नदिया तुम नारी सी -
निर्मल, अविकारी सी ,
कहीं जन्मती कहीं मिल जाती -
नियति की मारी सी !!
निकली बेखबर अल्हड , शुभ्रा ,
स्नेह्वत्सला ,धवल धार ,
पर्वत प्रांगण में इठलाती -
प्रकृति का अनुपम उपहार ;
सुकुमारी अल्हड बाला -
तुम बाबुल की दुलारी सी -
नदिया तुम नारी सी !!
हुलसती, लहराती आगे बढ़ती
नवयौवना , चंचल , चपला
उमंग भरी , प्रीतम अभिलाषी -
ये रूप तुम्हारा खूब खिला -
तट- बंधन में कस बहती जाती -
साजन की प्यारी सी !
नदिया तुम नारी सी !!
अनगिन सभ्यताओं की पोषक - ,
अन्नपूर्णा , तृषाहरणी तुम ,
जाति- धर्म से दूर बहुत
संस्कृतियों की जननी तुम ;
धो नित जग की कलुषता -
बनी मीठी से खारी सी -
नदिया तुम नारी सी!!
तुम्ही गोमती ,रावी,सतलुज -
कालिंदी,कावेरी ,कृष्णा ,
तुम्ही मोक्षदायिनी हर- हर गंगे -
हरती हर तन -मन की तृष्णा -
जीवनरेख - धरे रूप अनेक
मंगलकरणी- उपकारी सी -
नदिया तुम नारी सी !!
हो अतिक्रमण -टूटे संयम के बंध
धर रौद्र रूप - उमड़े उद्वेग
कम्पित धरा -अम्बर --- करती आर्तनाद
प्रलयकारी -प्रचंड वेग -
करती विनाश - थमती सी सांस -
तट तोड़ दिखती सृष्टि संहारी सी-
नदिया तुम नारी सी !!
जीवन का अंतिम छोर -
बढ़ती सिन्धु - प्रियतम की ओर,
निढाल प्राण - पाते त्राण -
सजल नयन मन भाव विभोर ;
लिए मलिन धार - ढूढे आधार -
पाती अनंत विराम थकी हारी सी -
नदिया तुम नारी सी !!!!!!!!!!!!!!
चित्र -- पांच लिंकों से साभार --
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