तुम्हारी आभा का क्या कहना !
ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!
कौतुहल हो तुम सदियों से
श्वेत ,, शीतल , नूतन धवल !!!
रजत रश्मियाँ झर झर झरती
अवनि अम्बर में अमृत भरती
कौन न भरले झोली इससे ?
तप्त प्राण को शीतल करती
थकते ना नैन निहार तुम्हे
तुम निष्कलुष , ,पावन और निर्मल |
ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !
तुमने रे महारास को देखा -
तुमने सुनी मुरली मधुर मोहन की ,
कौन रे महा बडभागी तुम सा -
तुममे सोलह कला भुवन की ;
रजत थाल सा रूप तुम्हारा -
अंबर का करता भाल उज्जवल !
ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !
शरद का ले आती हाथ थाम -
निर्बंध बहे मधु बयार ,
गोरीके तरसे नयन पिया बिन -
धीरज पाते तुझसे अपार ;
तुझमे छवि पाती श्याम - सखा की
खिल खिल जाता रे मन का कवल !!
ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!!!!!!!!!!!