इंसान हूँ मेहनतकश मैं -
नहीं लाचार या बेबस मैं !
बड़े गर्व से खींचता
अपने जीवन का ठेला --
संतोषी मन देख रहा
अजब दुनिया का खेला ा !
गाँधी सा सरल चिंतन -
मैले कपडे उजला मन ,
श्रम ही स्वाभिमान मेरा -
हर लेता पैरों का कम्पन !
भीतर मेरे गांव बसा
है कर्मभूमि नगर मेरी ,
हौंसले काम नहीं है -
कठिन भले ही डगर मेरी ! !