँद हंसिया रे ! सुन जरा !
ये कैसी लगन जगाई तूने ?
कब के जिसे भूले बैठे थे -
फिर उसकी याद दिलाई तूने !!
गगन में अकेला बेबस सा -
तारों से बतियाता तू
नीरवता के सागर में -
पल - पल गोते खाता तू ;
कौन खोट करनी में आया ? \
ये बात ना कभी बताई तूने !!
किस जन्म किया ये महापाप ?
शीतल हो भी सहा चिर संताप ;
दूर सभी अपनों से रह -
ढोया सदियों ये कौन शाप ?
नित -नित घटता -बढ़ता रहता
नियति कैसी लिखवाई तूने ?
तेरी रजत चांदनी मध्यम सी -
जगाती मन मेंअरमान बड़े ,
यूँ ही ये सजा बैठा सपने जो -
हैं भ्रम से -करते हैरान बड़े
मुझ सा - तू भी है तन्हा-
ना जानी पर पीर पराई तूने !!!!!!!!!!
स्वरचित -- रेणु
चित्र -- गूगल से साभार
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