मुद्दत बाद सजी गलियां रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है !
जीवन बना है इक उत्सव रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
रोती थी घर की दीवारें
छत भी यूँ ही चुपचाप पड़ी थी ,
जीवन न था जीने जैसा -
मौत से बढ़कर एक घडी थी
लेकर घर भर की खुशियाँ रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
पनधट पे चर्चा उसकी -
घर - घर में -होती बात यही ,
लौटी है गलियों की रौनक -
जो थी उसके साथ गई ;
बन पुरवैया का झोंका रे --
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
अमृत बने किसी के आंसू -
रोदन बदले शहनाई में ,
लाज से बोझिल पलकों पर
सज गए सपने तन्हाई में ;
बनकर राधा का कान्हा रे-
गाँव में कोई फिर लौटा है ! ! !
मुद्दत बाद सजी गलियां रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है !
जीवन बना है इक उत्सव रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !