पंजाब का लोकपर्व मकर सक्रांति से ठीक एक या कभी - कभी दो दिन पहले आता है | ये पर्व पंजाब की जिन्दादिली से भरे जनजीवन को दर्शाता है .| इस दिन लोगों का उत्साह देखते ही बनता है | .
घरो और गलियों में रेवड़ी और मूंगफली की खुशबु फैली होती है | क्योकि ये पर्व माघ महीने की कंपकंपाती ठण्ड के बीच मनाया जाता है | इसलिए ऐसा समझा जाता है कि ये दोनों चीजें सर्दी को कम करने में बहुत सहायक है अतः ये दोनों चींजे लोहड़ी का प्रतीक बन गई हैं | पंजाब की लोक संस्कृति में इस पर्व का इतना महत्व है कि जब भी किसी के यहाँ नयी शादी या नवजात शिशु का आगमन होता तो घर भर की खुशियों को चार चाँद लग जाते हैं , जिससे ये उल्लास लोहड़ी के पर्व पर चरम पर पंहुच जाता है |
आग जलाकर उसके चारो तरफ पंजाबी गीतों की धुन पर भंगड़ा और गिद्दा डालते युवक और युवतियों अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं | लोहड़ी पर लोक नायक दुल्ला भट्टी का गीत लोहड़ी के गीत के रूप में गाया जाता है, जिसने सुन्दर - मुन्दर नाम की दो बहनों की मादा कर उनका घर बसाया था वैसे कहा जाता है कि दुला भात्ती बहुत ही बहादुर था जिसने महिलाओं की अस्मिता व सम्मान को बचाने लिए बहुत काम किये | सच तो है की गुड से मीठा ये त्यौहार न केवल पंजाब बल्कि पंजाबियत का आईना है |